कविता : दिव्या त्रिवेदी
बेवजह ही सही
ठीक है चलो माना
हम दोनों के दरमियाँ
नहीं है कुछ खास जैसा।
मिल गए होंगे हम यूँ ही
जुड़ गए होंगे बेसबब ही
साथ भी हैं हम बेवजह ही।
लेकिन ये बेसबब जुड़ना
और बेवजह का साथ है ना,
ये बस यूँ ही नहीं है।
बस कहने को है यूँ ही
सब हमारे दरमियाँ, पर
ये जो यूँ ही है बस यूँ ही नहीं है।
बेसबब बेवजह का साथ
ये जो खास नहीं होने वाला
एहसास है,
ये ही तो है बहुत खास।
वजह तो मतलब से पैदा होती है
और फिर
मतलब के नाते का क्या मतलब।
अनमोल तो वही है जो
बेवजह, बेमतलब भी
जुड़ा रहे, साथ रहे, खास रहे।
तो वादा करो
बेवजह यूँ ही बस तुम
बिना किसी मतलब के
रहोगे ना मेरे लिए हमेशा।