पुलकित है क्षितिज देख सावन की छाँव : राजुल

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पुलकित है क्षितिज देख सावन की छाँव

 

पुलकित है क्षितिज देख सावन की छाँव

रोका रथ ऋतुओं ने फूलों के गाँव

जलधर की नाव थमी तारों के तट
पुरवा ने खोल दिए यादों के पट

अंबर के अंतर में उमड़ उठा नेह

 छलक-छलक जाता है धरती का घट

           पावस के बिखरे सतरंगी अरमान

     नयनों का संयम ढूंढें कोई ठांव

पुलकित है क्षितिज देख सावन की छाँव

 रोका रथ ऋतुओं ने फूलों के गाँव

चंदनी फुहारों की अद्भुत है रीत

 संयम से टूट गयी सुधियों की प्रीत

 दामिनी के अंचल में उठती हिलोर

   अनिमिष प्रतीक्षा का जागा अतीत

  आई क्षितिज पार से जो मेघ की किरन

तड़प उठे अधरों पर अंतस के भाव

पुलकित है क्षितिज देख सावन की छाँव

रोका रथ ऋतुओं ने फूलों के गाँव

 दूर कहीं गूंजी फिर वंशी की तान

मीन-मोर-चातक के लौट आये प्रान

   पात-पात, शाख़-शाख़ डोलता पवन

  कूलों की भूल गई नदिया पहचान

भेजे सन्देश धरा अंबर के देश

  थक गए हैं आज मन-शावक के प्रान

     पुलकित है क्षितिज देख सावन की छाँव

रोका रथ ऋतुओं ने फूलों के गाँव

राजुल

10 thoughts on “पुलकित है क्षितिज देख सावन की छाँव : राजुल

  1. सावन की ढेर सारी शुभकामनाएं आप सभी को😍कविता बहुत अच्छी लगी शब्दों का चयन बहुत अच्छा है

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