धारावाहिक उपन्यास भाग 10 : सुलगते ज्वालामुखी
धारावाहिक उपन्यास
सुलगते ज्वालामुखी
लेखिका – डॉ अर्चना प्रकाश
पीएच.डी. पूरी होते ही वेदान्त ने नेताओं से सिफारिश लगवा कर लखनऊ विश्वविद्यालय में ही अपने एवं मुशीरा के लिए सहायक प्रवक्ता का पद हासिल कर लिया। हनुमान सेतु के पास का कमरा छोड़ कर अब वे दो कमरों का छोटा सा घर किराये पर ले कर मुशीरा के साथ रहने लगे।
‘‘हमारा पति पत्नी का रिश्ता अब यूनीवर्सिटी में सब पर जाहिर हो चुका है।’’ मुशीरा ने कहा।
‘‘अब मैं इसे छुपाने की जरूरत भी नहीं समझता हू°।’’ वेदान्त ने प्रत्युत्तर दिया।
‘‘जब तक मेरे घर वाले तुम्हें पूरी तरह से अपना नहीं लेते, इसे छिपाना ही पड़ेगा।’’ मुशीरा ने कहा।
‘‘आखिर कब तक और क्यू°?’’ वेदान्त खीझ उठे।
‘‘अफजल भाई आजकल युनीवर्सिटी के खूब चक्कर लगा रहे हैं? कई लोगों से उन्हें बात करते हुए भी मैंने देखा है!’’ मुशीरा घबराई सी बोली।
‘‘फिर तो उन्हें सब पता चल गया होगा!’’ वेदान्त बोले।
‘‘या अल्लाह!’’ मुशीरा चीखी।
अफजल ने जब सुना कि वेदान्त व मुशीरा दो सालों से पति पत्नी की तरह हैं तो उन्हें चक्कर आने लगे। वे तुरन्त घर लौटे और अम्मी व अब्बू से बोले –
‘‘हमारा शक सही निकला अब्बू जी। मुशीरा दो वर्ष पहले से वेदान्त की पत्नी है। उसी के साथ रहती है।’’
‘‘क्या बकते हो? मेरा तो दिल ही बैठा जा रहा! इस लड़की की इतनी हिम्मत?’’ वसीम खान परेशान थे।
वे सीना पकड़ कर बैठ गये! अफजल जल्दी से डाक्टर बुला लाये। जिसने उन्हें तनाव घटाने की दवायें व आराम करने की सलाह दी। अफजल ने मुशीरा को फोन किया –
‘‘पूरी बिरादरी पूरे मुहल्ले में तुम्हारी करतूत उजागर हो चुकी है। तुम्हे शर्म से मर जाना चाहिए।’’ वे मुशीरा को डपट रहे थे।
मुशीरा ने उसी समय वेदान्त को फोन किया और रो पड़ी। भरे गले से उसने वेदान्त को सारी बात समझाई। वेदान्त दस मिनट में ही बाइक से मुशीरा के सामने थे। ‘‘अंकल की ऐसी हालत में मैं तुम्हारे साथ चलू°गा। शायद मैं उनका भरोसा जीत सकू°।’’ वेदान्त मुशीरा से बोले।
‘‘वैसे भी पूरे परिवार का सामना मैं अकेले नहीं कर पाऊ°गी। तुम साथ रहोगे तो कुछ सम्बल रहेगा।’’ ये मुशीरा थी।
मुशीरा वेदान्त की बाइक पर बैठ गई और वेदान्त ने तेज रफ्तार से चला कर बाइक मुशीरा के घर पर ही रोकी। मुशीरा का हाथ पकड़ कर वेदान्त झटके से अन्दर दाखिल हुए। सामने ही पलंग पर वसीम खान लेटे हुए थे। दोनो भाई व दूसरे रिश्तेदार वहीं पास ही बैठे हुए थे।
वेदान्त ने आगे बढ़कर अम्मी व अब्बू के पा°व छू लिए। कोई कुछ कहता उससे पहले ही वेदान्त अब्बू के पास बैठ गये और उनका हाथ अपने हाथ में ले कर बोले- ‘‘अंकल हम आप सब को ठेस नहीं पहु°चाना चाहते थे। हमे पता है कि औरों की तरह आपके रिश्तेदार भी जातीयता की जंजीरों में जकड़े हैं।’’
‘‘तो क्या नौजवानों की ऐसी हरकतों से देश जातिवाद से उबर पायेगा?’’
‘‘मैं आपसे सिर्फ इतनी इल्तजा कर सकता हू° कि इस सब में मुशीरा का कोई दोष नहीं है!’’
‘‘क्यों क्या ये दूध पीती बच्ची थी? इसने हमें कहीं का न रखा!’’ वसीम खान बोले।
‘‘अब्बू जी! मुशीरा ने सब कुछ मेरे कहने पर किया और अब ये मेरे बच्चे की मा° बनने वाली है। आपको जो भी सजा देनी है मुझे दीजिए प्लीज!’’ वेदान्त अब्बू के पैरों पर सिर रख कर रो पड़े।
तभी मुशीरा साहस करके आगे बढ़ी- ‘‘अब्बू जी हमें माफ कर दीजिए हमसे गलती हो गई।’’
वसीम खा° ने लेटे लेटे ही आ°खे खोली एक नजर दोनों पर डाली फिर अफजल को पास बुलाने का इशारा किया। अफजल से वे बोले – ‘‘सबको दूसरे कमरे में ले जाओ तो मैं अकेले में इन दोनों से बात करू°।’’
अफजल सबको ले कर चले गये तब वे वेदान्त से बोले- ‘‘क्या तुम्हारे माता पिता को इस रिश्ते की जानकारी है?’’
‘‘मेरे माता पिता मुशीरा को बहुत प्यार करते हैं। हमारी अम्मा मुशीरा को बहू मान चुकी है। गा°व में हमें किसी का कोई डर नहीं है!’’ वेदान्त बोले।
‘‘फिर तो उन्हें फोन करो उन लोगों से हमारी बात करवाओ’’ वसीम खा° बोले।
वेदान्त ने तुरन्त अपने पिता को फोन लगाया और उन्हें सारी स्थिति से अवगत कराया फिर मोबाइल अब्बू के हाथ में दे कर बोले- ‘‘लीजिए अब्बू मेरे बाबू जी से बात करिये।’’
उधर से आवाज आई मैं सत्यशरण मिश्र वेदान्त का पिता बोल रहा हू°।
‘‘मिश्रा जी! क्या आपके साहब जादे मुशीरा के लिए इस्लाम कुबूल कर लेंगे?’’ वसीम खा° ने कहा।
‘‘खान साहब मुशीरा हमारी बहू व बेटी दोनों हैं। ये हमारे घर की लक्ष्मी हैं। दोनों बच्चे कोर्ट, मैरिज कर चुके हैं। अब इस्लाम को बीच में लाने से कोई फायदा नहीं है।’’ सत्यशरण बोले।
‘‘दोनों की कोर्ट मैरिज के बाद अब हमारा दखल बेमानी है लेकिन फिर भी हम इस्लाम को छोड़ तो नहीं सकते!’’ ये वसीम खान थे।
‘‘वक्त बदल गया है खान साहब, आज के युवाओं ने इस्लाम व जाति बहुत पीछे छोड़ दी है। हमें भी इनकी खुशी में सच्चे मन से दुआ देनी चाहिए।’’ मिश्रा जी कुछ ऐसे बोले कि वसीम खान निरुत्तर हो गये। कुछ देर चुप रह कर बोले-
‘‘फिर भी एक बार हमारा आपका मिलना जरूरी है और मैं बिस्तर पर पड़ा हू°।’’
‘‘हम पति पत्नी कल आ कर आपसे मिलते है।’’ सत्य शरण मिश्रा जी ने कहा।
वसीम खान अब मुशीरा से बोले- ‘‘बेटी! मिश्रा जी के साहब जादे को अपने कमरे में ले जा कर बाकी सब को मेरे पास भेज दो।’’
सबको एक साथ सम्बोधित करते हुए वसीम भारी मन और भारी आवाज से बोले- ‘‘ये माना कि इस्लाम बहुत बड़ा है लेकिन इस्लाम से भी बड़ी है इन्सानियत। जब दोनों पिछले दो सालों से साथ रह रहे हैं और इनके रिश्ते को अदालती मंजूरी भी है तो अब जाति धर्म का फसाद बेमानी है।
सभी ने सहमति सूचक सिर हिला दिये। अब खान साहब फिर बोले- ‘‘दोनों का निकाह कल ही करा के हम भी छुट्टी पा लेते हैं।’’
इस बार भी सबकी मौन स्वीकृति थी। अगले दिन सत्यशरण मिश्रा अपनी पत्नी सीता के साथ पुराने लखनऊ मुशीरा के घर ठीक ग्यारह बजे पहु°च गये।
मुशीरा ने सिर पर चुन्नी डाल कर इनके चरण स्पर्श किये फिर उन्हें
बैठक मेले गई जहा° उनके अब्बू व अम्मी पहले से बैठे थे। खान दम्पत्ति मिश्रा दम्पत्ति से गले मिले फिर स्वाभाविक शिष्टाचार से आमने सामने बैठ गये।
‘‘मिश्रा जी इस्लाम और दूसरी जातीय बातों के लिए मैं माफी चाहता हू°। मगर मैं ये गुजारिश जरूर करू°गा कि हमारी बेटी का निकाह यही हो, उसकी तैयारी भी पूरी है’’ ये वशीम खान थे।
‘‘खान साहब आप हमें शर्मिन्दा न करे! हम आपके धर्म और रीति रिवाजों का सम्मान करते हैं। हमें बच्चों की खुशी में उन्हें खुले दिल से आशीष देने हैं।’’ मिश्रा जी बोले।
‘‘सदियों से हम जाति और धर्म की जंजीरों में जकड़े हुए हैं। पूरा देश जाति व धर्म के समूहों में सुलग रहा है और नेताओं की रोटिया° सिक रही हैं। ये वेदान्त थे।
‘‘आजादी के सत्तर वर्षों बाद भी भारत में जातीयता और धर्मान्धता नहीं बदली। अब इसे बदलना जरूरी है।’’ मिश्रा जी बेटे के समर्थन में बोले।
‘‘अब हम रिश्तेदार हो चुके हैं मिश्रा जी इसीलिए मैंने आपके ओर भाभी जी के स्वागत में शुद्ध शकाहारी भोजन की व्यवस्था की है।’’ वसीम खान ने कहा।
‘‘तब तो हमारी आपके साथ अच्छी निभेगी!’’ ये सत्य शरण थे।
मौलवी जी आये तब तक निकाह की सारी तैयारिया° हो चुकी थीं। पहले से रखे नये पकड़े पहन कर मुशीरा तैयार थी। मौलवी साहब ने पहले वेदान्त से फिर मुशीरा से निकाहनामा कुबूल करा कर निकाह सम्पन्न करा दिया। वेदान्त व मुशीरा दोनों ने घर के बड़ों से आशीर्वाद लिया। फिर सभी ने एक साथ बैठ कर शाकाहारी भोजन का आनन्द लिया।
‘‘रिवाज के अनुसार अब हमें बहू लेकर अपने घर जाना चाहिए।’’ सीता देवी ने कहा।
‘‘मुशीरा अब आपकी अमानत है, हम कैसे रोक सकते हैं!’’ वसीम खान विनम्रता से बोले।
वेदान्त आटोरिक्शा ले आये जिस पर मुशीरा सत्यशरण व सीतादेवी बैठ गये। मुशीरा के भाई अफजल भी वेदान्त के साथ उनके घर आ गये।
क्रमशः