सुनो
तुम्हारी पसंद के रंग के काग़ज़ में यादें लपेट कर भेजी हैं …
फ़ुरसत से देखना कभी,
शायद बचपन के बंद दरवाज़ों की चाभी मिल जाए …
शायद खुल जाए वो दरवाज़ा, जो आम की बगिया तक ले जाए …
देखना ज़रा, आज भी अंबियां वैसे ही पकती हैं…
शायद खुले वो दरवाज़ा जो छत तक ले जाए !
गौर से सुनना, क्या अभी भी वहां कहानियां और लोरियां गूंजती हैं?
अगर आंगन तक जा पहुंचो तो बचपन की अंगड़ाइयों में खो मत जाना! …
और पीछे वाले कमरे में रखी फ़ोन की घंटी जब शोर मचाये तो ज़ोर से मत भागना…
फ़र्श मख़मल का हैं और दीवारें पत्थर की…
कहीं कुछ भूल जाओ तो उनसे पूछ लेना;
हर कोने में शायद आज भी सजाई होंगी तुम्हारी हर याद !
अगर कोई दरवाज़ा न खुले तो निराश मत होना …
शायद अब बचपन ने पता बदल लिया हो !
अब वो दरवाजों के पीछे नहीं, खुले मैदान में खेल रहा हो!
- सुदाक्षिणा
Excellent. God Bless you beta
Awesome 👌👌
God bless
उम्दा , बेहतरीन
एहसास की गहराई में डुबती आवाज़
माता – पिता का आशीर्वाद ।।
अनंत आशीर्वाद अक्षत सुदक्षिणा 🙌🌺🙌
Wow,Excellent daksha, God bless u .. really heart touching..