ग़ज़लें

(१) क्या थे किरदार क्या कहानी थी

क्या थे किरदार क्या कहानी थी
वो भी क्या खूब जिंदगानी थी ।

खूबसूरत जड़ें सितारे थे
उसकी चादर जो आसमानी थी ।

एक ठोकर पे रहती थी दुनिया
वो भी क्या जोश क्या जवानी थी ।

घर था बेटे का , चुप ही रहना था
उम्र ढलती हुई बितानी थी ।

उसके जीने का बन गया वो सबब
पास उसकी जो इक निशानी थी ।

रंग लायी है उसकी मेहनत अब
ख़ाक दुनिया की उसने छानी थी ।

भीड़ में गुम वो हो गया कैसे
शख्सियत वो तो जानी मानी थी ।

जब भी आता खुशी का पल कोई
अपनी किस्मत तो रूठ जानी थी ।

आज भी उससे दिन महकते हैं
मेरे हिस्से जो रूत सुहानी थी ।

तब से गायब सुकूं था चेहरे से
जब से बिटिया हुई सयानी थी ।

तुम तो बस अपनी कहते जाते हो
मुझको अपनी भी कुछ सुनानी थी ।

उसकी हर बात सह गयी हंसकर
प्रीत अपनी मुझे निभानी थी ।

ये सफ़र,था तो सिर्फ़ इतना था
जान जानी थी,मौत आनी थी ।

(२) भले आये नहीं तुमको किसी अंजाम की खुशबू

भले आये नहीं तुमको किसी अंजाम की खुशबू
फ़िज़ा में खुद ही फैलेगी तुम्हारे काम की खुशबू ।

तुम्ही माने नहीं और चल पड़े ऊंची दुकानों में
मुझे तो आ रही थी खूब ऊंचे दाम की खुशबू ।

तेरी सेवा से बढ़कर अब इबादत और क्या होगी
तेरी गोदी में मां मिलती है चारों धाम की खुशबू ।

यहां लगता नहीं है जी मुझे उस ओर ही ले चल
जहां से आ रही है मेरे प्रभु श्री राम की खुशबू ।

गली के मोड़ पे देखा था पहली बार जब तुमको
बसी है आज भी मन में मेरे उस शाम की खुशबू ।

(३) भले दुश्मन हमें आघात देंगे

भले दुश्मन हमें आघात देंगे
भरोसा है उन्हें हम मात देंगे।

शहादत देने वाले कम नहीं हैं
वो दुश्मन को करारी मात देँगे।

गुज़र करना कठिन होगा बशर को
ये रहबर ऐसे भी हालात देँगे।

जब उनकी सोच मे मनहूसियत है
तो फिर कैसे हसीँ लम्हात देंगे।

पिटारी खोलेंगे यादों की जब भी
वो आँखों मे मेरी बरसात देंगे।

चुना था हमसफर ये सोच उनको
मेरे सुख दुख मे मेरा साथ देंगे।

यकीँ है मेहरबाँ होंगे वो इक दिन
हमारी ज़ीस्त को नग़मात देंगे।

ये बादल छा रहे हैं आसमाँ पर
धरा को प्यार की सौगात देंगे।

(४) दुख के बादल चलो उड़ाएँ

दुख के बादल चलो उड़ाएँ
क्यों अपना चेहरा लटकाएँ।

ऐसे काम भी कुछ कर जाएँ
देश का जिनसे मान बढ़ाएँ।

खरपतवार बहुत उग आई
नेकी के कुछ फूल खिलाएँ।

चँद लकीरोँ से क्या डरना
अपनी किस्मत आप बनाएँ।

शेष रहेंगे प्यार मोहब्बत
नफरत की क्यूँ फ़स्ल उगाएँ।

घुला है इतना ज़हर हवा में
आओ प्यार का जाम उठाएँ।

नई फ़ज़ा मे एक कमी है
सँस्कार की पौध लगाएँ।

नेकी कर दरिया मे डालें
फूलों सी ख़ुशबू फैलाएँ।

दूर रहो ऐसे लोगों से
झूठी बातों से भरमाएँ।

ईश्वर का दर्जा है उनका
मात-पिता को शीश नवाएँ।

चाल सियासी है लोगों की
मीठी बातों से फुसलाएँ।

ख़ुद को ज़रा सँभाले रहिए
हैं बदलीं मौसम की अदाएँ।

(५) ट्विटर , व्हाट्सएप को तो अपना रही है

ट्विटर , व्हाट्सएप को तो अपना रही है
हक़ीक़त के रिश्तों को बिसरा रही है ।

ये क्या दौर है जिन्दगी का न जाने
न जी पा रहे हैं न मौत आ रही है ।

ये माहौल हिँसा व नफ़रत का हर सू
खु़दा जाने दुनिया किधर जा रही है ।

पढ़ाये सबक़ मैंने जिस ज़िंदगी को
वही आज मिलने से कतरा रही है ।

वो रख देगी चंदा को हाथों मेँ उसके
कि माँ अपने बच्चे को फुसला रही है ।

ये दौलत किसी की रही है कभी क्या
इसी पर तू इतना जो इतरा रही है ।

मैं साकार करके दिखाऊँगी वो सब
पिता की मेरे जो जो इच्छा रही है ।

हुई गुस्से से मालकिन लाल पीली
‘पड़ा काम कितना, तू सुस्ता रही है’ ।

भले उम्र से आ गया हो बुढ़ापा
वो दिल से मगर एक बच्चा रही है ।

कभी तो मेरे दर भी आयेँगी खुशियाँ
किरण सोच ये खुद को भरमा रही है ।

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