रचनाएँ : कवयित्री ममता किरण
ब्रेक
टी०वी० पर जब भी
कोई कार्यक्रम देखने बैठो
तो कार्यक्रम कम
‘ ब्रेक ‘ ज्यादा आते हैं
और इस ‘ ब्रेक ‘ का मतलब है
फ़ायदा ही फ़ायदा… मुनाफा ही मुनाफा…
यूँ ‘ ब्रेक ‘ का मतलब होता है
टूटना …तोड़ना…
और इस टूटने मेँ कितनी टूटन है
क्या ये सोचा है आपने
पूछो उन माँ – बाप से
जब तय हो जाए
उनकी बिटिया का ब्याह
और लेन – देन मेँ ज़रा सी कमी से
टूट जाए रिश्ता
पूछो उस प्रेमी से
जो चढ़ रहा हो सीढ़ियाँ
चांद को पाने की
आ जाए उसके आड़े समाज
और टूट जाए उसका दिल
पूछो उस युवा से
जो छूना चाहता हो आसमान
पर हालात से जूझते हुए
गिर पड़े भरभराकर
और टूट जाए उसका सपना
पूछो उन बूढ़े माँ – बाप से
जो हर त्योहार जोहते हों बाट
अपने बच्चों के घर आने की
और टूट जाए उनकी उम्मीद
ये ‘ ब्रेक ‘ भी अजीब हैं
किसी के लिए फ़ायदा ही फ़ायदा
और किसी के लिए
टूटन ही टूटन…।
संबोधन
कंक्रीट के इस जंगल मेँ
एकदम अप्रत्याशित
एक बुजुर्ग से अपने लिए
बहुरानी संबोधन सुनकर
जिस तरह मैं चौकी
उसी तरह अनायास
श्रद्धा से झुक भी गयी
बहुरानी कहने वाले के सामने
सच इन संबोधनोँ मेँ
कितना प्यार और अपनापन है
कि उस एक क्षण मेँ ही
मन भीतर तक भीग गया
और मैंने बिना घनिष्ठ जान पहचान के ही
अपनी सारी भावनाएं
व्यक्त कर दीं अपनी श्रद्धा मेँ
इसी महानगर मेँ
जहाँ बाज़ार सेँसेक्स मेँ छलांग की तरह
घुस गया है हमारे-आपके बीच
ले गया है हमारा अपनत्व और प्यार
जिन्हें वह विज्ञापनोँ मेँ तो परोस रहा है
पर हमेँ रिक्त कर गया है
सोचती हूँ , ऐसे महानगर मेँ
काश ! बचे रहें ये संबोधन
और हम कर देँ
कंक्रीट के इस जंगल को
हरा-भरा
अपने इन्हीं संबोधनोँ के
अपनत्व और प्यार से ।
कविता
रात-भर सपनों में
तैरती रही कविता
सुबह उठ ईश्वर से की प्रार्थना
कि दिन भर लिखूं कविता
और प्रार्थना के बाद
इस तरह शुरू हुआ क्रम
मेरे लिखने का…
मैंने बेली कविता
पकाई विश्वास और नेह की आंच में
तुमने किया उसका रसास्वादन
की तारीफ़, तो उमड़ने लगीं
और-और कविताएं…
बुहारे फ़ालतू शब्द लंबी कविता से
आसुओं की धार से भिगो किया साफ़
तपाया पूरे घर से मिले
संबंधों की आंच में
तो खिल उठी कविता
तुमने उसे पहना,ओढ़ा, बिछाया
मेरी मासूम संवेदनाओं के साथ
तो सार्थक हुई मेरी कविता
तुम्हारे दफ़्तर जाने पर
मैंने लिखी कविता दुआ की
कि बीते तुम्हारा दिन अच्छा
घर लौटने पर न हो ख़राब तुम्हारा मूड
न उतरे इधर-उधर की कड़वाहट घर पर
तुम आओ तो मुस्कुराते हुए
भर दो मेरी कविता में इंद्रधनुषी रंग
और हम मिलकर लिखें
एक कविता ऐसी
जो हो मील का पत्थर।
वैलेंटाइन डे
आज सुबह से ही
रेडियो, टी०वी० व अख़बारों में
छाया हुआ है वैलेंटाइन डे
अनेक लुभावने विज्ञापन हैं
जो बता रहे हैं कि किस तरह अमुक चीज़ ख़रीदकर ‘उसे’ करो गिफ्ट
और सदा के लिए
उसके दिल में कर दो घर
सोचने लगी हूं
तुमने तो इस तरह आज तक मुझे
कुछ भी नहीं किया गिफ्ट
और न ही मैंने तुम्हें
इस महानगर में जीवन से जूझते हुए
दोनों नौकरी करते हुए
बच्चों को अपने दम पर पालते हुए
कब बीत गये तीस साल
पता ही नहीं चला
शायद एक-दूसरे के दिल में
कुछ ज़्यादा ही कर गये थे घर
कि हमें गिफ्ट की ज़रूरत ही नहीं पड़ी
पर आज
जब बच्चे ज़िद कर रहे हैं मुझसे
वैलेंटाइन डे मनाने की
तो सोचती हूं
कि तुम्हारे दफ़्तर से घर आने पर
हम चलेंगे साथ-साथ
शाम की चाय पीने कहीं बाहर
और करेंगे प्रार्थना मंदिर में
कि हे ईश्वर…
उम्र के इस पड़ाव पर, हमें जुदा नहीं करना
हम रह नहीं पाएंगे एक- दूसरे के बिना
क्योंकि आदत-सी हो गई है
हमें साथ-साथ ही रखना…
बोलो…चलोगे न मेरे साथ
वैलेंटाइन डे मनाने…।