एहसास-आरती पांड्या
एहसास
महिला विद्यापीठ की मनोविज्ञान शास्त्र की क्लास में आज मैडम मुखर्जी ने अपना लेक्चर समाप्त करने के बाद जब सभी छात्राओं को विभिन्न आयु वर्ग के लोगों से बात चीत करके और उनके रहन सहन का निरीक्षण करके मानव के विभिन्न स्वभावों के विषय में रिपोर्ट तैयार करके लाने को कहा तो कुछ लड़कियों ने तो ऐसा बोरिंग फील्ड वर्क देने के लिए डाक्टर मुखर्जी को नीरस , बूढ़ी बिल्ली और ना जाने क्या क्या उपाधियाँ दे डालीं , पर अनन्या ,जो कि मनोविज्ञान के विषय में बहुत ज़्यादा रुचि रखती है और मिस मुखर्जी की चहेती छात्रा है , तुरंत काम को अंजाम देने की तैयारियों में जुट गई l
अनन्या का रुझान शुरू से ही बाल मनोविज्ञान की तरफ रहा है , इसलिए उसने उसी पर जानकारी एकत्रित करके अपनी रिपोर्ट तैयार करने का निश्चय किया और कुछ ही दिनों में विभिन्न वर्गों के बच्चों से मिलकर उनकी जीवन शैली और व्यवहार के विषय में काफी सामग्री एकत्रित कर ली l लेकिन एकत्रित सामाग्री से तैयार किए गए लेख को पढ़ कर उसे संतुष्टि नहीं मिल रही थी इसलिए अपनी फाइनल रिपोर्ट तैयार करने से पहले उसने जब एक बार डाक्टर मुखर्जी से राय लेने के लिए उनसे बात करी तो अपनी इस मेधावी छात्रा की रुचि देखते हुए उन्होने सुझाव दिया कि सिर्फ आम जन जीवन से जुड़े बच्चों की सोच को जानने या समझने से उसका शोध पूरा नहीं होगा इसलिए उसे ऐसे बच्चों से भी संपर्क करना चाहिए जो परिवारों में नहीं बल्कि किसी सुधार केंद्र में या बाल कारावास में रहते हैं l
अपनी शिक्षिका के सुझाव पर अनन्या ऐसे ही कुछ बच्चों से बात करने के लिए एक सरकारी बाल सुधार केंद्र में पंहुच गई l
काई की मोटी पर्त चढ़ी पीली चारदीवारी और लकड़ी के पुराने भारी भरकम फाटक के ऊपर लगा ‘बाल वाड़ी’ का बोर्ड देख कर अनन्या फाटक की छोटी खिड़की से अंदर घुसी तो कुर्सी पर ऊंघते चौकीदार ने एक खस्ताहाल रजिस्टर आगे बढ़ाते हुए अपना नाम पता लिखने को कहा और दोबारा ऊँघने लगा l अनन्या ने रजिस्टर में नाम पता लिखने के बाद अंदर कदम बढ़ाए तो बगीचे में घास काटते हुए दो बच्चों को देख कर वो उधर ही चली गई l एक लड़का तो चौदह पंद्रह साल का रहा होगा और दूसरा कुछ छोटा लग रहा था l जब अनन्या ने उनसे बात करने की कोशिश करी तो बड़ा लड़का अकड़ कर बोला कि ‘उन लोगों को किसी भी बाहर वाले से बात करने की ‘परमिसम’ ( पर्मिशन ) नहीं है इसलिए पहले बड़े साहब से ‘आडर’ लेकर आओ l’ अनन्या ने दूसरे लड़के से उसका नाम पूछा तो वो वहाँ से ऐसे भागा जैसे उसने कोई भूत देख लिया हो l यह देख कर बड़ा लड़का हंस कर बोला , “ कहा ना हिरोनी ! जा के पहिले बड़े साहब का आडर लाओ तब जो पूछोगी वह बताएँगे l” लड़के की बदतमीजी से चिढ़ी अनन्या ने इधर उधर नज़र दौड़ाई तो सामने लाइन से बने कमरों में से एक कमरे में कुछ बच्चे दरियाँ बनाने में वयस्त दिखाई दिये और दूसरे में कुछ बच्चे बैठ कर कुछ थैलियों पर लेबल लगाने का काम कर रहे थे l तीन चार बच्चे झाड़ू से पूरे केंद्र की सफाई कर रहे थे l लगभग सभी बच्चे डरे सहमे और कुपोषण के शिकार थे l एक बार तो उसकी इच्छा हुई की उनमें से किसी बच्चे से बात करने की कोशिश करे लेकिन फिर उसने पहले वहाँ के अधिकारी से मिलना ही उचित समझा और बाल केंद्र के दफ्तर की तरफ मुड़ गई l तभी लकड़ी के बड़े फाटक के खुलने और किसी गाड़ी के अंदर आने की आवाज़ सुनाई पड़ी तो उसने देखा कि पुलिस की एक जीप फाटक के अंदर आई और दफ्तर की तरफ जाकर वहाँ से थोड़ी दूर आगे जाकर रुक गई l फिर उसमें से एक सिपाही ने उतर कर पीछे बैठे बच्चों को नीचे उतरने को कहा तो करीब बारह से पंद्रह की उम्र के तीन बच्चे उतर कर एक तरफ खड़े होगए l अनन्या वहीं ठिठक कर उन बच्चों को देखने लगी l दो लड़के तो चेहरे से ही शातिर लग रहे थे लेकिन तीसरा बच्चा बहुत निरीह और सीधा लग रहा था और एक कपड़े के थैले को कस कर कलेजे से चिपकाए हुए डरा सा खड़ा था l
अपने हाथ का डंडा ज़मीन पर खटकाते हुए सिपाही उनलोगों से डांटकर बोला कि ‘आज से यही उन लोगों का घर है l अगर यहाँ कोई शरारत करी तो सीधे जेल में जाकर चक्की पीसनी पड़ेगी इसलिए जैसा कहा जाये वैसा ही करते रहें l’ और फिर तीनों को डंडे से खदेड़ता हुआ वहाँ से आगे ले गया l सिपाही के व्यवहार से विचलित अनन्या ने सोचा कि यहाँ के हालात की सच्चाई जानने के लिए पहले कुछ देर तक छिप कर दफ्तर के अंदर की गतिविधि और बात चीत को देखने सुनने के बाद ही यहाँ के अधिकारी से मिलना ठीक रहेगा l अनन्या ने दफ्तर की खिड़की के गंदे शीशे से अंदर देखने की कोशिश करी तो अंदर दो मेज़ें और कुछ कुर्सियाँ रखी नज़र आईं l एक मेज़ के पीछे बैठा आदमी शायद अखबार पढ़ रहा था और दूसरी मेज़ के पीछे बैठा आदमी कुछ फाइलें पलट रहा था l ‘ यह केंद्र के अधिकारी का दफ्तर तो नहीं लग रहा है l’ अनन्या ने सोचा और वो बड़े साहब के कमरे की तलाश में आगे बढ़ ही रही थी कि तभी अंदर से बात चीत की आवाज़ सुनाई पड़ी और उसके पैर वहीं थम गए l
जो आदमी फाइलें देख रहा था वो दूसरे से कुछ कह रहा था l अनन्या ने कान लगाकर उनकी बात सुननी शुरू कर दी l फाइल देखते हुए आदमी ने अखबार पढ़ रहे व्यक्ति को खरे साहब के नाम से संबोधित करते हुए पूछा , “ खरे साहब , ये जो कंबल अभी खरीदे गए हैं उन्हें इस महीने के हिसाब में दिखाना है या पिछले महीने के …” खरे ने अखबार एक तरफ रखते हुए जवाब दिया , “किशन लाल , छह महीनों से तुम्हें काम सिखा रहे हैं मगर तुम रहे वही घोंघे के घोंघे l भाई मेरे , ये सारे खर्चे पिछले फाईनेंसियल ईयर में डाल कर बेलेन्स निल दिखाओ , वरना इस साल की गिराण्ट नहीं मिलेगी l और ध्यान रहे कि इस साल का बजट बनाते समय उसमें यहाँ के सभी बच्चों के लिए जूते , कपड़े और किताबें खरीदने की बात लिखना तभी तगड़ी गिराण्ट मिलेगी , समझे कि नहीं ?”
“ जी साहब समझ गए “ किशन लाल ने खींसे निपोरते हुए जवाब दिया तो खरे साहब ने धीमी आवाज़ में समझाया , “ सरकारी दफ़तर में सत्तबादी हरिसचंदर बनोगे तो जिंदगी भर फटीचर ही रहोगे l अपना उसूल तो यह है कि सरकार से गिराण्ट खींचो और अपना घर भरो , समझे ?” ‘तो यह है सच्चाई इन सुधार केन्द्रों की l’ अनन्या ने सोचा l ‘जिनके लिए सरकार धन देती है वो बेचारे तो फटेहाल और आधे पेट रहते हैं और ये चोर अपनी जेबें भरते हैं l’ तभी उसने देखा कि थोड़ी देर पहले जो तीन बच्चे जीप से उतारे गए थे उन्हें लेकर पुलिस का सिपाही अब दफ्तर की तरफ ही आ रहा था l अनन्या सिपाही के पास गई और अपना परिचय देकर उन तीनों बच्चों के बारे में पूछने लगी तो सिपाही ने बताया कि ‘तीनों ही मार पीट और चोरी के जुर्म में पकड़े गए हैं’ और यह कह कर वो तीनों को लेकर दफ्तर के अंदर चला गया तो अनन्या भी उनलोगों के पीछे पीछे चली गई l सिपाही ने खरे को देख कर सलाम ठोका तो खरे कुर्सी पर सीधा होकर बैठ गया और बोला , “ हवलदार साब , आज फिर नए लौंडे पकड़ लाये ? हवलदार ने जवाब दिया , “ हाँ बड़े बाबू ! सम्हालिए अपने नए लंगूरों को l” फिर तीनों बच्चों को डंडे से धकियाते हुए बड़े बाबू को नमस्ते करने को कहा तो तीनों ने एक स्वर में नमस्ते का राग अलापते हुए हाथ जोड़ दिये l
खरे ने किशन लाल से एंट्री रजिस्टर निकालने को कहा और तभी उसकी नज़र अनन्या पर पड़ी तो उसने सिपाही से उसके बारे में पूछते हुए कुछ अश्लील सा इशारा किया जिस पर हवलदार बोला कि ‘यह मैडम उसके साथ नहीं आई हैं बल्कि बड़े साहब से मिलना चाहती हैं और इन बच्चों से बात करना चाहती हैं l’ खरे यह सुन कर थोड़ा घबराया और अनन्या से कुर्सी पर बैठने के लिए कह कर किशन लाल से मैडम के लिए चाय मंगवाने को कहा l फिर अनन्या से पूछा , “ मैडम , आप कौन से अखबार के दफ्तर से आई हैं ? देखिये कुछ अखबार वाले ना जाने क्या क्या गलत बातें छाप कर हमारे केंद्र की बदनामी कर रहे हैं l आप अपने अखबार में यहाँ की सच्चाई लिखिएगा l हम आपको बताएँगे कि यहाँ रहने वाले सभी बच्चों का हम कितना ख्याल रखते हैं l सच मानिए मैडम इन बच्चों को हम लोग अपने सगे बच्चों से भी अधिक प्रेम से रखते हैं l”
अनन्या ने जब खरे को बताया कि वो प्रेस रिपोर्टर नहीं बल्कि एक छात्रा है और अपने विद्यालय की तरफ से इन बच्चों से बात करने आई है तो खरे कुछ निश्चिंत हुआ और बोला , “ ठीक है मैडम , बस हम इन लंगूरों की एंट्री कर दें फिर आपको बड़े साहब से मिलवा देते हैं l” किशन लाल तब तक चाय ले आया तो अनन्या चाय पीने लगी और खरे नए लड़कों के नाम , उम्र वगैरा पूछकर रजिस्टर में लिखने लगा l दो लड़कों ने तो बगैर डरे अपने बारे में बताते हुए यह भी बता दिया कि किस जुर्म में उनको पकड़ा गया है, मगर तीसरा बच्चा कोई जवाब नहीं देता है और सहम कर अपना झोला और कस कर पकड़ लेता है l सिपाही ने उसकी पसली में अपना डंडा अड़ाकार धमकाते हुए जवाब देने को कहा तो खरे बोला , “लगता है पहली बार चोरी करी है तभी इतना डर रहा है l” हवलदार ने अपना सिर हिलाते हुए कहा , “बड़े बाबू , इसकी सकल पर मत जाओ , बड़ा खतरनाक लौंडा है l अरे चोरी करने के बाद पत्थर मार कर दुकानदार का सिर भी फोड़ दिया था इस छिटंकी ने l” सिपाही और कुछ कहता इससे पहले ही बच्चा ज़ोर से चिल्लाकर बोला कि उसने कोई चोरी नहीं करी है l हवलदार ने बच्चे के सिर पर एक टीप लगाते हुए आवाज़ नीची रखने का हुक्म दिया तो बच्चे की आँखें छलछला आईं l अनन्या बच्चे की शक्ल पर छाई ईमानदारी और डर को देख कर उसके पास गई और उसके कंधे पर हाथ रख कर प्यार से उसे समझाते हुए उसका नाम पूछा तो उसने धीरे से अपना नाम हसन बताया l खरे ने तीनों लड़कों के नाम रजिस्टर में चढ़ाने के बाद रजिस्टर किशन लाल को पकड़ाते हुए उसे बजट में तीन नए बच्चों के खर्चे बढ़ाने का आदेश दिया और फिर मेज़ पर रखी घंटी बजाते हुए बच्चों से बोला “ देखो लौंडों , यहाँ पर कायदे से रहना , यहा से भागने की कोशिश मत करना और जो भी काम सिखाया जाय उसे मन लगा कर सीखना तो तुम लोगों की ज़िंदगी बन जाएगी ,समझे !” तभी एक चपरासी अंदर आया तो खरे ने उसे तीनों नए लड़कों को लेजाकर काली प्रसाद के हवाले करने को कहा l
चपरासी उनलोगों को लेकर कमरे से बाहर निकल गया और चलते हुए उन तीनों को काली प्रसाद के गुस्से के बारे में बताते हुए उससे डर कर रहने और उसकी हर बात मानने की सलाह देते हुए एक छोटे से कमरे में ले गया जहां एक खूँखार सा आदमी एक चारपाई पर बैठा दो बच्चों से अपने हाथ पैर दबवा रहा था l चपरासी ने तीनों लड़कों को उस आदमी के सामने करके बताया कि बड़े बाबू ने इन नए लड़कों को भेजा है l काली ने अपनी मालिश कर रहे दोनों बच्चों को हटा कर नए आए हुए बच्चों से अपनी सेवा करवानी शुरू कर दी और साथ ही उन्हें सुधार केंद्र में कायदे से रहने की धमकियाँ भी देता रहा l
नई जगह और नए माहौल में हसन बहुत डरा सहमा सा था l उसके साथ के दोनों लड़के उसकी सूरत देख कर उसकी हंसी उड़ा रहे थे और बिंदास रहने की सीख दे रहे थे लेकिन हसन तो अपना थैला कलेजे से लगाए हुए ना जाने क्या सोच रहा था l जिस कमरे में उन लोगों को सोने की जगह दी गई थी वहाँ पहले से ही छह बड़े लड़के रह रहे थे और कमरे में तीन दरियाँ बिछाने की जगह ही नहीं थी l हसन के साथ वाले लड़कों ने जब उनलोगों से अपने बिस्तर खिसका कर थोड़ी जगह देने को कहा तो उनलोगों ने अपनी दादागिरी दिखानी शुरू कर दी और उन्हें चुपचाप एक कोने में बैठने को कहा तो हसन तो डर कर एक कोने में दुबक गया लेकिन बाकी दोनों लड़कों ने बराबरी से मार पीट का जवाब देना शुरू कर दिया और कुछ ही देर में कमरा लड़ाई का मैदान बन गया l पुराने लड़कों ने उन दोनों नए लड़कों को धक्का देकर कमरे से बाहर निकाल दिया और उनके बिस्तर भी बाहर फेंक दिये l लेकिन लड़ाई तब भी नहीं रुकी और दोनों तरफ से हमले होते रहे l शोर सुन कर काली प्रसाद वहाँ आ गया और सारा हंगामा देख कर छड़ी से सभी की पिटाई शुरू कर दी जिस पर नए लड़कों ने पुराने लड़कों की शिकायत करी और पुराने लड़कों ने अपने में से श्यामू नाम के लड़के को इस लड़ाई के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए इस फ़साद से अपना पल्ला झाड़ लिया l काली प्रसाद श्यामू का कान खींचकर बोला कि इस फसाद की सजा के रूप में आज उसे रसोई घर में जाकर सबके लिए रात का खाना अकेले ही बनाना पड़ेगा l बेचारा श्यामू यह सुन कर अपने साथियों की तरफ मदद के लिए देखने लगा पर उनमें से किसी ने भी उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया और श्यामू मजबूरन अपनी सज़ा भुगतने के लिए रसोई घर की तरफ चला गया l
हसन को श्यामू पर बहुत तरस आरहा था इसलिए उसने अपने साथ के दोनों लड़कों से रसोई घर में चल कर श्यामू की मदद करने को कहा लेकिन दोनों ने अपने दुश्मन की मदद करने से इंकार कर दिया और बाहर फेंके गए अपने अपने बिस्तर कमरे में बिछा कर लेट गए l यह देख कर हसन अकेला ही श्यामू की सहायता करने चला गया और रसोई घर में जाकर उसके साथ सब्जी काटने लगा l यह देख कर श्यामू ने झिझकते हुए उससे पूछा कि उसने इतनी मार पीट और लड़ाई करी फिर भी हसन उसकी मदद करने क्यों आया ? हसन ने बड़े प्यार से जवाब दिया , “ श्यामू भैया , तुमने गुस्से में आकर मारपीट करी , अभी मैं तुम्हारी मदद करूंगा तो तुम मुझसे दोस्ती कर लोगे , बस समझ लो कि मैं यहाँ दोस्ती करने आया हूँ l” उस छोटे बच्चे की बड़ी सोच को मन ही मन सलाम करते हुए श्यामू ने उसे गले से लगा लिया l
खरे जब अनन्या को लेकर बड़े साहब से मिलवाने के लिये ले गया तो कुछ दूर जाने पर एक सरकारी क्वाटर दिखाई देने पर उसने बताया कि बड़े साहब यहीं रहते हैं l दरवाजे की घंटी बजाने पर एक सोलह सत्रह साल के लड़के ने दरवाजा खोला और खरे को देख कर सलाम करते हुए अंदर आने को कहा तो अनन्या समझ गई कि यह भी सुधार केंद्र का ही कोई लड़का होगा जिसे बड़े साहब ने अपने घर के कामों के लिए रखा होगा l ‘कितनी मुफ्त खोरी है हमारे सरकारी दफ्तरों में ‘ अनन्या ने सोचा फिर लड़के से उसके बारे में पूछने लगी तो खरे ने फौरन बीच में टोकते हुए कहा कि यह साहब का निजी सहायक है इससे बात करने की ज़रूरत नहीं है l लड़का बेचारा कुछ कहना चाह रहा था पर खरे की घूरती आँखों से डर कर चुपचाप अंदर चला गया l
कुछ ही देर में बड़े साहब श्री मानिक लाल आए तो अनन्या ने अपना परिचय देते हुए सुधार केंद्र में आने का अपना प्रयोजन बताकर बच्चों से बात करने के लिए उनकी परमीशन मांगी तो मानिक लाल ने बेहद शालीनता से मुसकुराते हुए बताया कि यह सुधार केंद्र तो उनके लिए एक मंदिर है और यहाँ रहने वाले बच्चे भगवान स्वरूप हैं l अनन्या ने इतना साफ झूठ सुना तो उसने भी बड़ी ही शालीनता से पूछा “ मिस्टर लाल , लगाता है आजकल आप अपने भगवानों का ठीक से ध्यान नहीं रख रहे हैं क्योंकि आपके यह सारे भगवान मुझे कुछ कमजोर लग रहे हैं l क्या अपने भगवानों से आप कुछ ही ज़्यादा काम ले रहे हैं ?”
मैडम की बात सुनकर मानिक लाल ने खरे की तरफ ऐसे देखा जैसे सारा दोष उसी का हो और डांटते हुए पूछा , “ क्यों बड़े बाबू , यह क्या सुन रहा हूँ मैं ? हमारे भगवान कमजोर लग रहे हैं ? तुम्हें कितनी बार कहा है कि हमारे दिल के टुकड़ों का पूरा ख्याल रखा करो l रसोइये से कहो कि कल से सब बच्चों को दो बार दूध पीने को देगा और दाल में खूब घी डाल कर खिलाएगा l मेरे पास इस तरह की कोई शिकायत दोबारा नहीं आनी चाहिए , समझे ?” खरे ने पूरी निष्ठा से सिर हिला कर साहब की बात को रसोइये तक पन्हुचाने का दावा किया तब अनन्या की तरफ देखते हुए अपनी आँखें पोंछने का ढोंग करते हुए मानिक लाल बोला कि पूरे केंद्र का काम अकेले तो वो सम्हाल नहीं सकता है इसी लिए यह नीचे वाला स्टाफ गड़बड़ करता है l “ थैंक यू मैडम , जो आपने हमें इस बात से अवगत करवाया l” अनन्या ने बच्चों से बात करने की आज्ञा देने की बात याद दिलाई तो मानिक लाल ने खरे को आदेश दिया कि वो सब बच्चों को बाहर खेल के मैदान में इकट्ठा करके इन मैडम से मिलवा दे और ध्यान रखे कि कोई बच्चा फालतू की बात करके मैडम को परेशान ना करे l अपनी बात खत्म करके मानिक ने आँखों ही आँखों में खरे को कुछ इशारा किया जिसे समझकर खरे ने “जी साहब” कह कर अपना सिर हिलाया और अनन्या से चलने को कहा तो अनन्या ने मानिक लाल से कहा कि उसको इन बच्चों के बारे में अपनी परीक्षा के लिये एक पूरा लेख तैयार करना है और उसके लिए केवल एक बार सबसे मिलकर उसका काम पूरा नहीं होगा बल्कि उसे कई बार सुधार केंद्र आकर हर बच्चे से अलग अलग भी बात करनी पड़ेगी इसलिए उसके आने जाने पर और बच्चों से मिलने पर कोई रोक टोक नहीं लगनी चाहिये l अनन्या ने बताया , “पिछले दिनों मैं अन्य कई बच्चों से उनके घरों में जाकर मिली थी और उनसे बात करने और दोस्ती करने में थोड़ा समय लगा था l मिस्टर लाल , यह बच्चे तो अपने परिवारों से दूर यहाँ सुधार केंद्र में रहते हैं तो इनसे बात करने के लिए मुझे इनके साथ मित्रता करने में कुछ अधिक समय भी लग सकता है , इसी लिए मैं यहाँ आते जाते रहने की आज्ञा चाहती हूँ l”
उन दोनों शातिरों ने समझा था कि छोटी उम्र की उस छात्रा को बेवकूफ बना कर उसे एक बार सभी बच्चों से मिलवा कर वहाँ से भगा देंगे, लेकिन अनन्या मनोविज्ञान की छात्रा थी और लोगों की आँखों को पढ़ना खूब जानती थी l वो समझ गई थी कि बच्चों से बात करने के समय या तो खरे खुद वहाँ उपस्थित रहेगा या फिर पहले से ही बच्चों को डरा धमका कर ज़्यादा बोलने से मना कर दिया जाएगा l इसलिए उसने भी शुरू में बच्चों के प्रति अपना व्यवहार औपचारिक ही रखा क्योंकि खरे या केंद्र का कोई ना कोई व्यक्ति बच्चों के पास निगरानी के लिए हमेशा खड़ा रहता था l
पहली कुछ मुलाकातों में बच्चों से इधर उधर की बातें करके और उनको खूब मज़ेदार कहानी किस्से सुना कर अनन्या ने उनसे एक राबता बनाने की कोशिश करी जिसमें वो सफल भी हुई क्योंकि अब बच्चे अन्नू दीदी के आने की बाट देखते रहते थे और उसके आते ही खुद आकर उससे बातें करने लगते थे l खरे और मानिक को भी लगता था कि अनन्या के आने से बच्चे खुश रहते हैं और इस तरह उनके सुधार केंद्र की खराब छवि भी सुधर जाएगी इसलिए क्रमशः अनन्या के आने पर उनलोगों ने बच्चों के ऊपर निगरानी रखना बंद कर दिया l अनन्या यही चाहती भी थी कि उन गिद्धों की नज़र बच्चों पर से हटे तो वो उनसे सच्चाई का पता लगाये l अब तो उसे यहाँ तक आज़ादी मिल गई थी कि खेल के मैदान में बच्चों को बुलाने के बजाय अनन्या उस बड़े हाल में चली जाती थी जहां सारे बच्चे रहते थे l उसे देखते ही कुछ बच्चे तो काम के बहाने से बाहर निकल जाते थे लेकिन अधिकतर बच्चे उसके इर्दगिर्द बैठ कर बातें करते रहते थे और अब तो धीरे धीरे अपने बारे में और इस सुधार केंद्र में होने वाली तकलीफ़ों के बारे में भी उसे बताने लगे थे l खास तौर से लल्लन और श्यामू नाम के दो बच्चे उसके सामने केंद्र के कच्चे चिट्ठे खोलते रहते थे l
एक दिन जब अनन्या आई तो बच्चों के लिए घर से हलवा और पूरी सब्जी बनवा कर भी लाई थी l आते ही उसने सभी बच्चों को पहले खाने को कहा और सबको परोसते समय जब उसे लल्लन और श्यामू नहीं दिखाई दिये तो उसने उन दोनों के बारे में पूछा l तब पता चला कि श्यामू का हाथ कल लकड़ी चीरने के समय कुल्हाड़ी से कट गया था और बहुत खून निकल रहा था इस लिए उसे काली दादा अस्पताल में भर्ती करवा आए हैं और लल्लन कल रात को केंद्र के पीछे के तारों को फांद कर भाग गया है l अब पुलिस उसको ढूंढ रही है l अनन्या की इच्छा हुई कि बड़े बाबू से श्यामू के बारे में पूछे लेकिन फिर उसने सोचा कि उसकी ज़रूरत से ज़्यादा पूछताछ से कहीं ऐसा ना हो कि उसके आने जाने पर बंदिश लगा दी जाये इसलिए कुछ देर बच्चों के साथ समय बिताकर वो वापिस जाने लगी तो हसन भी उसके पीछे पीछे आकर धीरे से बोला , “ अनु दीदी , सब झूठ बोल रहे हैं श्यामू का हाथ कुल्हाड़ी से नहीं कटा था , उसे काली दादा ने बहुत मारा था और उसका सिर फट गया था और लल्लन भागा नहीं है उसे काली दादा ने कोठरी में बंद कर दिया है क्योंकि उसे श्यामू की सच्चाई मालूम थी l” हसन इतना कह कर चुप हो गया , फिर कुछ सोच कर अनन्या से लिपट कर बोला , “ दीदी , हमें यहाँ से निकाल लो , हमें यहाँ बहुत डर लगता है l काली दादा सबेरे पाँच बजे उठा कर काम करने में लगा देते हैं और रात के दस बजे तक सोने नहीं देते हैं l आप आती हैं तो थोड़ी देर के लिए आराम मिल जाता है नहीं तो दिन भर या तो काम करो नहीं तो बड़े बाबू और काली दादा के हाथ पैर दबाओ l”
बातें करते हुए हसन ने जैसे ही काली को आते देखा तो कोने में रखी झाड़ू उठा कर खिड़कियाँ साफ करने लगा l अनन्या उसे हाथ पकड़ कर बगीचे में ले गई और उसे वहाँ क्यारियों की सफाई करते हुए बात करने को कहा ताकि किसी को उस पर शक ना हो l तब हसन ने बताया कि ‘काली दादा से मिलने एक गंदा आदमी आता है जो काली को ढेर सारे रुपये देकर यहाँ से कुछ बड़े बच्चों को अपने साथ ले जाता है और अगले दिन उन्हें वापिस छोड़ जाता है l एक दिन काली ने श्यामू को भी उस आदमी के साथ भेजा था लेकिन वापिस आने के बाद उसने काली से साफ कह दिया कि वो उस आदमी के साथ अब कभी नहीं जाएगा l इसी बात पर काली दादा ने श्यामू को बहुत मारा था l’ बात करते करते हसन चुप होगया और रोने लगा तो अनन्या ने उसके आँसू पोंछते हुए रोने की वजह पूछी और हसन ने जो बताया उसे सुनकर अनन्या के रोंगटे खड़े हो गए l
“ अनु दीदी , काली दादा ने श्यामू भैया को मार डाला है l लल्लन ने श्यामू को मारते हुए काली दादा को देख लिया था और क्योंकि वो श्यामू का दोस्त था इसलिए जब काली दादा श्यामू की लाश को लेकर यहाँ से निकला तो लल्लन ने काली का पीछा किया और उसे नदी में श्यामू की लाश को बहाते हुए देख कर डर के मारे चिल्ला पड़ा तो काली ने उसे भी मार कर फेंकने की कोशिश करी लेकिन वहाँ एक दो लोग आकर खड़े हो गए थे इसलिए उसे अपने साथ वापिस लाकर काली ने नदी किनारे वाली कोठरी में बंद कर दिया l दीदी हमे पक्का मालूम है कि मौका देख कर वो लल्लन को भी मार डालेगा l”
इतने खतरनाक लोगों के बीच में यह बच्चे रह रहे हैं यह जान कर अनन्या का कलेजा मुंह को आने लगा l उसने हसन को कस कर अपने से चिपका लिया और बोली , “ हसन तुम घबराओ मत , मैं सिर्फ तुम्हें ही नहीं बल्कि यहाँ के सभी बच्चों को इन राक्षसों से बचा कर रहूँगी l”
हसन उससे चिपक कर सिसकने लगा और बोला कि उसे पुलिस वाले चोरी के झूठे इल्ज़ाम में पकड़ कर लाये थे उसने दुकान में चोरी नहीं करी थी बल्कि वो दुकानदार उसकी अम्मी के लिए गंदी गंदी बातें बोल रहा था इसी लिए उसने उसको पत्थर खींच कर मारा था l अनन्या ने चौंक कर पूछा , “ हसन तुम्हारी अम्मी कहाँ रहती हैं ? मुझे उनका पता बताओ मैं उनसे मिल कर तुम्हारे बारे में उनको बताऊंगी l”
हसन ने बताया कि तीन साल पहले एक रात को कुछ लोग उसके घर में घुस कर ज़बरदस्ती उसकी अम्मी को अपने साथ ले गए l “ दीदी , हमारे अब्बू ने तो पहले ही हमलोगों को घर से निकाल दिया था l अम्मी लोगों के घरों में काम कर के हमें पाल रही थीं l अम्मी के जाने के बाद हम क्या करते ? घर के बाहर बैठ कर रो रहे थे तो जिन माताजी के घर में अम्मी खाना बनाती थीं वो माताजी हमें अपने घर ले गईं और खूब प्यार से हमें रखने लगीं l” कहते कहते हसन ने अपना थैला खोल कर उसमें से एक फोटो निकाल कर अनन्या को दिखाई और बोला , “ यही हैं हमारी माताजी “ फोटो में एक संभ्रांत बुजुर्ग महिला के पास हसन खड़ा हुया था l
हसन की कहानी तो बहुत ही आड़ी टेढ़ी सी लग रही थी l “ हसन , जब तुम इन माताजी के पास रहते थे तो फिर यहाँ कैसे पंहुच गए ?” हसन और भी ज़ोर से सिसकियाँ लेने लगा , फिर कुछ सम्हलकर बोला , “ अनु दीदी , माताजी को अल्लाह ने अपने पास बुला लिया और उनके बेटे बहू ने अगले ही दिन मुझे घर से निकाल दिया और मैं अपनी माताजी की फोटो लेकर फिर से सड़क पर आ गया l उस दुकानदार के पास मैं काम मांगने गया था l मैंने उसे अपनी दुकान पर मुझे नौकर रखने को कहा तो उसने मेरी अम्मी को गाली देकर उनके लिए गंदी बात बोली तो मैंने पत्थर उठाकर उसकी दुकान में मारा लेकिन पत्थर जाकर उस हरामी के सिर में लगा और उसने मुझे चोरी के झूठे इल्ज़ाम में पुलिस के हवाले कर दिया l” शायद हसन और भी कुछ बताना चाहता था पर तभी कुछ बच्चे उधर आते हुए दिखाई दियी तो वो चुप हो गया l अनन्या भी दोबारा आने को कह कर वहाँ से चली आई l लेकिन हर पल उसके दिमाग में सुधार केंद्र में बच्चों के साथ हो रहे अत्याचार की बात ही घूम रही थी l घर पंहुच कर सारा किस्सा उसने अपने पापा को सुनाकर उनसे अपने परिचित पुलिस कमिश्नर से बात करके इन बच्चों को बचाने की कोई राह निकालने को कहा l
अनन्या के पिताजी उसे साथ लेकर पुलिस कमिश्नर के पास गए और उन्हें सारी कहानी सुना कर मदद करने को कहा लेकिन बगैर किसी सबूत के काली चरण को पकड़ना संभव नहीं था l तब अनन्या को याद आया कि हसन ने नदी के पास वाली कोठरी में लल्लन को बंद किए जाने का ज़िक्र किया था ,अगर वहाँ जाकर देखा जाए तो बात बन सकती है l
और फिर अगले ही दिन कुछ पुलिस वालों की एक टोली सुधार केंद्र की औपचारिक जाच के बहाने से भेजी गई और जब बाकी हवलदार और सिपाही सब कमरों की जांच कर रहे थे और केंद्र के सभी गिद्ध उनके साथ व्यस्त थे तब पुलिस इंस्पेक्टर सीधा नदी के पास वाली कोठरी की तरफ गया और वहाँ से लल्लन को बरामद करके उसके बताए अनुसार नदी में जाल डलवाने पर जब उसमें से श्यामू की लाश मिली तो काली प्रसाद के साथ साथ मानिक लाल और खरे को भी हिरासत में ले लिया गया l लेकिन सुधार केंद्र के बच्चों का क्या होगा ? उनका भविष्य तो अभी भी अधर में ही लटका हुआ था l
तब अनन्या की मदद के लिए आगे आईं उसकी मुखर्जी मैडम ! उन्होने अपनी एक समाज सेविका मित्र से बात करके सभी बच्चों को उनके अनाथाश्रम में भिजवा दिया और हसन को अनन्या अपने घर ले आई l हसन अब स्कूल में पढ़ रहा है और अपनी अनु दीदी के परिवार से मिल रहे प्रेम की सुखद छाया का आनंद ले रहा है l अनन्या को भी तसल्ली है कि कम से कम एक बच्चे की ज़िंदगी को उसने बर्बाद होने से बचा लिया है लेकिन अभी भी वो बाकी बच्चों से मिलने कभी कभी अनाथ आश्रम जाती है और उनलोगों को पढ़लिख कर और कुछ काम सीख कर अपना जीवन सुधारने की सीख देती है l उसने तय कर लिया है कि चाहे जो भी हो जाय लेकिन इन बच्चों को वो अच्छे इंसान बनाने की पूरी कोशिश करेगी ताकि इनकी बाकी ज़िंदगी जाहिलों की तरह पिटते और गालियां खाते हुए ना गुज़रे बल्कि अच्छे परिवेश में गुज़र सके l
बहुत ही सटीक तरीके से कहानी के जरिए सच्चाई का वर्णन👌👌
Beautiful story.. very inspiring…
An inspiring and beautiful story