पहचान
पहचान
जैसे तुम्हारा तुम
वैसे मेरा मैं नहीं हूं
हमेशा कहते हो दिल की बात कहने को
जब कुछ कहूं
तब जज़्बात को शब्दों के तराज़ू में
तोल देते हो,
और हर एक एहसास दबा देते हो
खोद – खोद कर खोखला कर देते हो
और फिर, बेरूख़ी का इल्ज़ाम लगा देते हो
मैं तुम्हारा दरपन नहीं हूं
न हूं तुम्हारा मोक्ष
न तुम्हारी कसक हूं
न तुम्हारी करुणा हूं
मैं सिर्फ मैं हूं
जो, तुम्हारे जैसा नहीं हूं
में तुमसे अलग हूं
फिर भी तुम्हरे संग हूं
ख़ुद से निकलोगे तो जानोगे
कि हमारी पहचान अलग है
हालांकि रंग हमारे आज भी
काफ़ी मिलते-जुलते हैं
- सुदाक्षिणा
Excellent. शब्द और स्वर दोनों perfect।