आत्मचिंतन – स्मृति लाल
आत्मचिंतन
थमी नहीं है अभी जिंदगी
अपनी संस्कृति संग चली है
पूर्वजों के मार्गदर्शन
और..
बुज़ुर्गो के आशीर्वाद संग
हौसले से खड़ी है ।
वक़्त आया है,
जाएगा...
इंतज़ार की घड़ियाँ है
अपनों का साथ है
आँगन में सुनहरी धूप
और, ....
सिंदूरी शाम है
आत्मचिंतन के लिए
ठहरा पल क्षण
भागती , दौड़ती जिंदगी को
दे रही श्वास है
इंसान से मशीन बने
भावनाओ को
स्नेह- बंधन में भर रही है
अच्छा है....
छोटी सी ये जिंदगानी
चार दिन की कहानी
कुछ अपने लिए
कुछ अपनों के लिए
बीते लम्हों के मधुरतम पल
एक बार फिर
समेटे आँखों में
नवजीवन सँवार रही है
जिंदगी.....
स्मृति लाल
वरिष्ठ उद्घोषिका एवं कवियित्री
आकाशवाणी ,डाल्टनगंज
Bahut sundar rachna
बहुत ही उत्तम रचना