संस्मरण : अलका प्रमोद
संचालिका सुश्री राजुल अशोक जी के साथ दिनांक 09.9.20 को, प्रकाशक के मंच पर मेरी चर्चा हो रही थी। संयोग से उस दिन लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकार मनोहर श्याम जोशी जी का जन्मदिन था ,स्वाभाविक है कि उनको स्मरण करते हुए उन पर चर्चा होनी ही थी । मनोहर श्याम जोशी जी मेरे प्रिय लेखक तो हैं ही पर साथ में मैं उनके साथ एक व्यक्तिगत आत्मीयता भी अनुभव करती हूँ, क्योंकि वह मेरे पापा श्री कृष्णेश्वर डींगर जो स्वयं भी एक वरिष्ठ एवं प्रतिष्ठित साहित्यकार थे, के लखनऊ विश्वविद्यालय में सहपाठी भी रहे थे। यदा- कदा पापा और उनके मध्य पत्रों का आदान प्रदान होता रहता था, जिनके माध्यम से जोशी जी को जानने का मुझे भी अवसर मिला । उनके व्यक्तित्व की सहजता ,सरलता और उदारता को समझने के लिये जोशी जी के द्वारा पापा का लिखे गये पत्र का यह अंश ही पर्याप्त है।-
‘‘…देवरिया में मिले सम्मान की राशि, गरीब बच्चों की शिक्षा के लिये लौटा देने पर तुमने बधाई दी है, आभारी हूँ । तुम्हें यह जान कर खुशी होगी कि मेरी इस हरकत से पुरस्कार देने वाले सेठ जी को भी तैश आ गया और उन्होंने 51 हजार की उस राशि में साढ़े चार लाख अपनी ओर से डाल कर जिले में वजीफे देने के लिये 5 लाख का ट्रस्ट बनवा दिया।…….’’
इसी प्रकार एक पत्र और ,जो उनकी रोचक लेखन शैली तथा हास्य में लिपटे व्यंग्य की झलक दिखलाता है-
‘‘…तुम्हारी बधाई बड़ा ख्याल गाती हुई मन्द मन्थर गति से 25 दिसम्बर को चल कर 15 जनवरी को पहुँची।आशा करता हूँ कि तुम्हारी बधाई के लिये मेरा यह धन्यवाद पाप म्यूजिक गाता हुआ तुम्हें अविलम्ब मिल जाएगा।
मुझे डाक विभाग से कोई शिकयत नहीं है क्योंकि जो पुरस्कार तुम्हारे-जैसे सभी मित्रों के अनुसार मुझे विलम्ब से मिला। उसी के लिये बधाई भी विलम्ब से पहुँची है।…..’’
ऐसे संवेदनशील सहज सरल स्थापित साहित्यकार को सादर नमन।
अलका प्रमोद