कवयित्री : प्रतीक्षा तिवारी
तिरंगा तू मेरा अभिमान
तिरंगा तू मेरा अभिमान,
तेरे संग गगन में झूमे भारत माँ का मान||
तेरे हरे रंग की हिम्मत देखी हमने काश्मीर में,
श्वेत रंग का जादू देखा सेना के इस स्वाभिमान में,
केसरिया रंग की गाथा को बांच रहा गलवान||
तेरी एक आन की खातिर सैनिक सब कुछ दे जाते हैं,
कभी उठाकर चलते तुझको कभी
लिपटकर घर आते हैं
तीनों सेनाओं के बल का तू ही तो प्रतिमान||
तुझमें झांसी की रानी का शौर्य मुझे दिखलाई देता
मंगल पांडे की तोपों का गर्जन मुझे सुनाई देता,
भगतसिंह, विस्मिल, सुभाष की तू ही तो मुस्कान…
जीवन को मल्हार समझ कर गाने वालो
जीवन को मल्हार समझ कर गाने वालो |
सपनों की दुनिया का बोझ उठाने वालो ||
डिस्को,पब, दारू पार्लर और सैर सपाटे,
क्या आडम्बर और छलावा ही जीवन है?
अपनों से अपनों की दूरी का ये आलम,
आपस में सब मौन और संवाद हीन हैं||
भरी भीड़ में रहे अकेले तुम बरसों तक,
यह एकाकीपन अपनों के संग मिटा लो||
थोड़ी देर ठहर कर पौधों से बतिया लो,
माँ, पापा के सुख दुःख का भी हाल जरा लो|
बस मोबाइल करो किनारे, नजर उठाओ,
देखो कितना प्यारा सा नन्हा बचपन है||
खुद से खुद के मिलने का ये समय निराला,
ये भी है सौभाग्य इसे बाहों में भर लो|