कवयित्री : प्रतीक्षा तिवारी
तिरंगा तू मेरा अभिमान तिरंगा तू मेरा अभिमान, तेरे संग गगन में झूमे भारत माँ का मान|| तेरे हरे रंग...
तिरंगा तू मेरा अभिमान तिरंगा तू मेरा अभिमान, तेरे संग गगन में झूमे भारत माँ का मान|| तेरे हरे रंग...
सम्बधों में अपनापन हो, और समर्पण का भी धन हो। कोरे कोरे वन उपवन में, प्रीत प्रेम का गठबंधन हो।।...
अगर तुम राधा होते श्याम।मेरी तरह बस आठों पहर तुम,रटते श्याम का नाम।।वन-फूल की माला निरालीवन जाति नागन कालीकृष्ण प्रेम...
स्मृति शेष "मैं गोली हूं. कलमुंहें विधाता ने मुझे जो रूप दिया है, राजा इसका दीवाना था, प्रेमी-पतंगा था. मैं रंगमहल की रोशनी थी. दिन में, रात में, वह मुझे निहारता. कभी चम्पा कहता, कभी चमेली..." उपन्यासकार आचार्य चतुरसेन के उपन्यास 'गोली' की नायिका चम्पा की कही ये बातें उत्सुकता उत्पन्न करती हैं और सिर्फ़ “गोली...
दुनिया के सबसे बडे कला सँग्रहालय का देश: रूस पुश्किन की कविता ,जिसे महसूस कर रही हूँ उनके देश रूस...
संचालिका सुश्री राजुल अशोक जी के साथ दिनांक 09.9.20 को, प्रकाशक के मंच पर मेरी चर्चा हो रही थी। संयोग...
बेवजह ही सही ठीक है चलो माना हम दोनों के दरमियाँ नहीं है कुछ खास जैसा। मिल गए होंगे हम...
संवेदना ‘माँ ! आपने आज के अखबार की खबर पढ़ी’ बेटी आद्या पुकार रही थी। ‘कौन सी खबर ?’ अखबार का एक-एक पन्ना चाट चुकी सुजाता ने बेटी सेपूछा यह जानने के लिए कि उसकी सोच कहाँ तक जा सकती है। ‘मम्मा ! बुलन्दशहर के पास किसी कस्बे में एक शादीशुदा लड़की अपनेमायके में जला दी गयी। कैसी अजीब खबर है। अभी तक हम सुनते थेलड़कियाँ ससुराल में जलायी जाती हैं यह पहली बार सुनने को मिल रहा हैकि एक बेटी अपने मायके में जलकर मर गयी। कहाँ सुरक्षित है बेटियाँमाँ!’ आद्या के स्वर में चिन्ता के साथ-साथ डर भी था। ‘बेटा! तुम लोग इन विषयों पर भी बातचीत करते हो अपने संगी-साथियोंके बीच!’ सुजाता ने पूछा! ‘क्यों नहीं माँ! क्या हम इंसान नहीं हैं।’ जब निर्भया वाला काण्ड हुआ था, वही दिल्ली की बस वाली घटना जिसने पूरे देश को आन्दोलित कर दियाथा उसके विरोध में तो हमने काॅलेज के सामने कैण्डिल मार्च भी निकालाथा और प्रोटेस्ट भी किया था। हमारे साथ हमारे टीचर्स भी थीं। सर औरमैम दोनों ही। माँ, जानती हो इस लड़की को किसने जलाया उसकी सौतेली माँ ने। जबघर के सब लोग कहीं गये थे माँ ने मिट्टी का तेल डालकर आग लगा दीऔर दरवाजा बाहर से बन्द कर कहीं चली गयी। जब आग की लपटें उठनेलगीं तो पड़ोसियों ने दरवाजा खोला तब तक लड़की अस्सी प्रतिशत जलचुकी थी। उसने इतना बताया कि माँ ने उसे चारपाई से बाँधकर मिट्टी कातेल छिड़का और आग लगा दी। उसके मुँह में कपड़ा भी ठूँस दिया था।आगे की बात वह कुछ भी नहीं बता सकी और अस्पताल ले जाते हुए उसनेरास्ते में दम तोड़ दिया। पुलिस के आने से पहले एम्बुलेंस आने के भीपहले। पूछने पर माँ साफ मुकर गयी। लड़की का अन्तिम संस्कार उसकेपति ने किया। माँ को गिरफ्तार कर लिया गया है। पड़ोसी बताते हैं किविवाहिता लड़की के बार-बार मायके आने और महीना दो महीना रहने सेवह सौतेली माँ पति से क्लेश करती थी घटना के एक दिन पहले सुबह सेरात तक पति-पत्नी, माँ-बेटी में लड़ाई होती रही थी।’ आद्या विस्तार सेकहानी बता रही थी। यही किस्सा न्यूज चैनल पर भी ‘बड़ी खबर’ बताकरनिरन्तर प्रसारित हो रहा था। कई चैनलों का सार आद्या माँ को बताकरउत्तेजित हो रही थी। मानो उसका बस चलता तो वह घटना को अंजाम देनेवाली माँ को फाँसी पर ही लटका देती। सुजाता तत्काल कोई उत्तर नहीं दे सकी बेटी आद्या को । उसने अपनेमायके की एक घटना याद आ गयी अनायास ही। वैसे वह सुबह से ही उसमासूम को याद कर रही थी जिसे उसकी काॅलोनी में उसके घर से मात्र चैथेघर में जहर देकर मार दिया गया था। वह भी शादीशुदा लड़की थी। दोबच्चे की माँ बहुत बड़े घर में ब्याही गयी थी। माता-पिता की लाड़ली, भाईकी दुलारी और पढ़ाई में बहुत तेज। उसके जब परीक्षा परिणाम निकले थेतब उसके पिता ने पूरी कालोनी में मिठाई बाँटी थी। तब सुजाता को पताचला था उसका नाम कनक है। कनक यानी सोना। वह सोना ही थी, सोनेकी तरह खरी, तपी हुई। पूरी कालोनी की लड़कियों का आदर्श कनकदीदी। कनक दीदी की शादी अचानक तय हुई थी। सर्वगुण सम्पन्न कनक जिसघर जाने वाली थी वहाँ उसे पलकों पर बैठाया जाने वाला था ऐसे उसकेमाँ-पिता जी सबसे कह रहे थे। कनक दीदी ब्याह कर दूसरे शहर चली गयीकाॅलोनी से मानो रौनक चली गयी जब कभी साल-छह महीने में कनकदीदी आती तब पूरी काॅलोनी का चक्कर लगाती और अपने पति,ससुराल, सास-ससुर की बड़ाई करती रहतीं। उनका मुख सुख-सौभाग्य से दमकताही रहता। बच्चे होने के बाद धीरे-धीरे उनका आना सीमित हो गया था।उसका एक कारण यह भी था कि अब उनके भाई की शादी भी हो गयी थीऔर माता-पिता की देखभाल करने वाली भाभी आ गयी थी। बाद में सुजाता की शादी हो गयी और वह अपनी गृहस्थी में व्यस्त हो गयी।इसी बीच माँ-पिता जी भी भाई के पास अहमदाबाद चले गये थे इसलिएपुश्तैनी घर किरायेदार के हवाले था, लिहाजा कनक दीदी की कोई खबरनहीं मिली। लगभग दस वर्षों बाद माँ के वापस लौटने पर सोनभद्र जाने कामौका मिला। उसने पडोस की चाची से कनक दीदी के बारे में पूछा तोउसकी बात सुनकर सुजाता के रोंगटे खड़े हो गये। रत्ना चाची बता रहीथीं-‘इधर कनक अब मायके बहुत कम आने लगी थी। भाभी के साथ भाईको भी अब उसका आना और घर में अधिकार जताना पसन्द नहीं था।तीज-त्योहार भी उसे अब कोई नहीं बुलाता था। माँ-पिता अशक्त हो गये थेऔर भाई के ऊपर निर्भर भी थे।’ चाची बताने लगीं-सुजाता! अचानक कनक का भाई खत्म हो गया बिनाकिसी बीमारी के, बिना दवा दारू के। किसी को कुछ नहीं ंपता चला रातमें सोया तो सोता रह गया। अम्मा-पिता जी दूसरे कमरे में थे। बहू कीआवाज सुनकर जान पाये कि उनके घर का चिराग हमेशा के लिए बुझगया है। उस समय कनक आयी थी। तेरहवीं तक रुकी थी। जाते समयभाभी से कह कर गयी थी माँ-पिता का ध्यान रखना लेकिन जिसने भाई केरहते सास-ससुर का ध्यान नहीं रखा वह बाद में क्या रखती। बूढ़ी सासदिन-रात खाँसती रहती ससुर सरकारी अस्पताल से दवा ले आते दवा खत्महो जाती मर्ज बढ़ जाता फिर हिम्मत जुटाकर पाँच किलोमीटर दूरअस्पताल जाते लाइन लगाते और दिनभर में पन्द्रह दिन की दवा लेकरपैदल ही थके-हारे घर लौटते। माँ बीमारी छुपाती रहती। कोई मदद करनाभी चाहता तो कनक की भाभी इतना हंगामा खड़ा करती कि अव्वल तोकिसी की हिम्मत ही नहीं पड़ती। अगर कोई मदद करना भी चाहता तोबूढ़ा-बूढ़ी स्वीकार नहीं करते। उनका जीवन कठिन हो रहा था उनको डर थाकहीं नरक न बन जाये। बहू के साथ अब उसकी माँ रहने आ गयी थी।बाल-बच्चा कोई था नहीं। सारा दिन माँ-बेटी सज-सँवरकर घूमने निकलजातीं। न जाने कैसे-कैसे लोगों का घर में आना शुरू हो गया था।’ चाची आगे बताने लगीं- ‘जानती हो सुजाता! दोनों माँ-बेटी एक हफ्ते सेगायब थीं। बिना बताये कहीं निकल गयी थीं। इसी बीच कनक की माँबहुत बीमार हो गयीं। काॅलोनी वालों ने मिलकर उन्हें अस्पताल में भरतीकरवाया। देखभाल की दवा लाकर भी दी लेकिन वे मृत्यु को जीत नसकीं। जिस दिन वे मरीं उस दिन न जाने कहाँ से दोनों माँ-बेटी प्रकट होगयीं। आनन-फानन में अन्तिम संस्कार कर दिया। कनक को खबर ही नहींकी। बाद में सूचना मिलने पर वह आयी और पिता के गले लगकर फूट-फूटकरऐसा रोयी कि देखने वालों की आँखें भी नम हो गयीं। पिता के साथबातचीत कर और काॅलोनी वालों से जो किस्से उसे सुनने को मिले उसकेपरिणामस्वरूप उसने भाभी से बात करने का मन बनाया। यही उसकीसबसे बड़ी भूल थी। उसने भाभी से केवल इतना कहा था- ‘भाभी! भइयानहीं रहे, माँ भी नहीं रहीं। अब केवल पिता जी हैं। तुम्हारी भी अभी उमरक्या है तुम किसी एक का हाथ थाम लो। घर की बदनामी करवाना अच्छानहीं है।’ ‘कैसी बदनामी तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरी बेटी के बारे में उलटा-सीधाकहने की। अपने काम से काम रखो। अगर जायदाद पर निगाह है तो भूलजाओ। हम कहीं जाने वाले नहीं। इसी घर में रहेंगे अपनी तरह।’ बहू कीमाँ तपाक से बोली। कनक ने पलट कर कहा- ‘मौसी! मैं आपसे बात नहीं कर रही हूँ। मुझेअपनी भाभी से बात करनी है। हाँ, हमारे घर के मामले में आपको बोलनेकी जरूरत नहीं है।’ ‘कैसे नहीं है और क्यों नहीं ? ये मेरी माँ हैं और इस घर की मालकिन भी।तुम अपना रास्ता देखो। तुम्हारी भलाई इसी में है माँ के काम में आयी होउसी पर ध्यान दो। कहकर कनक की भाभी भड़ाक से दरवाजा बन्द करअपनी माँ के साथ घर से बाहर चली गयी। रात के किसी पहर माँ-बेटी लौटीं। दो-दिन और बीत गये। कनक माँ कीतेरहवीं करके पिता को अपने साथ लेकर जाने का मन बना रही थी। उसनेवकील को बुलाकर राय मशविरा भी किया था कि किस तरह पिता केजीवित रहते घर को बचाया जा सकता है क्योंकि उसकी भाभी और उसकीमाँ घर बेचकर पैसा हड़पना चाहती थीं। वे माँ के सामने भी पिताजी परलगातार दबाव बना रहीं थीं।...
कोहरे भरी चाँदनी वो मेरे शहर में अनजान था, परदेसी था एक प्रेम दिवस पर उसने मुझे लाल गुलाब देकर...
By Debrati Chokroborty When a child stands desperate To be out of its mother's gripIt's you that soothe the plead...