ग़ज़ल Ghazal : कवि और कविता Kavi Aur Kavita – डॉ0 अनिल त्रिपाठी की चार रचनाएँ
दुआओं की निगहबानी कभी ख़ाली नही जाती
दुआओं की निगहबानी कभी ख़ाली नही जाती
बुजुर्गों की परेशानी अगर सम्हाल ले कोई
समंदर हौसला हर शख़्स का ऐसे परखता है
हवाओं की ख़िलाफ़त में भी क़श्ती डाल ले कोई
हवा ख़ुश्बू चुरा ले रंग फिर भी कम बदलते हैं
जो फूलों की तरह कांटों में ख़ुद को ढाल ले कोई
मैं गिरता हूं तो ये ख़्वाहिश मेरे दिल में दबी होगी
गिरूं जब थाम कर बाहें मुझे सम्हाल ले कोई
अजब सी टीस होती है ये जब भी कसमसाते हैं
जो सपनों के परिंदे इन दिलों में पाल ले कोई
इन पत्थर के दिल वालों में अहसासों के मानी क्या
इन पत्थर के दिल वालों में अहसासों के मानी क्या
आंसू को पानी कहते हैं मैं क्या मेरी कहानी क्या
ज़र ज़मीन की चकाचौंध में भूल गया जो रिश्तों को
क़दर न जानें पागल मन की यादें और निशानी क्या
आंखों में कट जाती रातें उम्मीदों में दिन गुज़रे
इन बूढ़ी आंखों से बहते बच्चे क्या शैतानी क्या
इसी शहर में मीरा रानी की भी एक कहानी है
मीरा को घनश्याम मिलें बस रानी क्या दीवानी क्या
जिस डाली से उड़े परिंदे सूख गई जो बारिश में
अब न बहारें फिर लौटेंगी क्या अमृत और पानी क्या
मर भी जाओ तो नहीं मिलते हैं मरने वाले
मर भी जाओ तो नहीं मिलते हैं मरने वाले
ख़ुदा ही जानें कहां मौत छोड़ आती है
अभी तो बात है कल की जो साथ थे अपने
अभी हवा में भी ख़ुश्बू – ए – हिना आती है
किसे कहूं मैं निगहबान सिरपरस्त अपना
सदा भी गूंज के पत्थर से लौट आती है
दिये तो अब भी हैं जलना मगर गवांरा नहीं
हवा चराग़ के दामन से लिपट जाती है
जो मेरा ज़िक्र हो महफ़िल में कुछ नहीं कहना
ज़रा सी आह यहां तूल पकड़ जाती है
लरज उठें जो होंठ छोड़ देना महफ़िल को
अगर लगे कि कहानी ज़ुबां पे आती है
वो बारिश की गीली मिट्टी