ग़ज़ल : कवि और कविता – डॉ0 अनिल त्रिपाठी की तीन रचनाएँ
ख़ुशी गर जो होगी तो ग़म भी तो होंगे
ख़ुशी गर जो होगी तो ग़म भी तो होंगे
तुम्हारे फ़साने में हम भी तो होंगे
ज़माना हमें संगदिल जब कहेगा
न होगा यकीं कुछ वहम भी तो होंगे
ख़तों को जलाने से पहले पलटना
सुलगते भले हों मगर नम तो होंगे
बरसने दो इनको न रोको ख़ुदाया
उदासी के बादल ये कम भी तो होंगे
तो क्या हुआ जो पावों मे जुम्बिश नहीं रही
तो क्या हुआ जो पावों में जुम्बिश नहीं रही
बचपन का वो जुनून अभी बाकी है दिल में
गर्मी की दोपहर में भटकना तो बंद है
आने का इंतिज़ार अभी बाकी है दिल में
नाकाम कोशिशों के ज़माने गुज़र गये
आंखों में आस और कशिश बाकी है दिल में
मसरूफ़ रहो ज़िन्दगी आसान रहेगी
दिखता है कहाँ प्यार धड़कता है जो दिल में
डुबो देता है अक्सर झील का
ठहरा हुआ पानी
समन्दर के बड़े तूफ़ानों से भी बच निकलते हैं
डुबो देता है अक्सर झील का ठहरा हुआ पानी
कि जिनके हौंसले तूफ़ान का रुख़ मोड़ सकते हैं
उन्हें झकझोर जाती है कभी अपनों की नादानी
भटक कर छोड़ आये थे जिसे जंगल में ही तन्हा
मेरे घर तक पहुँचती थी वही एक राह अनजानी
नहीं दिखती हैं जिनकी सूरतें इन धुंधली आँखों से
ज़ेहन में साफ़ दिखती है मेरे बच्चों की शैतानी
जो ख़ुद हालत का मारा हुआ दिन रात घुटता है
भला कैसे उसे मैं सौंप दूँ अपनी परेशानी
वो लड़की ख़ुद में खोई सी जो अब कम मुस्कराती है
उसी का नाम रखा था कभी शैतान की नानी
डॉ0 अनिल त्रिपाठी हिंदी भाषा के
जाने माने पत्रकार एवं कवि होने के साथ – साथ
गायक और संगीतकार भी हैं.