Mrigjal : मृगजळ – Kavita Naik
मृगजळ
मन वेडे गुणगुणते हे आयुष्याचे गाणे।
त्या समजावू मी कैसे , मृगजळ आहे, नव्हे तराणे ।।धृ।।
तू येता मजजवळी का फुलला मोरपिसारा।
तू जाता फूलही हि सुकले उरले काट्यांशी हे जगणे ।।१।।
इंदू ही मागतो वचने ताऱ्यांचे सोबत असणे। अवसेच्या एका रात्री त्याचे साऱ्या सोडून जाणे।।२।।
ज्या हातामधुनी सुटते, त्या हाता म्हणती दानी
ज्या हृदयामधूनी सुटते, योगस्थ मनीचे असणे।।३।।
हिंदी भावार्थ –
मृगजल अर्थात मिराज – मृग मरीचिका, मृगतृष्णा
कुछ चीज़ें दूर से आकर्षक दिखती हैं, पर ज़रूरी नहीं कि असलियत में वो वैसी ही हों।
‘मेरा मन बावरा, ज़िंदगी के बारे में ना जाने क्या – क्या ख़्वाब देख रहा है, इसे कैसे समझाऊं ये ज़िंदगी एक मिराज है।
कैसे समझाऊं, तुम्हारा आना मन में मयुरपंख फैलाता है, मगर जाना मेरे मन के फूल मुरझा देता है।
वह चांद भी तो चांदनी से कितनी कसमें खाता होगा और फिर एक अमावस की रात उन सबको छोड़ न जाने कहां खो जाता है।
तो इसीलिए मेरे मन, इस मिराज में मत उलझ; क्योंकि जिस हाथ से दान छूटे, उसे दानी कहते हैं, मगर जिस रुह से सब माया अलग हो जाये, उसे सच्चा ज्ञानी (योगस्थ) कहते हैं।‘
वाह सुंदर अभिव्यक्ति
अति सुंदर रचना😍