पुण्य तिथि-आरती पांड्या

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पुण्य तिथि

     रोज़ की तरह आज भी सुबह उठकर मैं अपने लिए चाय बनाने सीधा किचन की तरफ चला गया l फ्रिज खोलकर दूध का भगौना निकाल ही रहा था कि नज़र सामने दीवार पर टंगे केलेण्डर पर पड़ी जहां आज की तारीख लाल रंग के गोल घेरे में से मेरी तरफ झांक रही थी और तभी याद आया कि आज तो तनु की पुण्यतिथि है l मैंने दूध का भगौना वापिस फ्रिज में रखा और आकर बालकनी में बैठ गया जहां सामने तनु के मनपसंद फ़र्न के पौधे हवा में हल्के हल्के ऐसे हिल रहे थे जैसे तनु उनको सहलाते हुए उनसे बातें कर रही हो l पल भर को लगा कि तनु अभी चाय की ट्रे और आज का ताज़ा अखबार लेकर आ ही रही होगी l लेकिन अगले ही पल सिर झटक कर खुद को झूठे भ्रम से बाहर निकाला और फ़र्न से आँखें हटा कर इधर उधर देखने लगा l लेकिन तनु ने तो घर के कोने कोने पर अपनी ऐसी छाप छोड़ी है कि उसके चले जाने के बाद भी उसके होने का अहसास हर पल ज़िंदा रहता है l

     अड़तालीस सालों का साथ होता भी तो बहुत लंबा है l इतने सालों तक एक छत के नीचे एक साथ रहते हुए दो अजनबी इतने अच्छे दोस्त बन जाते हैं कि एक दूसरे के बगैर दोनों का कोई वजूद ही नहीं रहता है और जीवन साथी अगर तनुजा जैसी हो तब तो पति सिर्फ एक चाभी भरा खिलौना बन कर ही रह जाता है , जिसका हर काम वक्त पर हो जाता है और हर फरमाइश बगैर कहे पूरी कर दी जाती है l वाकई तनु ने इन अड़तालीस सालों में मुझे पूरी तरह से अपना आश्रित ही बना दिया था और अब उसके ना रहने पर जब सारे काम खुद करने पड़ते हैं तब पता चलता है कि कई बार तनु क्यों यहाँ बालकनी में बैठ कर थकी सी आवाज़ में कहती थी ‘ आदत डाल लो अपने काम खुद करने की , मुझसे अब नहीं उठाए जाते हैं तुम्हारे नखरे l’ और मैं उसे छेड़ते हुए कहता था कि ‘ आदत तो तुम्हीं ने बिगाड़ी है , अब झेलो l’

    तब कहाँ मालूम था कि उसकी वह थकान बढ़ती उम्र की वजह से नहीं बल्कि शरीर को घुन की तरह चाट रहे केंसर की वजह से थी l लेकिन मेरी ज़िद्दी पत्नी यह मानने को या फिर मुझे बताने को तैयार ही नहीं थी कि वो बीमार है और उसे इलाज की ज़रूरत है l मैंने कितनी बार कहा कि चलकर डाक्टर को दिखा लेते हैं ,लेकिन उसने हर बार मेरी बात को यह कह कर टाल दिया कि ‘डाक्टर तो ज़रूर कोई ना कोई बीमारी बता ही देगा और सैंकड़ों जाँचें और इलाज शुरू कर देगा l मैं अपने शरीर को डाक्टर से ज़्यादा अच्छी तरह समझती हूँ l कोई रोग नहीं है मुझे l बस बुढापे की थकान है और उसका कोई इलाज नहीं होता है l’ उसकी इस दलील को सुन कर मैं भी चुप हो गया और सोचा कि तनु ठीक ही कह रही है , उम्र के साथ शरीर में कमजोरी तो आ ही जाती है l मुझे क्या पता था कि अपनी झूठी बातों से मुझे यूंही बहला कर एक दिन अचानक मुझसे इतनी दूर चली जाएगी  कि उसकी एक झलक पाने को भी तरस जाऊंगा l

   तनु के जाने के दो दिन बाद जब मेरी बेटी शर्मिष्ठा अपनी माँ की साड़ियाँ वृद्धाश्रम में देने के लिए उसकी अलमारी खोल कर बैठी तब साड़ियों की तहों के नीचे छिपी एक मेडिकल रिपोर्ट देख कर शर्मिष्ठा ने उसे पलटते हुए मुझसे पूछा , “ पापा, माँ को केंसर था , यह बात आपने मुझसे क्यों छिपाई ?” मैंने अपनी बेटी की तरफ सूनी आँखों से देखते हुए जवाब दिया  “बेटा , तेरी माँ ने हम दोनों से ही यह बात छिपाई l पता नहीं कब वो यह जांच करवाने गई थी और कब से दवाइयां खा रही थी ! कल डाक्टर श्रीधर के क्लिनिक से फोन आया कि ‘मिसिज़ रॉय को आज चेकअप के लिये क्लीनिक आना था वो अभी तक नहीं आई हैं क्या बात है ?’ उस आदमी से जब चेकअप के बारे में पूछा तब पता चला कि पिछले दो महीनों से उसका लंग केंसर का इलाज डाक्टर श्रीधर के यहाँ चल रहा था l यह सुनकर मैं सीधा डाक्टर श्रीधर से बात करने उनके क्लीनिक पंहुच गया l मैंने जब उनको तनु की मृत्यु के बारे में बताया तब उन्होंने मुझे डांटना शुरू कर दिया और बोले कि इतनी देर में मरीज़ का इलाज क्यों शुरू करवाया l “मिसिज़ रॉय जब मेरे पास आईं तब तक केंसर आखिरी स्टेज पर पंहुच चुका था l लेकिन मिस्टर रॉय आपकी पत्नी बहुत जीवट वाली महिला थीं l मैंने जब उनसे पूछा कि उनके साथ घर का कोई सदस्य क्यों नहीं आता है तो बोलीं कि अभी से उनलोगों को अपनी मौत के बारे में बता कर उनके चेहरे की ख़ुशी नहीं छीनना चाहती l”

 मिष्ठी बेटा , तेरी माँ हर पल ज़िंदगी से दूर जा रही थी और मुझे इस बात की कोई जानकारी ही नहीं थी l उसने अपनी आखरी सांस तक हम लोगों को अपने जाने का एहसास ही नहीं होने दिया और यही कहती रही कि बढ़ती उम्र की वजह से कमजोरी लगती है l” शर्मिष्ठा अपनी माँ की मेडिकल रिपोर्ट हाथ में लिए गुमसुम बैठी रह गई थी तब मैंने ही उसके हाथ से वह रिपोर्ट खींच कर उसका ध्यान बांटना चाहा था और तभी उस रिपोर्ट की परतों में से एक कागज नीचे गिरा l शर्मिष्ठा उसे खोलते ही बोली ,  “मेरे नाम माँ ने चिट्ठी छोड़ी है !” …….. और उसमें लिखा था ……

   मेरी प्यारी मिष्ठी ,

                 मैं जानती हूँ तू इस समय मेरी अलमारी में से साड़ियाँ निकाल रही है और मेरी मेडिकल रिपोर्ट तेरे हाथ पड़ गई है l बेटा , नाराज़ मत होना l मैं तुम लोगों के चेहरों पर अपनी मौत का खौफ़ देखते हुए दुनिया से नहीं जाना चाहती थी , इसीलिए तुझे और तेरे पापा को अपनी बीमारी के बारे में नहीं बताया था l अगर पहले बता देती तो तुम दोनों मेरे जाने के पहले ही हंसना भूल चुके होते और मेरा घर मेरे जीते जी उदासी में डूब गया होता l बेटा , किसी के भी माँ बाप हमेशा साथ नहीं रहते हैं और दुनिया से जाने का हरएक का कोई ना कोई बहाना ज़रूर होता है l मेरी विदाई इस बीमारी के बहाने से ही लिखी है तो कोई बात नहीं ज़िन्दगी ने मुझे बहुत कुछ दिया l इस वजह से मेरे मन में कोई मलाल नहीं है l ईश्वर ने इतना प्यारा परिवार दिया , तेरे बच्चों को गोद में खिला लिया , इससे ज़्यादा एक इंसान को क्या चाहिए ? बस अब अपने पापा का ख्याल रखना और हो सके तो उन्हें अपने घर ले जाना क्योंकि यहाँ अकेले रहेंगे तो हर वक्त मुझे ही याद करके दुखी होते रहेंगे l एक बात और बतानी है बेटा,  मेरी अलमारी के ऊपर वाले खाने में एक लिफ़ाफ़े के अन्दर कुछ रुपये रखे हैं और किचेन में एक गत्ते के डिब्बे के अन्दर कुछ नए बर्तन रखे हैं वो दोनों चीज़ें सुशीला को दे देना और अगर  चाहो तो मेरी कुछ अच्छी साड़ियाँ भी उसे दे देना l उसकी बेटी की शादी होने वाली है उसमें उसको कुछ मदद मिल जाएगी तो अच्छा रहेगा l’

  शर्मिष्ठा ने अपनी माँ की आखिरी इच्छा पूरी करने के बाद मुझे अपने साथ अपने घर ले जाने की रट लगानी शुरू कर दी थी  पर मैं तनु के अपने साथ होने के अहसास को इस घर में अकेला छोड़ कर भला कैसे जा सकता था इसलिए मैंने स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि मैं उसकी माँ की यादों के साथ इसी घर में रहूँगा l शर्मिष्ठा ने बहुत जिद करी लेकिन मैं उसके साथ नहीं गया क्योंकि तनु के जाने के बाद अब उसके पौधों का और  उसके घर की हर एक चीज़ का ख्याल तो मुझे ही रखना पडेगा l उसने ज़िन्दगी भर खुद से ज़्यादा दूसरों का ख्याल रखा था तो अब मैं उसकी यादों को तो कम से कम सहेज कर रखूंगा ही l

    हर छोटी से छोटी चीज़ का ख्याल रखना तनुजा की आदत में शुमार था l किसको क्या पसंद है क्या नहीं इस बारे में  उससे ज़्यादा जानकारी शायद कोई और रख ही नहीं सकता था l मुझे याद है , शर्मिष्ठा का आठवां जन्मदिन आने वाला था और वो अपनी माँ के पीछे पड़ी हुई थी कि अपने जन्मदिन पर वो बार्बी की तरह डौल हाउस में बैठ कर केक काटेगी l मैं तो बेटी की यह जिद सुनकर बहुत घबरा गया था कि ऐसी सजावट करवाने के लिए कहाँ से  डेकोरेटर मिलेगा और ना जाने कितना खर्च करना पड़ेगा लेकिन तनु बिलकुल भी परेशान नहीं हुई और उसने डेकोरेशन का जिम्मा अपने ऊपर लेकर मुझे चिंतामुक्त होने को कह दिया l मुझे नहीं मालुम था कि मेरी पत्नी इतनी अच्छी कलाकार है ! उसने रातों रात हमारे लिविंग रूम को साड़ियों से सजा कर उसमें चाद सितारे , बादल और ना जाने क्या क्या लगा कर परी देश जैसा माहौल तैयार कर दिया था  और शर्मिष्ठा को भी पंख लगा कर परी बना दिया था l उस सजावट और तैयारी को देखने के बाद शर्मिष्ठा अपनी डौल हॉउस की फरमाइश भूल कर परी बन कर पूरे कमरे में नाचती रही थी l  

  तनुजा की कितनी बातें और ना जाने कितनी यादें हैं जिन्हें सोचते और याद करते हुए मुझे इन दो  सालों में कभी भी अकेलापन महसूस ही नहीं हुआ l हर पल तनुजा मेरे आसपास ही रही है पर आज एक कसक खाए जा रही है l अगर तनु ज़िंदा होती तो इस साल हमलोग अपने विवाह की स्वर्ण जयंती मनाते l उसको पचासवीं वैवाहिक वर्षगाँठ मनाने का बहुत चाव था l अक्सर कहा करती थी कि पचासवीं एनिवर्सरी पर बड़ी पार्टी देंगे और उस दिन हमलोग दोबारा शादी करके अगले पचास सालों के लिए अपना कांट्रेक्ट रिन्यू कर लेंगे l लेकिन मेरी बदकिस्मती से  कांट्रेक्ट का रिन्युअल छोड़ पहला वाला ही पूरा नहीं हो सका l जब से उसे मालुम पडा था कि उसके पास वक्त बहुत कम बचा है शायद तभी से उसे हर एक काम पूरा करने की बड़ी जल्दी पड़ने लगी थी l हर समय अधूरे काम पूरे करने में ही उसका ध्यान रहता था l ख़ास तौर से अपने ज़रूरतमंद प्रियजनों की सहायता के लिए उसकी भाग दौड़ कुछ ज़्यादा ही बढ़ गई थी l

  तभी तो उसके मरने की खबर सुनकर परिचितों से ज़्यादा अपरिचित और वे गरीब अपनी माताजी के लिये आंसू बहा रहे थे जिनके लिए तनुजा घर घर घूम कर चन्दा इकठ्ठा करके उन ज़रूरतमंदों की मदद किया करती थी l कोई बीमार हो तो डाक्टर से पहले माताजी यानि तनुजा से सलाह ली जाती थी l माताजी अपने बच्चों को देखने झट से पंहुच भी जाती थीं और ज़रुरत पड़ने पर मरीज़ को अस्पताल भी पंहुचाती थीं l किसी के परिवार में झगड़ा हो तो माताजी उसे सुलझाने पंहुच जाती थीं l पिछले कुछ सालों में तो उसने अपना पूरा समय जैसे ज़रूरतमंदों को ही समर्पित कर दिया था l मैं उसे कई बार छेड़ता था कि ‘ देवी जी  एक गरीब और ज़रूरतमंद आपके घर में भी है जिसे आपकी मदद की हर वक्त ज़रुरत पड़ती है , उस पर भी थोड़ी दया दृष्टि रखिये l’ आमतौर पर मेरी बात वो हंस कर टाल देती थी लेकिन अपनी मौत से कुछ दिन पहले मुझसे बोली  कि ‘गरीब की मदद करने से हमारी तकलीफ में ईश्वर बिना मांगे ही सहायता करता है इसलिए ज़रूरतमंदों की सहायता ज़रूर करनी चाहिए l’ मुझे क्या पता था कि वो उस समय अपनी तकलीफ की बात कर रही थी l शायद उसे कहीं यह उम्मीद रही होगी कि गरीबों की दुआएं उसको मौत के मुंह से निकाल लाएंगी l

   लेकिन मेरी तनुजा की उसके ईश्वर ने कोई मदद नहीं करी l जब उसकी तबियत अचानक उस रात खराब हुई और हमलोग उसे लेकर अस्पताल जा रहे थे तो गाडी में तनु का सिर अपनी गोद में रखे हुए मैं उसके पीले पड़ते चेहरे की तरफ देख कर मन ही मन ईश्वर से अपनी पत्नी को उम्र के चंद और साल देने के लिए प्रार्थना करता रहा था मगर फिर भी वो चली गई , अस्पताल पंहुचने से पहले ही उसने दम तोड़ दिया l कहाँ था उस समय तनुजा का ईश्वर , जब मेरी बेटी अपनी माँ को  होश में लाने के लिए बार बार उसे आवाजें दे रही थी l कोई प्रार्थना और किसी दुआ से कोई ऐसा चमत्कार नहीं हुआ जिससे  मेरी तनु की ज़िन्दगी वापिस लौट आती l हम तनुजा को अस्पताल लेकर इसलिए गए थे कि उसकी साँसें वापिस आजाएंगी मगर  वापिस लौटा तो सिर्फ उसका निर्जीव और बर्फ जैसा ठंडा शरीर l

   तनु , तुम दुनिया से ज़रूर चली गई हो पर मेरे जीते जी इस घर से और मेरी यादों से पल भर के लिए भी नहीं जा सकोगी l

   अपनी तनु की यादों  में खोया मैं निढाल सा कुर्सी पर बैठा था तभी देखा कि बालकनी की रेलिंग पर बैठी कुछ चिड़ियाएँ चोंच मार मार कर शोर मचा रही हैं l तब ख्याल आया कि मैं यहाँ बैठा तनु को याद कर रहा हूँ और बाहर उसके चिड़िया और कबूतर दाने के लिए मेरी राह देख रहे होंगे l जल्दी से उठकर दाने का बर्तन लेकर नीचे लॉन में पंहुचा तो कबूतरों के झुण्ड ने घेर लिया और मैं उनको दाना डालने में लग गया l कुछ ही देर में सिर के ऊपर गाडी का हॉर्न बजने लगा तो आँख उठा कर देखा कि मेरा दामाद लॉन के सामने गाडी रोक कर खडा था l दाने का डिब्बा ज़मीन पर खाली करके उसकी कार के पास पंहुचा तो वो बोला , “ पापा , आप अभी तक तैयार नहीं हुए ?  कपडे बांटने के लिए वृद्धाश्रम जाना है ना ! “

  “ मैं तो भूल ही गया था बेटा , बस अभी पांच मिनिट में आता हूँ l “ गाडी के अन्दर झाँक कर देखा तो शर्मिष्ठा नज़र नहीं आई l विशाल मेरी बात शायद समझ गया इसलिए  झट से बोला  “ मिष्ठी बच्चों को लेकर मंदिर गई है ,माँ के नाम का हवन करवाने , वहीँ से वृद्धाश्रम पंहुचेगी l”

 वृध्दों को कपडे बांटने के बाद मिष्ठी ने कहा “ पापा आज माँ के मुंहबोले बेटे कब्बन का जन्मदिन है उसके घर चल कर उसको भी उपहार और रुपये दे आते हैं l”

  कब्बन के घर से लौटते लौटते शाम हो गई l कपडे बदल कर तनु की तस्वीर के सामने बैठ कर दिनभर की सारी गतिविधियों की रिपोर्ट उसे देने लगा तो लगा ही नहीं कि वो अब नहीं है l क्योंकि पहले भी सिर्फ सुनती ही थी बोलती बहुत कम थी और अब बोलना बिलकुल बंद हो गया है l फर्क सिर्फ इतना है कि पहले सामने कुर्सी पर बैठी रहती थी और आज मेज़ पर तस्वीर की शक्ल में माला से ढंकी बैठी है l 

– लेखिका आरती पांड्या

1 thought on “पुण्य तिथि-आरती पांड्या

  1. बहुत ही मर्म स्पर्शीय, आंखों में नमी के साथ पढ़ी।

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