उसे जब पहली बार देखी तो
अपना सा लगा
उसे देखकर ख़ुश होना
मानो पंख लग गये
फिर उसका मिलना और
उसकी नज़रें मिलना अपना सा लगा
पहली बार एहसास हुआ कोई अपना हैं
उसकी दोस्ती किसी इबादत से कम नहीं
उसमें प्रेम भरपूर है
ना कोई तकरार है ना कोई छल
सिर्फ एक दूसरे को समझने की आदत
उसका मुझे समझना और मुझे समझाना
अपना सा लगता है
हमेशा मुझे प्रेरित करना,
मार्ग से ना भटकना
प्रोत्साहित करना
अपना सा लगता है
निस्वार्थ प्रेम,ना छल है,और ना ही कोई छलावा
मेरे लिए उसकी दोस्ती इबादत है
श्रम है, पूजा है, विश्वास है
क्योंकि वो अपना सा लगता हैं

आशा चौधरी
दुर्गापुर,बेनाचिती

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