शायरा आयशा अय्यूब

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‎غزل / ग़ज़ल

ख़त्म तेरी याद का हर सिलसिला कैसे करूँ
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‎ختم تیری یاد کا ہر سلسلہ کیسے کروں
‎دور رہ کر میں تجھے خود سے جدا کیسے کروں
ख़त्म तेरी याद का हर सिलसिला कैसे करूँ
दूर रह कर मैं तुझे ख़ुद से जुदा कैसे करूँ ..

‎پر سمیٹے خود ہی بیٹھا ہے پرندہ اک طرف
‎جو قفس میں ہی نہیں اس کو رہا کیسے کروں
पर समेटे ख़ुद ही बैठा है परिंदा इक तरफ़
जो क़फ़स में ही नहीं, उसको रिहा कैसे करूँ ..

‎دیکھنا اور دیکھ کر بس دیکھتے رہنا تجھے
‎اس تسلسل کی بتا میں انتہا کیسے کروں
देखना, और देख कर बस देखते रहना तुझे
इस तसलसुल की बता मैं इंतहा कैसे करूँ ..

‎مستقل دیوار سے میں نے لگا رکھے ہیں کان
‎اس میں چنوائی گئی چپ کو صدا کسیے کروں
मुस्तक़िल दीवार से मैंने लगा रक्खे हैं कान
इस में चुनवायी गई चुप को सदा कैसे करूँ ..

‎دیکھتی رہتی ہوں ان کو سوچتی رہتی ہوں یہ
‎تیری آنکھوں کی زباں کا ترجمہ کیسے کروں
देखती रहती हूँ इन को सोचती रहती हूँ ये
तेरी आँखों की ज़बाँ का तरजुमा कैसे करूँ ..

‎جا رہا ہے جائے وہ میں کس لئے روکوں اسے
‎اے میرے دل بے وفا کو با وفا کیسے کروں
जा रहा है जाए वो मैं किस लिए रोकूँ उसे
ऐ मेरे दिल बेवफ़ा को बावफ़ा कैसे करूँ ..

‎عین ممکن ہے کہ مجھ کو خودکشی کرنی پڑے
‎ورنہ اتنے سانحوں کا حق ادا کیسے کروں
ऐन मुमकिन है के मुझ को ख़ुदकुशी करनी पड़े
वरना इतने सानेहों का हक़ अदा कैसे करूँ ..

‎آزمائش کی ضرورت ہو نہ جس میں ‘عائشہ’
‎عشق میں اس مرحلے کی ابتدا کیسے کروں
आज़माइश की ज़रूरत हो न जिसमें ‘आयशा’
इश्क़ में उस मर्हले की इबतेदा कैसे करूँ ..?!




वो जो अपनी ज़ात में रखते हैं उर्यानी का शोर

وہ جو اپنی ذات میں رکھتے ہيں عریانی کا شور
‎خلد سے آئے ہيں لے کے روح یزدانی کا شور
वो जो अपनी ज़ात में रखते हैं उर्यानी का शोर
ख़ुल्द से आएँ हैं ले के रूह ए यज़दानी का शोर

‎دشت میں رہتے ہیں پیاسے اور دریچے وا کیے
‎خوش ہوا کرتے ہیں سن کے دور سے پانی کا شور
दश्त में रहते हैं प्यासे और दरीचे वा किए
ख़ुश हुआ करते हैं सुन के दूर से पानी का शोर

‎ایک لڑکی چوڑیاں کھنکا رہی تھی اور تبھی
‎اس کھنک سے اٹھ رہا تھا جیسے زندانی کا شور
एक लड़की चूड़ियाँ खनका रही थी और तभी
उस खनक से उठ रहा था जैसे जिंदानी का शोर

‎میرے گھر کے بام و در سب بن گیے ہیں قصہ گو
‎ہے محبت کی خموشی اور پشیمانی کا شور
मेरे घर के बाम ओ दर सब बन गए हैं क़िस्सगो
है मुहब्बत की ख़मोशी और पशेमानी का शोर

‎ضبط ا غم کو تول دے جب زیست کی یکسانیت
‎ موت کی آواز سے آتا ہے آسانی کا شور
ज़ब्त ए ग़म को तूल दे जब ज़ीस्त की यकसानियत
मौत की आवाज़ से आता है आसानी का शोर

‎میں پری پیکر ہوں لیکن بے زباں ہرگز نہیں
‎ساری دنیا نے سنا ہے ظرف نسوانی کا شور
मैं परी पैकर हूँ लेकिन बेज़ुबाँ हरगिज़ नहीं
सारी दुनिया ने सुना है ज़र्फ़ ए निस्वानी का शोर

‎وہ مجسم خوش بدن يوں تو سخنور ہے مگر
‎اس کے اندر گونجتا ہے رمز و پنہانی کا شور
वो मुजस्सम ख़ुशबदन यूँ तो सुख़नवर है मगर
उसके अंदर गूँजता है रम्ज़ ओ पिंहानि का शोर

‎سب ستارے جھلملائے چاند کی آغوش میں
‎جب اندھیرے میں وہ لایا اپنی تابانی کا شور
सब सितारे झलमिलाए चाँद की आग़ोश में
जब अंधेरे में वो लाया अपनी ताबानी का शोर

‎اس نے پربت پہ صدا دی جا کے مجھکو عائشہ
‎اور وہاں سے لوٹ آیا میری ویرانی کا شور
उसने परबत पे सदा दी जा के मुझको “आइशा”
और वहाँ से लौट आया मेरी वीरानी का शोर ..!


बात कोई तो हो छुपाने को

बात कोई तो हो छुपाने को
जो बताएं न हम ज़माने को
بات کوئی تو ہو چھپانے کو
جو بتائیں نہ ہم زمانے کو
मुझ से करते हो उसकी बातें तुम
क्या मेरा सब्र आज़माने को?
مجھ سے کرتے ہو اس کی باتیں تم
کیا مرا صبر آزمانے کو
मैंने हर मोड़ पे ये कोशिश की
एक नया मोड़ दूँ फ़साने को
میں نے ہر موڑ پہ یہ کوشش کی
اک نیا موڑ دوں فسانے کو
वस्ल आया था नींद में चल के
हिज्र के फायदे बताने को
وصل آیا تھا نیند میں چل کے
ہجر کے فائدے بتانے کو
एक मैसेज तो कर ही सकता था
वो मुझे ख़ैरियत बताने को
ایک میسج تو کر ہی سکتا تھا
وہ مجھے خیریت بتانے کو
देर कर दी है तुम ने आने में
कुछ बचा ही नहीं बचाने को
دیر کر دی ہے تم نے آنے میں
کچھ بچا ہی نہیں بچانے کو


कल शाम वापसी में अजब मरहला पड़ा


कल शाम वापसी में अजब मरहला पड़ा
घर का कबूतरों से पता पूछना पड़ा
کل شام واپسی میں عجب مرحلہ پڑا
گھر کا کبوتروں سے پتہ پوچھنا پڑا
कुछ उम्र अपनी ज़ात का दुख झेलते रहे
कुछ उम्र कायनात का दुख झेलना पड़ा
کچھ عمر اپنی ذات کا دکھ جھیلتے رہے
کچھ عمر کائنات کا دکھ جھیلنا پڑا
पानी की एक बूंद को बारिश समझ लिया
सूखी थी जो ज़मीन वहां भीगना पड़ा
پانی کی ایک بوند کو بارش سمجھ لیا
سوکھی تھی جو زمین وہاں بھیگنا پڑا
सूरत या नाम से तो न था अजनबी मगर
वो शख़्स कौन था ये हमें सोचना पड़ा
سورۃ یہ نام سے تو نہ تھا اجنبی مگر
وہ شخص کون تھا یہ ہمیں سوچنا پڑا
जब दुश्मनों ने हाथ खड़े कर लिए तो फिर
लाचार दोस्तों की तरफ देखना पड़ा
جب دشمنوں نے ہاتھ کھڑے کر لیے تو پھر
لاچار دوستوں کی طرف دیکھنا پڑا
चुप हो गए हमारे नुमाइंदे जब तमाम
हाकिम के सामने हमें खुद बोलना पड़ा
چپ ہو گئے ہمارے نمائندے جب تمام
حاکم کے سامنے ہمیں خود بولنا پڑا
उसने वही सवाल किया हम से बार बार
हम को मगर जवाब नया ढूंडना पड़ा
اس نے وہی سوال کیا ہم سے بار بار

Taaza_Ghazal ❣️23.03.2020


पाबंदी ए हिसार से आगे निकल गए
नफ़रत की ज़िद में प्यार से आगे निकल गए
‎پابندیء حصار سے آگے نکل گئے
‎نفرت کی ضد میں پیار سے آگے نکل گئے

इस दर्जा इख़्तियार उसे ख़ुद पे दे दिया
हम उसके इख़्तियार से आगे निकल गए
‎اس درجہ اسے اختیار خود پہ دے دیا
‎ ہم اسکے اختیار سے آگے نکل گئے

अपने क़दम को अपनी ही जानिब बढ़ा लिया
दुनिया की हर क़तार से आगे निकल गए
‎اپنے قدم کو اپنی ہی جانب بڑھا لیا
‎دنیا کی ہر قطار سے آگے نکل گئے

आवाज़ दी गई हमें ताखीर से बहुत
इतनी के हम पुकार से आगे निकल गए
‎آواز دی گئی ہمیں تاخیر سے بہت
‎ اتنی کہ ہم پکار سے آگے نکل گئ

मुड़ कर भी देखने की इजाज़त नहीं मिली
हम भी रह ए ग़ुबार से आगे निकल गए
‎مڈ کر بھی دیکھنے کی اجازت نہیں ملی
‎ ہم بھی راہ غبار سے آگے نکل گئے

जो लोग कार ए इश्क़ में मसरूफ हो गए
वो फ़िक्र ए रोज़गार से आगे निकल गए
‎جو لوگ کار عشق میں مصروف ہو گئے
‎ وہ فکرِ روزگار سے آگے نکل گئے

जीना मोहाल शेह्र में इतना हुआ के हम
मरने के इंतेज़ार से आगे निकल गए
‎جینا محال شہر میں اتنا ہوا کہ ہم
‎مرنے کے انتظار سے آگے نکل گئے

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