दोहे : कवयित्री ममता किरण
दोहे
01. अच्छा हो या फिर बुरा दोनों को लेँ साध
जीवन चलता किस तरह फिर देखो निर्बाध ।
02. सावन की ऋतु आ गयी रिमझिम लिए फुहार
आन मिलो प्रियतम मेरे विरहन करे गुहार ।
03. वश मेँ करने जब उसे, काम न आये मंत्र
है गवाह इतिहास तब रचा गया षड्यंत्र । \
04. बच्चों को “पर ” क्या मिले छोड़ गये वो साथ
दीवारें ही बच गयीं जिनसे कर लो बात ।
05. करो भले कितने जतन, होँ न कभी आबाद
सुई चुभे शक की अगर, होँ जीवन बर्बाद ।
06. विज्ञापन मेँ छा रहा रिश्तों का जो जाल
जीवन मेँ आ जाए तो, हो जीवन खुशहाल ।
07. बच्चे परदेशी हुए , सूने घर संसार
इंटरनेट पर ही मैंने , अब सारे त्योहार ।
08. लगे पवन बौरा गयी , जैसे पी हो भंग
खूब ठिठोली कर रही , वो पेड़ो के संग ।
09. भीगे मौसम ने कहा, आकर मेरे कान
गलियां तेरे हृदय की , दिखती क्यूं वीरान ।
10. बहने दो रोको नहीं, आंखों से ये नीर
कुछ हल्की हो जायगी, मन की भारी पीर ।