कहानी : बिना स्पेस वाला – अलका प्रमोद

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बिना स्पेस वाला


‘‘ तूने बहुत अच्छा किया नेहा जो बेटी गोद ले ली तेरा जीवन बदल गया नहीं तो कितनी फ्रस्टेटेड रहती थी तू।’’
‘‘ धीरे बोलो रीमा आर्या सुन लेगी तो गजब हो जाएगा ’’ नेहा की फुसफुसाती आवाज।
‘‘ क्या आर्या को पता नहीं है ? मेरे हिसाब से तो बच्चे को सब बता देना चाहिये ’’ यह रीमा की आवाज़ थी।
‘‘ नहीं नहीं मैंने आर्या को कुछ नहीं बताया है’’
वार्तालाप कमरे की दीवारों को लाँघ कर आर्या के कानों से जा टकराया, कुछ देर तो आर्या के मस्तिष्क में अंकित ही नहीं हो पाया कि बात उसी की हो रही है और जब हुआ तो उसके रोम-रोम में कान उग आये। यह क्या कह रही हैं रीमा आंटी ? क्या उसी की बात हो रही है? हाँ मम्मी ने उसी का नाम तो लिया है। उसे लगा कि कोई भूकंप आ गया जिसमें उसका अस्तित्व, पहचान सब ढह गया और रह गया वहाँ एक मिट्टी का ढेर जिसका न तो कोई आकार था, न अतीत का कोई चिन्ह जिससे उसकी पहचान हो। यह स्थिति असह्य थी ।
वह धड़धड़ाती हुयी मम्मी के पास पहुँची ‘‘ मम्मी यह मैं क्या सुन रही हूँ, आप मेरी मम्मी नहीं हैं, पापा मेरे पापा नहीं हैं ? और आप ने मुझे इतने दिन धोखे में रखा मेरा विश्वास तोड़ा ?’’
‘‘ बेटा मेरी बात तो सुनो तुम मेरी बच्ची हो हम तुमको अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करते हैं ’’ नेहा ने आर्या के जलते प्रश्नों पर अपने प्यार की ठंडी बूंदे छिड़कने का प्रयास किया पर वह कुछ बूँदे तो छन्न से तपती आग पर पड़ीं और भाप बन कर उड़ गयीं।
‘‘ अरे बेटी तुम्हे क्या पता नेहा तुझे कितना प्यार करती है तू उसकी तमन्ना है, सपना है, जिंदगी है ’’ रीमा ने बिगड़ी बात को सँभालने का असफल प्रयास किया।
आर्या ने रीमा की बात को हवा में उड़ाते हुए कहा ‘‘ मैंने इस बात में तो कोई डाउट ही नहीं किया कि वह मुझे प्यार नहीं करतीं ,मेरा ध्यान नहीं रखतीं पर सवाल यह है कि मेरी आइडेंटिटी मुझसे छिपाना मुझसे धोखा है। आप सोच सकती हैं मुझे यही नहीं पता मेरे असली मम्मी पापा कौन हैं, मुझमें किसका खून है ,किसकी जीन्स हैं। ‘‘
नेहा ने कहा ‘‘ बेटी बस तू मेरी बेटी है मैं तेरे बिना नहीं रह सकती।’’
‘‘ ़़़़़मम्मी मुझे बस यह बताओ मेरे मम्मी पापा कौन हैं?’’
पछता तो रीमा भी रही थी पर तीर तो कमान से निकल चुका था। विस्फोट हो चुका था और चारों ओर अनिश्चतिता का धुंआ फैल कर सबकी आँखों को कड़़ुआ रहा था।
शाम को मानस आये तो घर में तनाव की गंध बिना बताये ही सूँघ ली पर कारण का अंदाजा तो उन्हे भी नहीं था।
‘‘हैलो रीमा आउ आर यू? ’’
‘‘फाइन’’ एक बुझी सी आवाज ।
‘‘ नेहा तुमने रीमा को कुछ खिलाया-पिलाया नहीं क्या ’’ मानस ने वातावरण को सामान्य करने का प्रयास किया पर जवाब में नेहा चुप ही रही।
मानस घबरा गये ‘‘ क्या हुआ सब ठीक है न ?’’
‘‘ वह आर्या….. ’’कहते-कहते नेहा रो पड़ी’’
आर्या के नाम पर मानस भी घबरा गये ‘‘ क्या हुआ सब ठीक है न, कहाँ है आर्या?’’
नेहा ने हाथ से कमरे की ओर संकेत किया।
मानस दौड़ कर आर्या के कमरे की ओर गये।वहाँ अंधेरा था उन्होने आर्या को आवाज दी तो उसके सुबकने की आवाज सुनायी दी। मानस ने लाइट जलायी तो आर्या बिस्तर पर औंधे मुँह पड़ी सुबक रही थी। अपने दिल के टुकड़े को दुखी देख कर मानस का दिल भी रो उठा उन्हांेने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा ‘‘ क्या हुआ मेरी परी को ?’’
आर्या ने उनका हाथ झटकते हुए कहा ‘‘ मुझे पता है आप मेरे पापा नहीं हो।’’
मानस को मानो बिच्छू ने डंक मार दिया हो उन्होने कहा ‘‘ यह क्या कह रही हो बेटी?’’
आर्या उठ कर बैठ गयी और बोली ‘‘ मुझे पता चल गया है कि आप मेरे पापा नहीं हैं यू चीटेड मी, पापा यू चीटेड मी।’’ वह मानस के कंधे पर सिर रख कर हिलक-हिलक कर रो पड़ी।
मानस के दिल पर मानो किसी ने मुक्का मार दिया हो। बेटी को यह सच बताने का इरादा तो था पर वह उसके समझदार होने की प्रतीक्षा में बात को टालते जा रहे थे। उसे अचानक इस तरह पता चलेगा कि उसका उन पर से विश्वास ही डोल जाएगा, ऐसा उन्होने सपने में भी नहीं सोचा था। उन्होने उसे बाहों में दुलराते हुए कहा ‘‘ मेरी बच्ची मैं तुम्हे बताने ही वाला था। ’’
‘‘आप झूठ बोल रहे हैं, आज जब मुझे पता चल गया तब आप कह रहे हैं कि बताने ही वाला था।’’
‘‘बेटी मैंने तुम्हे धोखा नहीं दिया बस एक डर था कि हम तुम्हे खो न दें। ’’
‘‘मेरे मम्मी पापा कौन है, उन्होने मुझे आप को क्यों दे दिया ,क्या मैं इलिजिटिमेट थी ,अनवान्टेड थी?’’
‘‘ नहीं आर्या तुम एक पढ़े लिख सम्मानित माता पिता की संतान हो ’’ मानस ने कहा।
‘‘तो उन्होने मुझे आपको क्यों दे दिया, कोई अपना बच्चा किसी को कैसे दे सकता है?’’
अतीत के पन्ने खुलने लगे ‘‘ जब हमें डाक्टर से पता चला कि नेहा माँ नहीं बन सकती तो नेहा तो अवसाद में चली गयी। वह दिन रात बस अपनी इसी कमी के बारे में सोचती रहती।कहीं जाती तो सबके बच्चे देख कर और दुखी हो जाती। धीरे-धीरे उसने कहीं आना जाना छोड़ दिया। तब हमने एक बच्चा गोद लेने का निर्णय किया। ’’
‘‘ पर मुझे कहाँ से लाये आप लोग?’’ आर्या ने उतावली से कहा।उसके लिये और सब बातें नगण्य थीं ,वह तो बस यह जानना चाहती थी कि उसके मम्मी पापा कौन हैं।
मानस ने बताया ‘‘ बेटी इसी बीच हमारे बचपन का मित्र रोहित और अनीता कुछ दिनों के लिये हमारे घर आये। उनके दो बच्चे थे और तीसरा बच्चा अनायास ही उनकी योजना के बिना उनके जीवन में आने को तैयार था। वह उनका संघर्ष का समय था रोहित की नौकरी छूट गयी थी और वह आर्थिक संकट से जूझ रहे थे। ’’
‘‘ हुम्म तो उन्होने अपनी गरीबी की वजह से मुझे आपको दे दिया, जब पाल नहीं सकते थे मुझे पैदा ही क्यों किया’’ आर्या अभी भी सामान्य नहीं हो पायी थी।
‘‘ नहीं बेटी वह निश्चय अनिश्चय की स्थिति में थे, इस बच्चे को आने दें या नहीं की दुविधा से पूर्ण। अजब संयोग था कि हम बच्चे को तरस रहे थे, आतुर थे किसी नन्हे को बाहों में लेने के लिये। हमने उनके समक्ष झोली फैला दी और उन्होंने हमारी झोली भर दी।’’
‘‘यानि कि मैं एक अन्वान्टेड चाइल्ड थी उन्होने आपको दे कर मुझसे छुटकारा पाया’’
‘‘नहीं अन्वान्टेड तू न ही होती या तो दुनिया में होती ही न या तू है तो मोस्ट वान्टेड ’’
और ‘मोस्ट वान्टेड’ पर पापा बेटी खिलखिला कर हँस पड़े।
नेहा भी रीमा को भज कर आ गयी। आर्या को हँसते देख कर उसकी जान में जान आयी उसने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा ‘‘ बेटी तू यह समझ ले कि भले तू किसी और की कोख से आयी किसी और के जीन्स और खून से जन्मी पर तूने बस हमारे लिये जन्म लिया है। ’’
‘‘ मम्मी-पापा क्या आप लोगों के पास मेरे मम्मी पापा की फोटो है?’’आर्या ने पूछा।
मानस ने उसे एक गहरी दृष्टि से देखा । ‘‘तुम्हारे मम्मी पापा …’’
आर्या ने भूल सुधार करके कहा ‘‘ मतलब मेरे बायलाजिकल मम्मी पापा।’’
मानस ने कहा ‘‘हाँ है दिखाता हूँ ।’’
मानस अलमारी के पुरानी फोटो निकालने दूसरे कमरे में गये । नेहा पीछे -पीछे आ कर बोली ‘‘ यह आप क्या कर रहे हैं ?‘‘
‘‘ आर्या को उसके जन्मदाताओं की फोटो दिखा रहा हूँ।’’
‘‘आप को क्या हो गया है मेरी बच्ची कहीं उनके पास चली गयी तो हम उसके बिना कैसे जियेंगे?’’
‘‘नेहा वह बच्ची नहीं है उन्नीस साल की हो गयी है। उसे सब कुछ पता चल ही गया है तो उसके सवालों के जवाब तो देने ही होंगे न।’’
‘‘ कह दो न कि हमारे पास अब उनका कोई पता फोटो नहीं है’’
‘‘नेहा आर्या हमारी बच्ची है हम उसका विश्वास एक बार तोड़ चुके हैं ,उसे कुछ न बता कर अब उस विश्वास को वापस पाना है तो उसकी जिज्ञासा शान्त करनी ही होगी, नहीं तो उसे चैन नहीं मिलेगा।हो सकता है हम उसे खो भी दें ।’’
‘‘नहीं ’’कह कर नेहा चुप हो गयी ,काश उसे पता होता कि रीमा उसके जीवन में इतना बड़ा बवंडर ले आएगी तो वह उसे अपने घर कभी भी आमंत्रित न करती।
मानस और नेहा ने रोहित और अनीता की फोटो आर्या को दिखायी।आर्या बहुत देर तक फोटो देखती रही और कुछ सोचती रही। मानस और नेहा कोई अंदाज नहीं लगा पा रहे थे कि आर्या के मन में क्या चल रहा है।
आर्या ने एक और धमाका कर दिया ‘‘ मैं अपने इन मम्मी पापा से मिलना चाहती हूँ।’’
नेहा ने कहा ‘‘ पर बेटी वह तो अमेरिका में रहते हैं।’’
‘‘ आप मुझसे झूठ बोल रही हैं, पापा ने बताया कि उनके पास पैसे की कमी थी।’’ आर्या ने अविश्वास से कहा।
मानस ने समझाया ‘‘ मैंने तुम्हे उस समय की बात बतायी थी, कुछ सालों के संघर्ष के बाद उसे अच्छी नौकरी मिल गयी और वह अपने परिवार के साथ अमेरिका चला गया।’’
‘‘ तो मेरी उनसे फोन पर बात करवाइये और प्लीज यह मत कहियेगा कि आपके पास उनका कान्टैक्ट नम्बर नहीं है।’’आर्या ने मानस और नेहा के समक्ष इन्कार करने के सारे रास्ते बन्द कर दिये थे। नेहा के पैरों तले धरती खिसक गयी वह बेचैन हो कर टहलने लगी उसने आर्या को विश्वास दिलाने का पूरा प्रयास किया कि वह उसे कितना प्यार करती है उसके बिना नहीं रह सकती पर आर्या को एक ही धुन थी कि उसे अपने मम्मी-पापा से बात करनी है, मिलना है।
हार कर मानस ने रोहित को फोन करके सारी बात बतायी और आर्या से बात करने को कहा। वह चाहता था कि रोहित आर्या को समझाये कि अब उसके मम्मी-पापा मानस और नेहा ही हैं पर उसकी आशा के विपरीत रोहित ने तो उसे अमेरिका आने का आमंत्रण दे डाला।
मानस ने कहा ‘‘ यार रोहित तुम यह क्या कह रहे हो तुमको तो आर्या को समझाना चाहिये था, तुम उसे अमेरिका बुला रहे हो। क्या तुम नहीं जानते कि हम उसके बिना नहीं रह पायेंगे। कहीं वह वहीं रुक गयी तो ?’’
‘‘ अरे यार ठीक है मैंने उसे तुमको दे दिया पर वह हमारा खून है उससे मिलने का, एक बार देखने का अधिकार तो हमारा बनता है न ’’रोहित ने कहा।
आर्या ने खाना पीना छोड़ दिया एक तो अपने जन्मदाता मम्मी पापा से मिलने का कौतूहल और अमेरिका घूमने का आकर्षण। उधर नेहा ने भी बिस्तर पकड़ लिया पर आर्या के हठ का जीत हुई मानस और नेहा ने ईश्वर पर निर्णय छोड़ कर दिल पर पत्थर रख कर निर्णय कर लिया आर्या को रोहित और अनीता से मिलवाने का।
नया देश, वहाँ का ग्लैमर, अमेरिका वाले मम्मी-पापा का गर्मजोशी भरा स्वागत, उनकी सम्पन्नता, बहुत कुछ बाहंे फैलाये प्रतीक्षारत था अमेरिका में आर्या के लिये।
पच्चीस दिन कब बीत गये पता ही नहीं चला।वहाँ एक भाई बहन मॉली और मोनू से उसकी ऐसी दोस्ती हो गयी कि लगता ही नहीं था कि पहली बार मिले हैं। शायद इसी को कहते हैं कि खून, खून को खींचता है। जाने का समय करीब आने लगा। एक दिन नेहा और मानस भारत लौटने से पहले खरीददारी करने बाजार गये थे । आर्या ,मॉली और मोनू के साथ बातों में मगन थी अतः उसने जाने से मना कर दिया। बातों बातों में आर्या ने कहा ‘‘ यहाँ इतने दिन कैसे बीत गये पता ही नहीं चला आई विल रियली मिस यू आल।’’
अनीता ने कहा ‘‘ तुम यहीं से ग्रैजुशन कर लो इंडिया में क्या रखा है।’’
रोहित ने कहा ‘‘ वैसे आइडिया बुरा नहीं है।’’
आर्या ने कहा ‘‘ एक बार मम्मी पापा से पूछ लें ।’’
आर्या को पता था कि नेहा और मानस कभी भी उसे भेजना नहीं चाहेंगे वह तो अमेरिका ही नहीं आना चाह रहे थे।
मोनू बोला ‘‘ नाउ यू आर एडल्ट व्हाट नीड टु आस्क’’
मॉली ने कहा ‘‘ यू हैव युअर ओन स्पेस यू लिव ऐस यू विश एंड एन्जाय युअर लाइफ’’
अनीता ने उसे प्यार करते हुए कहा ‘‘ इसी बहाने कुछ साल हमारे पास भी रह लोगी।’’
रोहित बोला ‘‘ तुम जब चाहो नेहा मानस से मिलने जा सकती हो तुम्हे कोई रोकेगा नहीं
मोनू बोला ‘‘ हाउ लकी यू आर यू हैव टू पैरेन्ट्स ’’
मॉली बोली ‘‘ लकी माई फुट यहाँ तो हम एक ही मॉम डैड की रोक टोक से परेशान हो जाते हैं इस बेचारी को तो दो को झेलना पड़ेगा।’’इस बात पर मॉली,मोनू दोनो हँस पड़े।
आर्या ने नेहा से कहा ‘‘ मम्मी यह लोग कह रहे हैं कि मैं यहीं से ग्रैजुएशन कर लूँ’’
‘‘ क्या तुम्हारा दिमाग तो नहीं खराब हो गया है ?तुम हम दोनों को छोड़ दोगी?’’ नेहा ने कहा।
‘‘ मम्मी आपको छोड़ने को कहाँ कह रही हूँ, मैं तो यहाँ पढने की बात कह रही हूँ।वैसे भी मैं आपके पास तो रहती न । दिल्ली बंगालुरू चेन्नैई यूनीवर्सिटी के फार्म तो भरे हैं जहाँ एडमिशन हो जाता वहीं जाती ,तो अमेरिका ही क्यों नहीं?’’ आर्या ने अपना तर्क रखा।
‘‘ वह दूसरी बात है पर हम तुम्हे अमेरिका में पढ़ाने का खर्चा नहीं उठा सकते’’ नेहा ने कहा।
‘‘ मम्मी डैड मेरा खर्चा उठाने को तैयार हैं।’’
‘‘ क्यों वह तुम्हारा खर्च क्यों उठाएंगे तुम मेरी बेटी हो’’ नेहा ने बिफरते हुए कहा।
‘‘ पर अगर वह अपनी खुशी से मेरा खर्च उठा रहे हैं तो आपको प्राब्लम क्या है?’’ आर्या ने कहा।
मानस उठ कर रोहित के पास गये उन्होने कहा ‘‘ रोहित तुम मेरी बेटी को क्यों भड़का रहे हो?’’
रोहित ने कहा ‘‘ तुम भूल रहे हो कि मैंने तुम्हे अपनी बेटी दी है।’’
‘‘ पर आर्या कानूनन हमारी बेटी है तुम अब हमसे उसे नहीं ले सकते ।’’
रोहित ने कहा ‘‘मानता हूँ मानस अब वह तुम्हारी बेटी है पर सच तो यह है मानस कि हमने तुम्हे देने का निर्णय कर तो लिया पर बाद में पछता रहे थे । वह तो एक क्षणिक विचार था कि उसे जन्म दें कि न दें, जो हमने तुमसे शेअर किया और तुमने हमसे मँाग लिया तो हम मना नहीं कर पाये। अनीता अब तक मुझे कोसती है।’’
‘‘ तो यह कहो कि तुम्हार नीयत में खोट आ गया है ’’ मानस ने आक्रोश में कहा।
‘‘ नहीं मानस तुम हमारी बात समझो मैं तुमसे आर्या को छीनना नहीं चाहता पर आज जब मेरे पास सम्पन्नता है तो मेरे मन में यह अवश्य आता है कि मॉली और मोनू की तरह आर्या भी अच्छी से अच्छी शिक्षा पाये ’’ रोहित ने अपने मन की बात कही।
अनीता ने कहा ‘‘ विश्वास मानिये वह आपकी ही बेटी रहेगी हम तो बस उसका भविष्य बेहतर बनाना चाहते हैं।’’
मानस और नेहा को यह प्रस्ताव मंजूर नहीं था पर आर्या को तो मानो वह जादू की छड़ी हाथ लग गयी थी जो उसे झिलमिलाते सपनों के संसार में ले जा सकती थी। इस तीव्र प्रकाश की चकाचौंध में मम्मी-पापा का प्यार दुलार सब धूमिल पड़ गया था।
नेहा के आँसू और मानस के तर्क मनुहार सब हार गये आर्या के हठ के समक्ष, उसे तो बस अब अमेरिका में पढ़ना था।अमेरिका में पढ़ना रहना हर युवा का सपना होता है उसे अवसर मिल रहा है फिर उसको तो परिवार भी मिल गया तो वह क्यों समझती मानस और नेहा की बात? नेहा और मानस के संसार में अँधेरा छा गया पर वह क्या करते जब आर्या स्वयं ही जाने के हठ पी अटल थी।विवश हो उन्हे उसे भेजना ही पड़ा।
शाम ढल गयी थी मानस और नेहा को लाइट जलाने की भी सुध नहीं थी दोनो चुप बैठे थे उन्हें पता ही नहीं चला कि कब चाय ठंडी हो गयी। वह दोनो ही कहीं खोये थे शायद उन दोनो के बीच पसरा मौन ही बोल रहा था।
घंटी की आवाज ने उनके मौन को भी न टिकने दिया। नेहा ने कहा ‘‘ मानस काम वाली बाई से कह दो आज खाना नहीं बनेगा। ’’
मानस ने दरवाजा खोला तो चिल्लाये ‘‘नेहा जल्दी आओ’’ नेहा घबरा कर बाहर भागी । दरवाजे पर ही आर्या थी, उसे देखते ही वह उसके गले से लिपट गयी। नेहा के तो आँसुओं की झड़ी लग गयी फिर अचानक उसने आर्या को स्वयं से अलग करते हुए कहा ‘‘ तू यहाँ कैसे आयी ?
आर्या ने कहा ‘‘ कैसे मतलब ,अपने घर आने के लिये भी कैसे सोचना पड़ता है क्या?’’
नेहा ने बेचैनी से कहा ‘‘फिर कितने दिन बाद जाना है?’’
आर्या ने मुस्करा कर कहा ‘‘पढ़ने के बाद जाऊँगी अगर कोई जॉब मिल गया तो और आप दोनो साथ चले तो।’’
‘‘ मतलब तू वहाँ से ग्रैजुएशन नहीं करेगी?’’मानस ने अविश्वास से पूछा।
‘‘ पापा आप मुझे क्यों बार-बार भगा रहे हैं मुझे यही पढ़ना है इतनी आसानी से आपका पीछा नहीं छोडू़ंगी ।’’
‘‘और तेरे मॉम-डैड ?‘‘
‘‘वह तो मोनू मॉली के मॉम-डैड है । मॉम को तो आप जैसा हलवा बनाना भी नहीं आता और न ही डैड पापा की तरह मेरे साथ चेस खेल पाते हैं।’’कह कर आर्या सोफे पर पैर फैला कर ऐसे बैठ गयी जैसे अभी-अभी कालेज से लौटी हो।
फिर कुछ झेंप कर बोली ‘‘ मैं झूठ नहीं बोलूंगी कुछ देर तो मैं वहाँ के ग्लैमर के जाल में उलझ गयी थी पर क्या करूँ आपके प्यार का जाल इतना स्टं्राग था कि मैं काट ही नहीं पा रही थी।’’
‘‘ मम्मी वहाँ तो किसी को किसी से मतलब ही नहीं । लगता ही नहीं कि वह चार लोग एक फैमिली में रहते हैं। सबको अपनी-अपनी स्पेस चाहिये, मैं नहीं रह सकती उनके साथ ,मुझे तो अपना घर ही प्यारा है, बिना स्पेस वाला ‘‘ नेहा और मानस ने आर्या को गले लगा लिया।


– अलका प्रमोद

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