कहानी : सॉरी! माँ – पूनम अहमद
सॉरी! माँ
दोपहर दो बजे मेरी आँख खुली ,उनींदी आँखों से सामने टंगी घडी पर नजर डाली ,मैंने आज फिर कॉलेज की छुट्टी कर ली थी ,इंजीनियरिंग का मेरा अंतिम वर्ष है पर कॉलेज जाने की मेरी इच्छा होती ही नहीं है ,आँखें बंद किये किये ही मैंने रात में लिखी अपनी कविताओं के बारे में सोचा ,बड़ा संतोष हुआ ,एक आत्मिक ख़ुशी हुई ,आजकल मैं बहुत खुश हूँ ,मैं कवितायेँ तो चार पांच सालों से एक डायरी में लिखता रहता था ,पर एक दिन जब मैंने सोशल मीडिया पर अपनी कुछ कवितायेँ पोस्ट कर दीं और मुझे अच्छा रिस्पांस मिला तो मेरे उत्साह की कोई सीमा नहीं थी ,मैंने अपना पेज भी बना लिया ,मेरे प्रशंसकों की संख्या बढ़ती जा रही है जिसे देखकर मैं फूला नहीं समाता हूँ ,जीवन में और क्या चाहिए ,इतनी कम उम्र में इतनी प्रसिद्धि !
मेरी एक ई बुक भी आ गयी है ,मैं अब अपने छोटे मोटे खर्चों के लिए कमाई करने लगा हूँ ,कॉलेज की फीस ही पापा देते हैं ,बाकी मैं मैनेज करने लगा हूँ ,माँ हैरान हैं मेरी प्रतिभा से ,रोज जब वे उठती हैं ,रात में लिखी मेरी कविता पढ़कर खुश हो जाती हैं ,पापा इंजीनियरिंग पूरी करने के लिए बहुत दवाब डाल रहे हैं पर मेरा मन तो अब कविताओं में ही रमता है ।कुछ साल पहले मैंने इसकी कल्पना भी नहीं की थी ,मुझसे पांच साल छोटा मेरा भाई आशीष जब कहता है कि ”अमन भैया ,आपके पेज को कितने लाइक्स मिल चुके हैं न ,कितने फैन्स हैं आपके !”तो मैं गर्व से तन जाता हूँ ,मैंने लेटे लेटे अपने फ़ोन पर फेसबुक खोला ,वाह ,रात तीन बजे कविताएं पोस्ट करके सोया था ,इतने लाइक्स और कमैंट्स !ख़ुशी से भर उठा मैं ,माँ को बताऊंगा ,कितनी खुश होंगीं ,आजकल मैं माँ सीरीज पर कवितायें लिख रहा हूँ ,बहुत पसंद की जा रही हैं ,मैंने फिर टाइम देखा ,अभी तो माँ लंच करके सो रही होंगीं ,मैंने लेटे लेटे ही अपना मेल चेक किया ,यह क्या !माँ ने मुझे मेल लिखा है ,इतना लम्बा !अरे ,पर क्यों ?दूसरे रूम में लेटी माँ को मुझे मेल भेजने की क्या जरुरत है ?माँ भी न !आजकल बीमारी में लेटे लेटे बोर हो रहीं होंगीं ,कुछ भी लिख दिया होगा ,पढ़ता हूँ !जैसे जैसे मैंने माँ का मेल पढ़ना शुरू किया ,मेरी सारी सुस्ती हवा हो गयी ,मैं बेड से टेक लगाकर उठकर बैठ गया ,लिखा था ,””सुबह नहाकर निकली ,इतने में ही थकान हो गयी थी ,बेड पर लेटकर आज उदास मन से बहुत कुछ सोचती रही ,बहुत अजीब सी तबीयत है ,अब दिल की मरीज हो गयी हूँ ,अब अपना ध्यान भी तो खुद ही रखना पड़ता है ,छयालीस साल की उम्र में दिल धोखा दे जाएगा ,यह कब सोचा था ,मैं तो इतनी फिट थी ,अपने स्टैमिना पर खुद ही हैरान हो जाती थी ,अब लेटी तो पिछले महीने की वह रात फिर याद आ गयी जब रात एक बजे सांस लेने में परेशानी हो गयी थी ,एक चीख सी निकली थी तो बराबर में सोये सुनील की भी आँख खुल गयी थी ,उस दिन मौत मुझे छूकर गुजर गयी थी ,महसूस किया था मैंने ,सुनील और तुमने फौरन हॉस्पिटल पहुंचा दिया था ,साँसे अभी लिखी थी तो बच गयीं हूँ फिलहाल ,पर कितने दिन ?पता नहीं ,रिपोर्ट्स देखकर तो सभी हैरान ही रह गए थे न !मेरा हार्ट सिर्फ तीस परसेंट ही काम कर रहा है ।ठीक है ,अब जैसा किस्मत में होगा ,तुम और आशीष मुझे रेस्ट करने के लिए कहते हो ,डॉक्टर्स नेभी थका देने वाले काम मना किये हैं ।सब परिचित ,रिश्तेदार देखने आकर वापस जा चुके हैं ।खाना बनाने के लिए अच्छी मेड मिली नहीं ,बस साफ़ सफाई करने वाली रमा बाई से मिलकर काम चला रही हूँ पर आज तुम्हे बताना चाहती हूँ कि इस गृहस्थी को संभालने में मैंने सालों लगा दिए हैं पर आज मेरी जरुरत के समय मुझे तुम लोगों से जिस केयर और सहयोग की आशा थी ,वह मैं तलाशती ही रह जाती हूँ , मैंने आज सुबह फेसबुक देखा तो तुम्हारी रात को लिखी हुई कविता दिखी ,काफी लाइक्स और कमैंट्स थे ,तुम रात रात भर जागकर कवितायें लिखते हो ,दिन भर सोते हो ,तुमने अपना अजीब सा रुटीन बना लिया है ,बातें भी खूब बड़ी बड़ी करते हो ,आज तुम्हारी ”माँ ”सीरीज की कविता मैंने भी पढ़ी तो मुझे मन ही मन व्यंग्यपूर्ण हसी सी आ गयी ,माँ के त्याग ,ममता से भरी कविता ,पर यथार्थ की दुनिया में तुम्हारे जीवन में तुम्हारे लफ्जों के मायने हैं ?कल मुझे तुम कह रहे थे ,”माँ ,मैं आजकल मदर की फीलिंग्स पर सीरीज लिख रहा हूँ ,आपको डेडिकेट करूँगा ।”मैंने प्रत्यक्षतः ख़ुशी दिखाई ,माँ हूँ न ,मेरा काम ही है ,बच्चों की ख़ुशी में खुश रहने की कोशिश करना पर मेरा मन आहत है क्योकि सच तो यह है कि मुझे इस समय तुम्हारे बड़े बड़े शब्दों में पिरोयी गयी कविता नहीं ,तुम्हारा प्यार ,साथ चाहिए ,इस समय मुझे माँ सीरीज में ऑनलाइन प्यार नहीं ,मेरे तन मन को अपनी देखरेख से सुकून पहुंचाता ,मेरी बीमारी में मेरा ध्यान रखता बेटा चाहिए ।एक ही फ्लैट में पूरा दिन अपने रूम से न निकलकर ,कविताओं से संसार में डूबे ,रात भर जागते ,दिन भर सोते ,शाम होते होते ,”माँ ,आप आराम कर रहीं हैं न ?अपना ध्यान रख रहीं हैं न ?वी नीड यू ।टेक केयर ,”कहते बेटे के माँ के लिए अपने प्यार का ढिंढोरा पीटते शब्द नहीं चाहिए ,मुझे इस समय उभरते प्रतिभावान कवि को दरकिनार रख एक बेटे की देखरेख चाहिए जो यह देख ले कि मैं नहाकर निकली तो कितनी थकी हुई थी ,मुझे उस समय कुछ फल या जूस दे दे ,मेरे हाथ से मेरा टॉवल लेकर तार पर टांग दे ,मुझे जबरदस्ती लिटा दे , सुनील टूर पर हैं ,आशीष लापरवाह है ,आत्मकेंद्रित है पर तुम तो भावुक हो तभी तो इतनी गहरी कवितायें लिख पाते होंगे ,पर क्या जो गहरे शब्दों में खुद को डुबो देते हैं ,असली जीवन में एक ही घर में रहकर अपनी माँ के दुःख दर्द उन तक नहीं पहुँच पाते ?या वे अनसुना कर देते हैं ,मुझे नहीं पता कि मेरा कितना जीवन है अब ,बस यही चाहती हूँ कि इन दिनों बस मेरा बेटा यह देख ले कि मैंने कुछ खाया भी है या नहीं ,दवाई ली या नहीं ,कभी वह मुझे अपने हाथों से कोई फल काट कर दे दे ,कभी मेरे पास यूँ ही लेटा रहे ,कभी अपने अनाड़ी हाथों से जबरदस्ती मुझे कुछ बनाकर खिलाये ,कभी यह कह दे कि बस ,”माँ ,आप आराम करो जिससे आप जल्दी ठीक हो जाओ ,काम तो हम दोनों भाई मिलकर कर लेंगें ,”पर तुम दोनों तो अक्सर सो रहे होते हो या लैपटॉप पर होते हो ,डोरबेल होने पर भी मैं ही उठती हूँ ,तुम्हे पता है कभी कभी तो मुझसे उठा भी नहीं जाता ,मन अपने बेटों को आवाजें देता रह जाता है ,पर मैं हैरान भी हूँ ,मुझे जल्दी ठीक भी तुम्ही लोगों के लिए होना है ,जानती हूँ कि मुझे कुछ हो गया तो इस घर का ईश्वर ही मालिक है ,इस घर के तीनों पुरुष सदस्य एक दूसरे का ध्यान कभी रख ही नहीं पाएंगे ,विधाता ने यही तो कमाल किया है कि हर स्थिति में माँ ,पत्नी अपने पति ,बच्चों का हित ही सोचती है ,भले ही उसकी अस्वस्थता में कोई उसका ध्यान न रखे ,उसके दुःख दर्द अनकहे रह जाएँ ,उन्ही के लिए वह शीघ्रातिशीघ्र स्वस्थ होना चाहती है जिनका साथ वह अस्वस्थता में तलाशती रह गयी ।
अब सोच रही हूँ कि तुम्हे तो बहुत प्रसिद्ध कवि बनना है ,तुम इस क्षेत्र में दूर तक जाना चाहते हो ,तुम्हे पोएट्री में बहुत ऊंचाइयों को छूना है ,मेरी शुभ कामनाएं ,आशीर्वाद तुम्हारे साथ हैं पर आज मैं कुछ और सोच रही हूँ ,तुम अपनी माँ की भावनाएं महसूस किये बिना ”माँ ”सीरीज के शब्दों में भावनाएं पिरो पाओगे ? कवि और लेखक तो दूसरों के दुःख दर्द महसूस करके उन्हें शब्दों में ऐसे ढालते चले जाते हैं कि हर पाठक को वह अपनी बात लगने लगती है ,क्या तुम्हारे शब्द पाठक के दिल को छू पाएंगे जब तुम्हारी अपनी अस्वस्थ माँ अपनी कोमल भावनाओं को तुम्हारे साथ बांटने का इंतज़ार करती रह जाती है ?मैं चाहती हूँ एक मशहूर कवि बनने से पहले तुम ऐसा बेटा बन जाओ कि अपनी माँ की अनकही बातें भी समझ सको ,कल्पनाओं में नहीं ,यथार्थ में !विधाता ने नारी मन जटिल तो बहुत बनाया है पर इतना भी नहीं कि कोई बेटा चाहे तो इसे जान न पाए ।
तुम्हे आहत नहीं करना चाहती पर अगर तुम्हे दूसरों के दिलों को ,उनकी भावनाओं को छू जाने वाली रचनाएं लिखनी हैं तो पहले उन्हें महसूस करना होगा ,तुम्हारी ”माँ ”पर लिखी कवितायें मेरे ही दिल को नहीं छू पातीं ,मैं उन्हें शब्द समझकर पढ़ती हूँ और भूल जाती हूँ ,वे किसी और को क्या छू पाएंगीं ?ऊंचाइयों को छूने के लिए अभी तुम्हे जमीन पर भी अपनी ठोस पकड़ बनानी है ,शाब्दिक नहीं ,यथार्थ की दुनिया महसूस करनी है ,अपने आसपास की दुनिया के दुःख दर्द महसूस करने हैं ,ये जो इतने मशहूर सफल कवि ,लेखक ,शायर हुए हैं न ,वे अपने तो अपने ,दूसरों के दुःख दर्द में भी ऐसे डूबकर निकले हैं कि उनका एक एक लफ्ज पढ़ने वाले को झकझोर गया है ,अमन !अपनी माँ की ही भावनाओं से अछूते रह जाओगे तो ”माँ ”सीरीज कितनी आगे तक ले जा सकोगे “मैं भी तो तुम्हे सफलता के शिखर पर देखना चाहती हूँ ,बस !अब थक गयी हूँ ।”
तुम्हारी माँ
मेरी आँखों के सामने अचानक सब धुंधला हो गया ,मेरे गालों पर गीलापन बढ़ता जा रहा था ,मैं सर पकड़कर बैठ गया ,माँ तो कोई कवि या लेखिका भी नहीं है ,फिर भी उनका एक एक शब्द मुझे झिंझोड़ गया ,यह क्या हो गया मुझसे ! उस रात डॉक्टर ने कितना साफ़ साफ़ कहा था ,इन्हे लाने में कुछ सेकण्ड्स की भी देर हो जाती तो —–ओह्ह !डॉक्टर ने ये तीन महीने चिंताजनक बताये हैं ,माँ बहुत बीमार हैं ,पापा मीटिंग के लिए टूर पर हैं ,आशीष मस्तमौला है ,और मैं ? मैं क्या करता हूँ उनके लिए ? रातों को जागकर ”माँ ”पर लम्बी लम्बी कवितायें लिखता हूँ ,दिन भर सोता हूँ ,शाम से रात तक इस फील्ड में आगे बढ़ने के लिए अपने नए कवि मित्रों के साथ किसी कैफ़े में बैठकर विचार -गोष्ठी करता हूँ ,रात को आता हूँ तो माँ जितना भी बना पाती हैं ,कभी खा लेता हूँ ,कभी पसंद न आने पर आशीष और मैं बाहर से कुछ आर्डर करके मंगा लेते हैं ,माँ थकी सी वह खाना उठाकर फ्रिज में रख देती हैं और शायद अगले दिन वही खा लेती हैं ।मैं शर्मिंदगी के अथाह सागर में डूबता जा रहा था ,माँ को तो आराम करना है ,पर कैसे करेंगीं वे आराम !उनके हालचाल पूछकर कविताओं में डूब जाता हूँ ,क्या कर रहा हूँ मैं! एक ही फ्लैट के दूसरे बैडरूम में लेटी अपनी अस्वस्थ माँ से इतना दूर हूँ मैं कि आज उन्हें अपने मन की बातें शेयर करने के लिए मुझे मेल लिखना पड़ा है ,छी,लानत है मुझ पर !
मैंने बराबर में सोये आशीष पर नजर डाली ,यह भी क्या सीखेगा मुझसे ,सबसे दूर अपने रूम में अकेले जीना ?मैंने धीरे से जाकर माँ के बैडरूम का दरवाजा खोल कर झाँका ,माँ सो रही थीं ।फिर पूरे घर पर नजर डाली ,सब अस्तव्यस्त ,हर कोना बिखरा हुआ ,माँ को कैसे चैन आता होगा जब घर की यह हालत देखती होंगीं ,मेरी रुलाई फूट पड़ी ,कितना दुःख होता होगा उन्हें ,दो युवा बेटों के होते हुए उनका कोई साथ नहीं ,कोई आराम नहीं ,पता नहीं ,अपने लिए क्या बनाती हैं ,क्या खाती हैं ,आजकल कितनी चुप रहने लगी हैं ,मैंने फ्रिज खोलकर देखा ,कोई फल नहीं है घर में ,माँ को फल कितने पसंद हैं !वाशिंग मशीन के पास कपड़ों का ढेर लगा है ,दो दिन पहले माँ ने मशीन चलाई थी ,कपडे सुखाने में ही हांफ गयी थी माँ ,मुझे याद आया जब शाम को माँ थकी सी हाथ में कपडे लेकर अचानक चेयर पर बैठ गयीं थीं ,मैं उस समय ‘माँ ‘पर ही तो कविता लिख रहा था ,,मैंने क्यों नहीं उनके हाथ से लपड़े लेकर उन्हें लिटा दिया ?माँ के मेल का एक एक शब्द मेरे दिमाग में हथौड़े की तरह बज रहा था ।फ्रेश होकर मैंने उनके लिए उनकी पसंद की अदरक वाली चाय बनाई ,पहली बार !पहली बार इस बीमारी में उनके लिए कुछ किया ,मन पता नहीं कैसा हो रहा था ,मैंने एक ग्लास पानी ,चाय ,कुछ बिस्किट्स ट्रे में रखे और उनके रूम में पहुंचा ,मेरी आहट से माँ ने आँखें खोल दीं ,माँ से नजरें मिली तो खुद को रोक नहीं पाया और ट्रे एक तरफ रख उनके पास लेटकर उनसे लिपटकर जोर से रो पड़ा , मेरा रोम रोम सॉरी कह रहा था ,माँ तो माँ है न ,सब समझ गयीं थीं ,उन्होंने जैसे ही मेरा सर सहलाया ,मैंने भी महसूस कर लिया कि माँ ने मुझे माफ़ कर दिया है ,वे समझ गयीं हैं कि मैं अपनी गलती महसूस कर चुका हूँ ,उनके पास अपनी दुनिया में खोया ,आत्मकेंद्रित कवि नहीं ,उनका बेटा लेटा था ,वे यही तो चाहती थी न ,बस इतनी सी बात मैं समझ नहीं पाया था ,हम दोनों ने एक शब्द भी नहीं कहा था पर दोनों एक दूसरे की भावनाये महसूस कर रहे थे ,इस मौन में बड़ा स्नेह था ,शान्ति थी ,ममता थी ।मैं इस मौन से अभिभूत होता चला गया था ।हम दोनों की ही आँखों से माँ बेटे के प्रेम की अविरल गंगा की गंगोत्री जैसे निशब्द बहती चली जा रही थी ।
—-पूनम अहमद