कहानी : कहीं मेला कहीं अकेला – पूनम अहमद

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कहीं मेला कहीं अकेला

‘‘यह रिश्ता मुझे हर तरह से ठीक लग रहा है. बस अब तनु आ जाए तो इसे ही फाइनल करेंगे,’’ गिरीश ने अपनी पत्नी सुधा से कहा.

‘‘पहले तनु हां तो करे, परेशान कर रखा है उस ने, अच्छेभले रिश्ते में कमी निकाल देती है…संयुक्त परिवार सुन कर ही भड़क जाती है. अब की बार मैं उस की बिलकुल नहीं सुनूंगी और फिर यह रिश्ता उस की शर्तों पर खरा ही तो उतर रहा है. पता नहीं अचानक क्या जिद चढ़ी है कि बड़े परिवार में विवाह नहीं करेगी, क्या हो गया है इन लड़कियों को,’’ सुधा ने कहा.

‘‘तुम्हें तो पता ही है न, यह सब उस की बैस्ट फ्रैंड रिया का कियाधरा है… ऐसी कहां थी हमारी बेटी पर आजकल के बच्चों पर तो दोस्तों का प्रभाव इतना ज्यादा रहता है कि पूछो मत,’’ गिरीशजी बोले.

दोनों पतिपत्नी चिंतित और गंभीर मुद्रा में बातें कर ही रहे थे कि तनु औफिस से

आ गई. मातापिता का गंभीर चेहरा देख चौंकी, फिर हंसते हुए बोली, ‘‘फिर कोई रिश्ता आ गया क्या?’’

उस के कहने के ढंग पर दोनों को हंसी आ गई. पल भर में माहौल हलकाफुलका हो गया. तीनों ने साथ बैठ कर चाय पी. फिर गिरीश का इशारा पा कर सुधा ने कहा, ‘‘इस रिश्ते में कोई कमी नहीं लग रही है, यहीं लखनऊ में ही लड़के के मातापिता अपने बड़े बेटेबहू के साथ रहते हैं. छोटा बेटा मुंबई में ही कार्यरत है, वह दवा की कंपनी में प्रोडक्ट मैनेजर है.’’

तनु पल भर सोच कर मुसकराती हुई बोली, ‘‘अच्छा, वहां अकेला रहता है?’’

‘‘हां.’’

‘‘फिर यह तो ठीक है. बस, उस के मातापिता बारबार मुंबई न पहुंच जाएं.’’

‘‘क्या बकवास करती हो तनु,’’ सुधा को गुस्सा आ गया, ‘‘उन का बेटा है, क्या वे वहां नहीं जा सकते? कैसी हो गई हो तुम? ये सब क्या सीख लिया है? हम आज भी तरसते हैं कोई बड़ा हमारे सिर पर होता तो कितना अच्छा होता पर सब का साथ सालों पहले छूट गया और एक तुम हो… क्या ससुराल में बस पति से मतलब होता है? बाकी रिश्ते भी होते हैं, उन की भी एक मिठास होती है.’’

‘‘नहीं मां, मुझे घबराहट होती है, रिया बता रही थी…’’

सुधा गुस्से में  खड़ी हो गईं, ‘‘मुझे उस लड़की की कोई बात नहीं सुननी… उस लड़की ने हमारी अच्छीभली बेटी का दिमाग खराब कर दिया है…हमारे परिवार में हम 3 ही हैं. थोड़े दिन पहले तुम जौइंट फैमिली में हर रिश्ते का आनंद उठाना चाहती थी पर इस रिया ने अपनी नैगेटिव बातों से तुम्हारा दिमाग खराब कर दिया है.’’

तनु को भी गुस्सा आ गया. वह भी पैर पटकती हुई अपने रूम में चली गई.

गिरीश और सुधा सिर पकड़े बैठे रह गए.

तनु की बैस्ट फ्रैंड रिया का विवाह 6 महीने पहले ही दिल्ली में हुआ था. उस की ससुराल में सासससुर और पति अनुज थे, समृद्ध परिवार था. रिया भी अच्छी जौब में थी. तनु से ही रिया के हालचाल मिलते रहते थे. दिन भर दोनों व्हाट्सऐप पर चैट करती थीं. अकसर छुट्टी वाले दिन दोनों की बातें सुधा के कानों में पड़ती थीं तो वे मन ही मन बेचैन हो उठती थीं. उन्होंने अंदाजा लगा लिया था कि रिया सासससुर की, यहां तक कि अनुज की भी कमियां निकाल कर तनु को किस्से सुनाती रहती है. वह तनु की बैस्ट फ्रैंड थी,  जिस के खिलाफ एक शब्द भी सुनना तनु को मंजूर नहीं था. तनु को हर बात सुधा से भी शेयर करने की आदत थी इसलिए वह कई बातें उन्हें खुद ही बताती रहती थी.

कभी तनु कहती, ‘‘आज रिया का मूड खराब है मम्मी, उसे अनुज ने मौर्निंग वाक के लिए उठा दिया, उसे सोना था, बेचारी अपनी मरजी से सो भी नहीं सकती.’’

एक दिन तनु ने बताया, ‘‘रिया की सास हैल्थ पर बहुत ध्यान देती हैं… उसे वही बोरिंग टिफिन खाना पड़ता है.’’

सुधा ने पूछा, ‘‘उस की सास ही टिफिन बनाती हैं?’’

‘‘हां, रिया औफिस जाती है तो वे ही घर का सारा काम देखती हैं. उन के यहां कुक है पर उस की सास अपनी निगरानी में ही सब खाना तैयार करवाती हैं.’’

‘‘यह तो बहुत अच्छी बात है. रिया को खुश होना चाहिए, इस में शिकायत की क्या बात है?’’

क्या खुश होगी बेचारी, उसे वह टिफिन अच्छा नहीं लगता. वह किसी और को खिला देती है. अपने लिए कुछ मनचाहा और्डर करती है बेचारी.

‘‘इस में बेचारी की क्या बात है? उस की सास हैल्दी खाना बनवा कर क्या गलत कर रही है?’’

तनु को गुस्सा आ गया, ‘‘आप उस की परेशानी क्यों नहीं समझतीं?’’

‘‘यह कोई परेशानी नहीं है. बेकार के किस्से सुना कर तुम्हारा टाइम और दिमाग दोनों खराब करती है वह लड़की.’’

2 दिन तो तनु चुप रही, फिर आदतन तीसरे दिन ही शुरू हो गई, ‘‘रिया के सारे रिश्तेदार दिल्ली में ही रहते हैं. कभी किसी के यहां कोई फंक्शन होता है, तो कभी किसी के यहां. पता नहीं  कितने तो रिश्ते के देवर, ननदें हैं, जो छुट्टी वाले दिन टाइमपास के प्रोग्राम बनाते रहते हैं. रिया थक जाती है बेचारी.’’

सुधा ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. रिया की बातें सुनसुन कर थक गई थीं. तनु की सोच बिलकुल बदल गई थी. अच्छीखासी स्नेहमयी मानसिकता की जगह नकारात्मकता ने ले ली थी.

कुछ दिन बाद तनु के उसी रिश्ते की बात को आगे बढ़ाया गया. तनु और रजत मिले. दोनों ने एकदूसरे को पसंद किया. सब कुछ सहर्ष तय कर दिया गया. रजत मुंबई में अकेला रह रहा था, इसलिए उस के मातापिता गौतम और राधा को उस के विवाह की जल्दी थी. विवाह अच्छी तरह से संपन्न हो गया था.

रिया भी अनुज के साथ आई थी. वह तनु से कह रही थी, ‘‘तुम्हारी तो मौज हो गई तनु. सब से दूर अकेले पति के साथ रहोगी. काश, मुझे भी यही लाइफ मिलती पर वहां तो मेला ही लगा रहता है.’’

इस बात को सुन कर सुधा को गुस्सा आया था. सब रस्में संपन्न होने के बाद 1 हफ्ते बाद तनु और रजत मुंबई जाने की तैयारी कर रहे थे. तनु के औफिस की ब्रांच मुंबई में भी थी. उस की योग्यता को देखते हुए उस का ट्रांसफर मुंबई ब्रांच में कर दिया गया. रजत के भाई विजय, भाभी रेखा और 3 साल का भतीजा यश और स्नेह लुटाते सासससुर सब के साथ तनु का समय बहुत अच्छा बीता था.

बीचबीच में  रिया भी निर्देश देती रहती थी, ‘‘मुंबई आने के लिए कहने की फौर्मैलिटी में मत पड़ना, नहीं तो वहां सब डट जाएंगे आ कर.’’ भरपूर स्नेह और आशीर्वाद के साथ दोनों परिवार उन्हें एअरपोर्ट तक छोड़ने आए.

तनु ने मुंबई पहुंच कर रजत के साथ नया जीवन शुरू किया. रजत के साथ ने उस का जीवन खुशियों से भर दिया. दोनों सुबह निकलते रात को आते. वीकैंड में ही दोनों को थोड़ी राहत रहती. सुबह लताबाई आ कर घर का सारा काम कर जाती. तनु फटाफट किचन का काम देखते हुए तैयार होती. 2 जनों का काम ज्यादा नहीं था पर रात को लौट कर किचन में घुसना अखर जाता.

रजत ने कई बार कहा भी था, ‘‘डिनर के लिए भी किसी बाई को रख लेते हैं.’’

‘‘पर हमारा कोई आने का टाइम तय नहीं है न और फिर घर की चाबी देना भी सेफ नहीं रहेगा.’’

‘‘चलो, ठीक है, मिल कर कुछ कर लिया करेंगे.’’ तनु की रिया से अब भी लगातार चैट चलती रहती थी. रिया उस के आजाद जीवन पर आंहें भरती थी. 5 महीने बीत रहे थे. रजत को 1 हफ्ते की ट्रैनिंग के लिए सिंगापुर भेजा जा रहा था. उस ने कहा, ‘‘अकेली कैसे रहोगी? लखनऊ से मातापिताजी को बुला लेते हैं…वैसे भी अभी तक घर से कोई नहीं आया.’’

‘‘नहीं, अकेली कहां, रिया का बहुत मन कर रहा है आने का, वह आ जाएगी… मातापिताजी को तुम्हारे लौटने के बाद बुला लेंगे,’’ तनु ने अपनी तरफ से बात टालने की कोशिश की तो रजत मान गया.

तनु ने मौका मिलते ही रिया को फोन किया, ‘‘अपना प्रोग्राम पक्का रखना, कोई बहाना नहीं.’’

‘‘अरे, पक्का है. मैं पहुंच जाऊंगी. मुझे भी इस भीड़ से छुट्टी मिलेगी. तेरे पास शांति से रहूंगी 1 हफ्ता.’’

जिस दिन रजत गया, उसी दिन शाम तक रिया भी मुंबई पहुंच गई. दोनों सहेलियां गले मिलते हुए चहक उठी थीं. बातें खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थीं. देर रात तक रिया के किस्से चलते रहे. सासससुर की बातें, देवरननदों में हंसीमजाक के किस्से, रिश्तेदारों के फंक्शनों के किस्से.

अगले दिन तनु ने छुट्टी ले ली थी. दोनों खूब घूमीं, मूवी देखी, शौपिंग की, रात को ही घर वापस आईं.

रिया ने कहा, ‘‘हाय, ऐसा लग रहा है दूसरी दुनिया में आ गई हूं. तेरे घर में कितनी शांति है तनु, दिल खुश हो गया यहां आ कर.’’

तनु मुसकरा दी, ‘‘अब थक गई हैं, सोती हैं. कल औफिस जाऊंगी, शाम को जल्दी आ जाऊंगी. सुबह मेड आ कर सब काम कर देगी, अपने टिफिन के साथ तेरा खाना भी बना कर रख दूंगी, आराम से उठना कल.’’

अगले दिन सब काम कर के तनु औफिस चली गई. बारह बजे रिया का फोन आया, ‘‘तनु, क्या बताऊं, मजा आ गया अभी सो कर उठी हूं, कितनी शांति है तेरे घर में, कोई आवाज नहीं, कोई शोर नहीं.’’

थोड़ी देर बातें कर रिया ने फोन काट दिया. तनु सुधा को भी रिया के आने का प्रोगाम बता चुकी थी. सुधा ने कहा था, ‘‘कितने अच्छे लोग हैं, बहू को आराम से 1 हफ्ते के लिए फ्रैंड से मिलने भेज रखा है, फिर भी रिया कद्र नहीं करती उन का.’’

रिया ने आराम से फ्रैश हो कर खाना खाया, टीवी देखा, फिर सो गई. शाम को तनु आई तो दोनों ने चाय पीते हुए ढेरों बातें कीं. रिया की बातें खत्म ही नहीं हो रही थीं.

अचानक रिया ने कहा, ‘‘तू भी तो बता कुछ…कुछ किस्से सुना.’’

‘‘बस, किस की बात बताऊं, हम दोनों ही तो हैं यहां, सुबह जा कर रात को आते हैं, पूरा हफ्ता ऐसे ही भागतेदौड़ते बीत जाता है, वीकैंड पर ही आराम मिलता है. घर में तो कोई बात करने के लिए भी नहीं होता.’’

‘‘हां कितनी शांति है यहां. वहां तो घर में घुसते ही सासूमां चाय, नाश्ता, खाने की पूछताछ करने लगी हैं. मैं तो थक गई हूं वहां. आए दिन कुछ न कुछ चलता रहता है.’’

तनु आज अपने ही मनोभावों पर चौंकी. उस ने दिल में एक उदासी सी महसूस की. उस ने रिया की बातें सुनते हुए डिनर तैयार किया, बीचबीच में रिया के पति और उस के सासससुर फोन पर बातें करते रहे थे.

दोनों जब सोने लेटीं तो दोनों के मन में अलगअलग तरह के भाव उत्पन्न हो रहे थे. रिया सोच रही थी वाह, क्या बढि़या लाइफ जी रही है तनु. घर में कितनी शांति है, न कोई शोरआवाज, न किसी की दखलंदाजी कि क्या खाना है, कहां जाना है, अपनी मरजी से कुछ भी करो. वाह, क्या लाइफ है. उधर तनु सोच रही थी रिया इतने दिनों से ससुराल का रोना रो रही है कि काश, वह अकेली रह पाती पर मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा कि अकेले रहने में क्या सुख है? यहां तो हम दोनों के अलावा सुबह बस बाई दिखती है जो मशीन की तरह काम कर के चली जाती है. हमारी चिंता करने वाला तो कोई भी नहीं यहां. मायके में भी हम 3 ही थे, कितना शौक था मुझे संयुक्त परिवार की बहू बन कर हर रिश्ते का आनंद उठाने का. यहां हर वीकैंड में किसी मौल में या कोई मूवी देख कर छुट्टी बिता लेते हैं. घर आते हैं तो थके हुए. कोई भी अपना नहीं दिखता. इस अकेले संसार में ऐसा क्या सुख है, जिस के लिए रिया तरसती रहती है. ऐसे अकेलेपन का क्या फायदा जहां न देवर की हंसीठिठोली हो न ननद की छेड़खानी और न सासससुर की डांट और उन का स्नेह भरा संरक्षण.

दोनों सहेलियां एकदूसरे के जीवन के बारे में सोच रही थीं. पर तनु मन ही मन फैसला कर चुकी थी कि वह कल सुबह ही लखनऊ फोन कर ससुराल से किसी न किसी को आने के लिए जरूर कहेगी. उसे भी जीवन में हर रिश्ते की मिठास को महसूस करना है. अचानक उस की नजर रिया की नजरों से मिली तो दोनों हंस दीं.

रिया ने पूछा, ‘‘क्या सोच रही थी?’’

‘‘तुम्हारे बारे में और तुम?’’

‘‘तुम्हारे बारे में,’’ और फिर दोनों हंस पड़ीं, पर तनु की हंसी में जो रहस्यभरी खनक थी वह रिया की समझ से परे थी.

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