है लबों ने, मौन धारा : दिव्या त्रिवेदी
है लबों ने, मौन धारा
है लबों ने, मौन धारा
मौन मुखरित हो गया है
कर लिया करती हैं बातें
ख़ामोशियां कुछ बोल कर
मिल जाता है, जवाब भी
चुप, अर्थपूर्ण हो गया है
है शोर अब भी, हृदय गति का
श्रवण चेतना मौन है
जानता है भली भांति, पर
मस्तिष्क पूछता, कौन है?
जान तो, अब भी है अच्छी
पर, पहचान देखो मौन है
है संबंध अब भी मध्य में
पर, बंध देखो मौन है
अत्मभाव में हो स्थित
आत्मा तटस्थ है
अंतःकरण में दाह देखो
स्व- चिता है हो रही
अंतर्मुखी है क्रियाशील
बहिर्मुखी अब मौन है
मोह बंधन तोड़ कर
प्रेम स्वतंत्र हो गया है
माया की छाया छूटी
मन मोहन में खो गया है
चितवन की चंचलता में देखो
प्रीत, मौन मुखरित हो गया है
हिंदी भाषा की जानी-मानी कवियित्री दिव्या त्रिवेदी
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हृदय को छू जाने वाली कविता। really superb 👌
अति सुंदर ……💐
अगर कवित्रि महोदया की कोई किताब छपी हो तो
कृपया बताएँ … मैं ख़रीदना चाहूँगा
आभार सह धन्यवाद
जब भी छपी किताब तो सबसे पहले आपको ही भेजूंगी, अपना पता दे दीजिए बस 🙏🏻
उत्तम कविता मन प्रसन्न हो गया 😊
बहुत सुन्दर और अच्छी कविता |
Bahut sundar line