कहानी:मिलन-संजीव जायसवाल ‘संजय’

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​​​​​​कथाकार:संजीव जायसवाल ‘संजय’ 

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​​कलकत्ता से आने वाली स्यालदा एक्सप्रेसप्लेटफार्म नंबर एक पर आकर रूकी ही थी कि आयोजकों और पत्रकारों की भीड़ ने वातानुकूलित शयनयान को घेर लिया । समाज के उच्च वर्ग का प्रतिनिधत्व करने वाले व्यक्तियों की भीड़ के चेहरे से शिष्टता का आवरण अनायास ही सरकने लगा था । आगे पहुंचने की आकांक्षा ने एक अजीब सी धींगामुश्तीका दृश्य उत्पन्न कर दिया दिया था ।

​​इस ट्रेन से देश की प्रसिद्ध नृत्यांगना मिलन रायलखनऊ में अपनी प्रथम प्रस्तुति के लिये आ रही थीं । उनके प्रसशंक उनके स्वागत में पलकें बिछाये बैठे थे किन्तु ट्रेन के दो घंटा विलम्बित हो जाने से प्रतीक्षा, अकुलाहट और फिर अधीरता में परिर्वतित हो गयी थी ।

​​शयनयान के गेट पर मिलन राय की झलक दिखते ही कैमरों की फलैश लाइटें जगमगा उठीं । उनके कदमों ने लखनऊ की सरजमीं को चूमा ही था कि पुष्पाहारों ने उनकी खूबसूरत गर्दन को चूमना प्रारम्भ कर दिया । नाजुक शरीर जब गुलाब की कोमल पंखुड़ियों के बोझ तले दबने लगा तब मिलन राय ने मुस्कराते हुये प्रसशंको के पुष्पहारों को अपने संगमरमरी हाथों में लेना प्रारम्भ कर दिया ।

​​एक प्रसशंक से हार ले वह दूसरे की ओर उछाल देतीं । जिसका हार वह स्वीकारतीं वो धन्य हो जाता लेकिन जिसके उपर उनका उछाला हुआ हार गिरता वह तृप्ति के सागर में पहुंचअतृप्ति के गोते लगाने लगाता । प्रसंशको की भीड़ से बहुत मुशिकलों से निकाल कर मिलन राय को कार तक पहुंचाया जा सका ।

​​प्रसिद्व नृत्यांगना के रूप में उनका यह लखनऊ में प्रथम आगमन था किन्तु उनके जीवन के कई महत्वपूर्ण वर्ष लखनऊ में व्यतीत हुये थे । कितना कुछ बदल गया था उनके जीवन में इन चंद वर्षो  में । किन्तु इस बीच लखनऊ में कोई खास परिर्वतन नहीं हुआ था । स्टेशन से आर.डी.एस.ओ. कालोनी तक जाने वाली सड़क आज भी वैसी की वैसी ही थी । बिल्कुल शांत, जाने कितने दास्तानों को अपने कलेजे में समेटे हुये वह आज भी किसी आगन्तुक की प्रतीक्षा में लीन थी ।

​​हां, आर.डी.एस.ओ. कालोनी में कुछ परिर्वतन अवश्यहुये थे । एनेक्सी भवन के पीछे बना नवीन आडीटोरियम अब विशिष्ट समारोहों का साक्षी और प्रतीक बन चुका था । इसी आडीटोरियम में मिलन राय को आज शाम अपनी सुप्रसिद्नृत्य-नाटिका ’रति-कामदेव ‘ की प्रस्तुति करनी थी । 

​​मिलन राय स्वयं रति की प्रतिरूप थीं । कामदेव की भूमिका उनकी सहयोगी नृत्यांगना प्रशस्ति गुहा निभाती थीं ।मिलन राय की नृत्य मंडली की विशिष्टता थी कि उसमें पुरूष पात्रों की भूमिका का निर्वाह भी नारियां ही करती थीं । नृत्य मंडली में एक भी पुरूष कलाकार न था। केवल साजिन्दे और तकनीशयन पुरूष थे ।

​​विश्रामगृह से तैयार होकर मिलन राय अभ्यास हेतु आडीटोरियम पहुंच गयीं । प्रशस्ति और अन्य सहयोगी रंगकर्मी दो दिन पूर्व ही लखनऊ आ गये थे । उनके अथक प्रयत्नों से मंच पर कैलाश पर्वत का दृष्य सजीव हो उठा था ।

​​’’अद्वितीय, अतिसुन्दर । प्रशस्ति, तुम लोगों ने तो साक्षात कैलाश पर्वत को वसुन्धरा पर अवतरित कर दिया है‘‘ मिलन राय ने प्रशस्ति को प्रसंशात्मक दृष्टि से देखते हुये कहा । 

​​’’लखनऊ से तुम्हारे जीवन की मधुर स्मृतियां जुड़ी हैं इसलिये हम सबने आज अपना सर्वोत्कृष्ट प्रर्दशन करने का निष्चय किया है ताकि तुम लखनऊ वासियों की स्मृतियों में हमेशा-हमेशा के लिये रच बस जाओ ‘‘ प्रशस्ति ने मुस्कराते हुये बताया ।

​​’’मेरी स्मृतियां? लेकिन तुम्हे कैसे मालुम?‘‘ मिलन राय बुरी तरह चौंक पड़ी ।

​​’’ तुम्हारा बचपन लखनऊ में बीता है और कौन नहीं जानता कि बचपन की स्मृतियां सदैव मधुर होती हैं‘‘ प्रशस्ति खिलखिला उठी ।

​​’’ओह‘‘ मिलन राय ने राहत की सांस ली फिर हंसते हुये बोलीं,’’यदि आज्ञा हो तो मैं भी तुम्हारी योजना में सम्मिलित हो आज की प्रस्तुति को यादगार बनाने में अपना तुच्छ सहयोग अर्पित करूं।‘‘

​​’’मां-बदौलत तुम्हें अनुमति प्रदान करते हैं‘‘ प्रशस्ति ने अपना हाथ उपर उठा कर कुछ ऐसे अंदाज में कहा कि सभी कलाकार हंस पड़े । एक खुशनुमा माहौल कायम हो गया था ।

​​मिलन ने गहन दृष्टि ने चारों ओर का सूक्ष्म निरीक्षण किया । सभी साजिन्दे अपने-अपने वाद्ययन्त्रों और लाईटमैन अपने-अपने उपकरणों के साथ तैयार खड़े थे । उसने संतुष्टि के साथ सिर हिलाया फिर प्रशस्ति की ओर देखते हुये बोली,’’तो, हो जाये ।‘‘

​​’’हो जाये‘‘ प्रशस्ति ने सिर हिला कर हामी भरी । 

​​’’टेन, नाईन, ऐट, सेवन, सिक्स, फाईव, फोर, थ्री, टू, वन , रेडी एण्ड स्टार्ट ‘‘ मंच पर मिलन की कोमल वाणी अपनी भरपूर शक्ति के साथ गूंजी । इसी के साथ मंच पर  अंधेरा छा गया ।

​​अचानक बिजली कड़कने की ध्वनि गूंजने लगी । साजिन्दों ने पूरे आडीटोरियम में तूफान का प्रभाव उत्पन्न कर दिया था । विद्युतकर्मियों का कौशल भी किसी से कम न था । उनके उपकरणों के प्रभाव से मंच पर बने कैलाश के शिखर बिजली कड़कने की ध्वनि से क्षणांस पहले रौशनी से जगमगा उठते थे । इस रौशनी में समाधि में लीन कामदेव बनी प्रशस्ति के शरीर की झलक दिखलायी पड़ रही थी ।

​​तभी पर्वत श्रंखलाओं के पीछे, दूर कहीं से घुंघरूओं की मधुर धुन सुनायी पड़ी । हर बीतते पल के साथ वो धुन तीव्र से तीव्रतम होती जा रही थी इसी के साथ तूफान की गति बढतीजा रही थी । अचानक दूधिया प्रकाश के गोले के मध्य रति के रूप में नृत्य करती हुयी मिलन मंच पर अवतरित हुयी । 

​​उसके घुघरूओं की आवाज सुन कामदेव ने धीरे-धीरे अपने नेत्र खोले । नृत्य कर रही रति के मादक शरीर पर दृष्टि पड़ते ही उनके शरीर में कंपकपी सी छूट गयी । अगले ही पल उनका धनुष उनके हाथों में था । लक्ष्य साध उन्होने फूलों से आच्छादित बाण छोड़ दिया । 

 ​कामदेव का बाण लगते ही रति बनी मिलन मूच्र्छित हो गयी । क्षण भर के लिये सारे वाद्ययंत्र शांत से हो गये किन्तु अगले ही पल रति अंगड़ाई लेते हुये उठ खड़ी हुयी और झूम-झूम कर नृत्य करने  लगी । कामदेव के रूप में प्रशस्ति भी कदम से कदम मिला कर उसका साथ दे रही थी । दोनों ही मदहोशहोकर नृत्य कर रहे थे । कोई किसी से कम न था । संगीत की धुन के साथ-साथ नृत्य की लय और गति दोनेा ही बढती जा रही थी । सुर और अभिनय की संगत का समां चरमोत्कर्ष की ओर बढता जा रहा था ।

​​अचानक जैसे सप्तम स्वर पर पहुंच कर वीणा के तार टूट गये । तेज चीख के साथ प्रशस्ति मंच पर गिर पड़ी । सारे वाद्ययन्त्र एकाएक खामोश हो गये । आडीटोरियम के तेज रौशनी वाले बल्ब एक-एक करके जलने लगे । मंच पर प्रशस्ति अपने पैरों को पकड़े सिसकारी भर रही थी ।

​​’’क्या हुआ प्रशस्ति ?‘‘ मिलन ने घबराये स्वर में पूछा ।

​​’’नृत्य करते समय पैर का पंजा तिरछा पड़ गया था । लग रहा है कि हड्डी चटक गयी है । दर्द के कारण प्राण निकले जा रहे हैं‘‘ प्रशस्ति ने कराहते हुये बताया ।

​​’’चिंता मत करो । मोच आ गयी होगी । सब ठीक हो जायेगा‘‘ मिलन ने सांत्वना दी और प्रशस्ति के पैरों की मालिशकरने लगी ।

​​प्रशस्ति को राहत नहीं मिली । उसका दर्द बढता ही जा रहा था । मिलन ने कातर दृष्टि से आयोजन समिति के सचिव की ओर देखा । वह उसके मनोभावों को समझ गये थे । समझते भी क्यों नहीं ? कार्यक्रम के सफलता की जितनी चिंता मिलन को थी उससे ज्यादा उनको थी ।

​​उन्होंने फोन किया तो एम्बुलेंस आ गयी । मिलन ने सहारा देकर प्रशस्ति को एम्बुलेंस के भीतर लिटाया फिर बोली,’’तुम चलो, मैं दूसरी गाड़ी से आ रही हूं ।‘‘

​​एम्बुलेंस के जाते ही उसने जल्दी-जल्दी अपने साथियों को कुछ निर्देश दिये  फिर दूसरी गाड़ी से अस्पताल की ओर रवाना हो गयी । उसके चेहरे पर चिंता की रेखायें छायी हुयी थीं । यदि प्रशस्ति को कुछ हो गया तो आज का कार्यक्रम गड़बड़ा जायेगा । इतनी जल्दी दूसरे कार्यक्रम की तैयारी संभव न थी।

​​डा0 सागर अस्पताल के मुख्य द्वार पर ही प्रशस्ति की प्रतीक्षा कर रहे थे । उन्होंने सहारा देकर उसे व्हील चेयर पर बिठलाया । वार्ड ब्वाय व्हील-चेयर को लेकर उनके कक्ष की ओर चल दिया ।

​​’’डा0साहब, चिंता की कोई बात तो नहीं है ?‘‘ प्रशस्ति ने दर्द को काबू में करते हुये पूछा ।

​​डा0सागर ने प्रशस्ति के चेहरे पर एक उचटती हुयी दृष्टि डाली फिर गंभीर स्वर में बोले,’’मैडम, बिना जांच किये मैं कुछ नहीं बता सकता ।‘‘

​​डा0सागर का व्यक्तित्व काफी गंभीर मालूम पड़ रहा था अतः प्रशस्ति चाह कर भी और कुछ नहीं पूछ पायी ।

​​अपने कक्ष में पहुंच डा0सागर ने प्रशस्ति को मेज पर लिटाया फिर उसके पंजो की जांच करते हुये बोले,’’लगता है हल्का सा फै्रक्चर हो गया है । एक्सरे करवाना पड़ेगा तभी स्पष्ट रूप से कुछ पता चल सकेगा ।‘‘

​​’’लेकिन आज शाम को तो हमारा कार्यक्रम है‘‘ तभी कक्ष में घुस रही मिलन ने चिंतित स्वर में कहा । डा0सागर की बात सुन वह बुरी तरह परेशान हो उठी थी ।

​​’’मैं देखने अवश्य आउंगा ‘‘ डा0सागर ने पीछे मुड़े बिना सपाट स्वर में कहा ।

​​’’जी, मेरा ये मतलब नहीं था ‘‘ मिलन हड़बड़ा उठी । 

​​’’तो फिर ?‘‘ डा0 सागर ने पीछे मुड़ अपनी भावना शून्य दृष्टि मिलन के चेहरे पर टिका दी ।

​​मिलन बुरी तरह चैंक पड़ी । उसके होंठ कुछ कहने के लिये थरथराये किन्तु वह जड़ होकर रह गयी । डा0 सागर की दृष्टि उसके अन्र्तमन तक कों बींधें डाल रही थी किन्तु वह कुछ कह पाने में असमर्थ थी । काफी देर तक सन्निपात की स्थित में खड़े रहने के बाद उसने किसी तरह अपने को संभाला और बोली, ’’मेरा मतलब था कि हम लोगों को अभ्यास के दौरान इस तरह की मोच आती रहती  हैं । आप इन्हें मार्फीन का इंजेक्शन दे दीजये ताकि ये अपना कार्यक्रम प्रस्तुत कर सकें ।‘‘

​​’’ मैं एक डाक्टर हूं और मैं शरीर की सुरक्षा की कीमत पर नृत्य करने की अनुमति नहीं दे सकता ‘‘ डा0सागर ने दो टूक शब्दों में फैसला सुनाया । 

​​’’आप समझने की कोशिश कीजये । आज की नृत्य नाटिका में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका इसकी  ही है ‘‘ मिलन का स्वर कातर हो उठा ।

​​’’मैडम, नृत्य आपके लिये सब कुछ होगा लेकिन मेरे लिये यह समय काटने का साधन मात्र है और इस खेल के लिये मैं अपने मरीज के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकता‘‘ डा0 सागर का स्वर सख्त हो गया । फिर कुछ सोच कर वह शांत स्वर में बोले,  ’’अगर आपको मुझ पर विश्वास नहीं है तो मरीज को किसी दूसरे डाक्टर के पास ले जा सकती हैं ।‘‘ 

​​मिलन के होंठ एक बार फिर कांप कर रह गये । वह चाह कर भी कुछ नहीं कह सकी । प्रशस्ति जानती थी कि मिलन ने इस कार्यक्रम के लिये बहुत मेहनत की है इसलिये उसका व्यथित होना स्वाभाविक  है । अपना दर्द भूल उसने मिलन का हाथ पकड़ मुस्कराने की कोशिश की ,’’तुम परेशान मत हो । एक्सरे हो जाने   दो । देखना कुछ नहीं निकलेगा । आज रात अपना कार्यक्रम अवश्य होगा । ऐसा कार्यक्रम जिसे लखनऊ वाले कभी भूल नहीं पायेंगे ।’’

मिलन चाह कर भी नहीं मुस्करा पायी । डा0सागर, प्रशस्ति को लेकर एक्सरे कक्ष में चले  गये । मिलन के कानों मे उनके शब्द ‘नृत्य आपके लिये बहुत कुछ होगा किन्तु मेरे लिये यह समय काटने का साधन मात्र है‘ अंगार की भांति दहक रहे थे । उसके कानो ने वर्षों पहले भी इन शब्दों को सुना था ।  

​​उसके पिता की नियुक्ति तब लखनऊ में ही थी । हेमन्त उसका पड़ोसी और सहपाठी था । साथ खेलते और पढ़ते-पढ़ते दोनों कब इंटर में पहुंच गये पता ही नहीं चला। मिलन, हेमन्त के प्रति एक अजीब से आर्कषण का अनुभव करने लगी थी जिसे चाह कर भी वो कोई नाम नहीं दे पाती । हेमन्त भी उसे अपना सबसे अच्छा दोस्त मानता था । वह कभी उसकी कोई बात नहीं टालता था।

​​कालेज के वार्षिकोत्सव मे उन दोनों ने एक नृत्य नाटिका प्रस्तुत की थी जिसकी बहुत प्रसंशा हुयी थी । भारतखंडे संगीत अकादमी के निदेशक उस समारोह के मुख्य अतिथि थे । 

​​समारोह के पश्चात उन्होंने कहा,’’तुम दोनों में नैर्सगिक प्रतिभा है । अगर मेहनत करो तो कला के क्षेत्र में शिखर तक पहुंच सकते हो । यदि तुम लोग चाहो तो मैं अपनी आकदमी में प्रवेश के साथ-साथ तुम्हें छात्रवृत्ति भी दिलवा सकता हूं ।‘‘

​​’’धन्यवाद सर, लेकिन हमारा उद्देश्य तो डाक्टर बनना है‘‘ हेमन्त ने बिना एक पल गंवाये उत्तर    दिया ।

​​’’डाक्टरेट तो तुम कला के क्षेत्र में भी कर सकते हो‘‘ निदेशक मुस्कराये ।

​​’’सर, हम लोग संगीत वाला नहीं बल्कि मरीज वाला डाक्टर बनना चाहते हैं‘‘ हेमन्त ने सम्मानित स्वर में कहा ।

​​’’जैसी तुम्हारी मर्जी‘‘ निदेशक ने हेमन्त की पीठ थपथपायी फिर बोले,’’वैसे हमारे संस्थान के दरवाजे तुम्हारे जैसे प्रतिभावान छात्रों के लिये हमेशा खुले हैं । अगर कभी विचार बदले तो आ जाना ।‘‘

​​यह सुन मिलन ने कहा ’’ हेमन्त, हमारी छुट्टियां होने वाली हैं । क्यों न हम लोग थोड़े दिनों के लिये संगीत अकादमी ज्वाईन कर लें । सर की बात भी रह जायेगी और हमें भी कुछ सीखने का मौका मिल जायेगा ।’’

​​’’लेकिन इससे हमारी पढ़ाई पर असर पड़ेगा ‘‘ हेमन्त ने टोंका ।

​​’’कोई असर नहीं पड़ेगा । शाम के समय तुम लोग खेलते या घूमते होगे उस समय आ जाना । हमारे यहां सायंकालीन कक्षायें भी चलती हैं ‘‘ निदेशक ने बताया ।

​​हेमन्त पुनः इन्कार करने जा रहा था कि तभी मिलन ने विनती की,’’ प्लीज हेमन्त , क्या हमारे लिये इतना भी नहीं कर सकते ?‘‘ 

​​अब तो इन्कार का कोई प्रश्न ही नहीं उठता था। हेमन्त ने आज तक मिलन की कोई बात नहीं टाली थी फिर यह बात कैसे टालता । दोनों संगीत अकादमी की सायंकालीन कक्षाओं में जाने लगे । उसके निदेशक सच्चे जौहरी थे । उन्होने रत्नों की पहचान कर ली थी । कुछ ही दिनों में हेमन्त और मिलन न केवल भारतनाट्यम में पारंगत हो गये बल्कि एक अतंराज्यीय प्रतियोगिता में पुरस्कार भी जीत लाये । 

​​पुरस्कार जीतने वाले दिन हेमन्त ने पहली बार अपने प्यार की अभिव्यक्ति की थी । मिलन को तो जैसे मुंहमांगी मुराद मिल गयी । वह बहुत प्रसन्न थी । उसने नृत्य को ही अपना कैरियर बनाने का निश्चय कर लिया था ।

​​हेमन्त को जब इस बात का पता चला तो उसने समझाया,’’गीत-संगीत शौक पूरा करने के लिये तो ठीक है लेकिन इनके सहारे जिंदगी नहीं काटी जा सकती । जिंदगी जीने के लिये कुछ करना जरूरी होता है ।‘‘

​​’’हम कुछ नहीं बल्कि बहुत कुछ करेंगे लेकिन नृत्य के क्षेत्र में । देखना एक दिन पूरे देश में हमारा नाम होगा ‘‘ मिलन मुस्करायी ।

​​’’मुझे तो तुम माफ कर दो । तुम्हारे कहने पर इतने दिन का कोर्स कर लिया यही बहुत है। अब मैं सिर्फ अपनी पढ़ाई पर ध्यान दूंगा । मुझे हर हालत में मेडिकल में सलेक्ट होना है‘‘ हेमन्त ने निर्णय सुनाया  

​​मिलन ने बहुत समझाया लेकिन हेमन्त नहीं माना । वह अपने निर्णय पर अडिग रहा । एक वर्ष पश्चात उसे लखनऊ मेडिकल कालेज में प्रवेश मिल गया । मिलन ने नृत्य की पूर्ण कालीन कक्षाओं में प्रवेश ले लिया था। दोनों अपने-अपने क्षेत्र में आगे बढ़ रहे थे । इसी के साथ उनका प्यार भी आगे बढ़ रहा था ।

​​एक दिन मिलन को अपनी मां से मिलवाने घर ले गया । मां ने पहली ही नजर में बेटे की पसंद को पसंद कर लिया । बातों – बातों में जब उन्हें पता चला कि मिलन नृत्य की शिक्षा ग्रहण कर रही है तो उन्होने समझाया,’’बेटा, हम खानदानी लोग हैं । हम लोगों की बहू-बेटियों का नाचना-गाना अच्छा नहीं लगता। मुझे तुम पसंद हो लेकिन दहेज में मैं सिर्फ इतना चाहती हूं कि तुम यह काम छोड़ दो ।’‘

​​मिलन ने उनकी बात का कोई उत्तर नहीं दिया । सिर झुका कर चुप हो गयी । वापस लौटते समय रास्ते में हेमन्त ने पूछा,’’मिलन, तुमने क्या सोचा है ?‘‘

​​’’किस बारे में ।‘‘

​​’’मां के दहेज के बारे में ‘‘ हेमन्त मुस्कराया ।

​​मिलन ने अपनी बड़ी-बड़ी पलकों को उठा कर हेमन्त की ओर देखा फिर बोली,’’हेमन्त, तुम जानते हो कि मां की यह मांग पूरी कर पाना मेरे लिये संभव नहीं है ।‘‘

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​​’’अगर यह मांग मेरी हो तो क्या तुम तब भी इन्कार करोगी ?‘‘ हेमन्त ने उसकी आंखो में झांका ।

​​’’ हेमन्त, मेरा इम्तिहान मत लो’’ मिलन अचकचा उठी ।

​​’’ये जिंदगी एक इम्तिहान है जिसे देना ही पड़ता है । मैं जानना चाहता हूं कि मेरे प्यार की खातिर तुम अपना यह शौक छोड़ सकती हो या नहीं‘‘ हेमन्त का स्वर अचानक गंभीर हो गया ।

​​’’ यह मेरा शौक नहीं बल्कि प्यार है ‘‘ मिलन का स्वर कांप उठा ।

​​’’और मैं ?‘‘

​​’’तुम तो मेरा पहला प्यार हो‘‘ मिलन ने अपना सिर हेमन्त के कंधो पर टिका दिया,’’अगर तुम मेरी जिंदगी हो तो नृत्य मेरी आत्मा । तुम मेरा दिल हो तो नृत्य मेरी धड़कन । मैं दोनों में से किसी एक से भी अलग नहीं हो सकती ।‘‘

​​’’तुम्हें होगा नृत्य से प्यार लेकिन मैं नफरत करता हूं इससे । इसकी वजह से हमारे बीच दीवार खड़ी हो रही है ‘‘ हेमन्त झल्ला उठा ।

​​’’तुम ऐसा क्यूं सोचते हो । हमारे बीच कभी कोई दीवार नहीं आ सकती । तुमसे मिलन ही इस मिलन के जीवन का लक्ष्य है ‘‘मिलन ने प्यार भरी दृष्टि से हेमन्त को निहारा ।

​​’’कविता करना छोड़ यथार्थ के धरातल पर उतरो । नृत्य तुम्हारे लिये बहुत कुछ होगा किन्तु मेरे लिये यह समय काटने का साधन मात्र है । इसके लिये मैं अपने घर की शांति नहीं बर्बाद कर सकता । आज तुम्हें मुझमें और अपने नृत्य में से किसी एक को चुनना होगा‘‘ हेमन्त का स्वर कड़ा हो गया । वह आज आर-पार का फैसला कर लेना चाहता था ।

​​’’ हेमन्त, मुझे तुम दोनों चाहिये । किसी एक के बिना मेरी जिंदगी अधूरी रह जायेगी‘‘ मिलन फफक पड़ी ।

​​हेमन्त के जबड़े सख्ती से भिंच गये । मिलन रास्ते भर सिसकती रही लेकिन हेमन्त ने उसे चुप कराने की कोशिश नहीं की। उसे घर छोड़ कर वह चुपचाप वापस लौट आया । 

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​ ​अगले दिन मिलन जब मिली तो उसकी आंखे सूजी हुयीं थीं । उसने सोचा था कि शायद हेमन्त ने अब तक अपनी जिद छोड़ दी होगी लेकिन उसका अंदाजा गलत निकला । हेमन्त ने मिलते ही बिना किसी भूमिका के अपना प्रश्न दोहरा दिया । उस दिन मिलन फूट-फूट कर रोयी किन्तु हेमन्त का मन नहीं पसीजा । वह अपनी जिद पर अड़ा रहा ।

​​संयोग से अगले ही दिन मिलन के पिता का तबादला कलकत्ता हो गया। मिलन ने जब फोन पर इसकी सूचना हेमन्त को दी तो वह बोला,’’मिलन, भौगोलिक दूरियों से प्यार में कोई कमी नहीं आती । बस जाने से पहले इतना बता देना कि तुम्हें हमारी बात मंजूर है या नहीं ?‘‘

​​प्रत्युत्तर में फोन पर मिलन की सिसकारियां गूंजती रही । थोड़ी देर बाद हेमन्त ने झल्लाकर फोन काट दिया । वह मिलन का उत्तर समझ गया था तभी उससे मिलने भी नहीं आया । मिलन ने उससे मिलने की कोशिश की लेकिन असफल रही । उससे मिले बिना ही उसे लखनऊ छोड़ना पड़ा था।

​​समय का पंक्षी पंख लगा कर उड़ता रहा । एक-एक करके 12 साल बीत गये । भारतखंडे संगीत अकादमी के निदेशक की बात सत्य निकली । मिलन इस बीच कला के शिखर पर पहूँच गयी थी । एक नृत्यांगना के रूप में देश में ही नहीं अपितु विदेश में भी उसकी कीर्ति फैल चुकी थी । अपना सब कुछ भूल वह पूर्णतया नृत्य को सर्मपित हो चुकी थी किन्तु एक अधूरेपन का एहसास अक्सर उसे सालता रहता था । आज डा0 सागर की बात सुन उसके घाव ताजा हो गये थे ।

​​’’मिलन, मेरी एड़ी में फै्रक्चर है । डाक्टर साहब का कहना है कि अगर ऐसे में मैने नृत्य किया तो पैर हमेशा के लिये खराब हो सकता है । इसलिये उन्होने प्लास्टर चढा दिया है ‘‘ तभी प्रशस्ति ने करीब आ उसकी तंद्रा भंग की ।

​​’’ओह….‘‘ मिलन बुरी तरह चैंक पड़ी ।

​​’’समय बहुत कम है । क्या इतनी जल्दी दूसरी नृत्य-नाटिका का रिर्हसल हो पायेगा‘‘ प्रशस्ति चिंतित स्वर में बोली ।

​​’’उसकी आश्यकता नहीं पड़ेगी ।‘‘

​​’’क्यों?‘‘

​​’’क्योंकि हम दूसरी नहीं बल्कि वही नृत्य-नाटिका प्रस्तुत करेंगे‘‘ प्रशस्ति के पैर में बंधे प्लास्टर को देख मिलन झटके के साथ खड़ी हो गयी । उसके चेहरे पर दृढता के भाव छाये हुये थे।

​​’’माफ कीजयेगा मैडम, मैं आपकी नृत्य-नाटिका के लिये प्रशस्ति को नृत्य करने की इजाजत नहीं दे सकता । क्योंकि इसका अंजाम क्या हो सकता है यह मैं जानता हूं ‘‘डा0सागर ने सख्त स्वर में टोंका ।

​​’’ आपको हमारे लिये परेशान होने की आवश्यकतानहीं है । आपने अपना काम कर दिया । अब हमें अपना काम कैसे करना है यह सोचना हमारी जिम्मेदारी है‘‘ मिलन का स्वर अप्रत्याशित रूप से तेज हो गया ।

​​प्रशस्ति कुछ कहना चाहती थी किन्तु मिलन के चेहरे पर छाये तूफान को देख उसे कुछ कहने की हिम्मत नहीं हुयी । वह समझ गयी थी कि मिलन अपने कार्यक्रम की सफलता को लेकर बहुत बेचैन   है । मिलन के अन्दर चल रहे अंतर्द्वंद की उसे भनक तक न थी । डा0सागर ने भी इस समय और कुछ कहना उचित नहीं समझा ।

​​एम्बुलेंस अस्पताल के मुख्य द्वार के सामने खड़ी थी । उसमें बैठते हुये प्रशस्ति ने डा0सागर से कहा,’’शाम को कार्यक्रम देखने अवश्य आईयेगा ।‘‘

​​’’पहले ईरादा नहीं था किन्त अब अवश्य आउंगा‘‘ डा0सागर ने  मिलन पर एक उचटती हुयी दृष्टि डालते हुये कहा ।

​​’’अपने परिवार को भी साथ लाईयेगा‘‘ प्रशस्ति हल्का सा मुस्करायी । 

​​’’परिवार ?‘‘ डा0सागर के चेहरे पर दर्द भरी मुस्कराहट तैर गयी,’’इस मामले में मैं र्दुभाग्यशाली   हूं । मेरा परिवार बसने से पहले ही उजड़ गया था ।‘‘  

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​​इतना कह वह पीछे मुड़े और तेज कदमों से अस्पताल के भीतर चले गये । प्रशस्ति अपराध बोध से ग्रसित हो उठी । उसे लगा कि परिवार की बात छेड़कर उसने अच्छा नहीं किया। वह रास्ते भर मौन रही । 

​​ विश्राम-गृह पहुंच कर मिलन ने सहारा देकर प्रशस्ति को नीचे उतारा । उसके पैर में चढे़ प्लास्टर को देख सभी के चेहरे पर छायी चिंता की रेखायें गहरी हो गयीं । किन्तु मिलन के चेहरे पर दृढता छायी हुयी  थी । उसने सब को आश्वसत किया कि न्त्य-नाटिका पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार ही होगी । उसमें किसी परिर्वतन की आवश्यकता नहीं है । 

​​भीड़ छंटने के बाद प्रशस्ति ने पूछा,’’तुम रति-कामदेव की प्रस्तुति तो कर रही हो लेकिन उसमे कामदेव की भूमिका करेगा कौन ?‘‘

​​’’तुम ।‘‘

​​’’मैं ?‘‘ प्रशस्ति उछल पड़ी,’’लेकिन मेरे पैर में तो प्लास्टर बंधा हुआ है ।‘‘

​​’’तुम पालथी मार कर आराम से समाधि में लीन रहना । बाकी सब मैं संभाल लूंगी‘‘ मिलन ने   समझाया ।

​​’’तो क्या तुम अकेले ही नृत्य करोगी ? कामदेव की संगत के बिना नाटिका अपनी परिणित तक कैसे पहूंचेगी ?‘‘ प्रशस्ति असमंजस से भर उठी ।

​​’’तुम्हें मुझ पर भरोसा है न ?‘‘ मिलन ने प्रशस्ति के कंधो पर हाथ रखते हुये पूछा । उसने जब सिर हिला कर हामी भरी तो मिलन ने राहत की सांस ली और बोली,’’आज रात साक्षात रति का नृत्य  होगा । एक अद्भुत, अद्वितीय और अविस्मरणीय नृत्य । बस तुम्हें मेरी सौगंध खानी होगी कि चाहे कुछ भी हो जाये तुम अपनी समाधि भंग नहीं करोगी ।‘‘

​​’’तुम करना क्या चाहती हो ?‘‘ प्रषस्ति अचकचा उठी।

​​’’कोई प्रश्न मत पूछो और सिर्फ रात्रि की प्रतीक्षा करो‘‘ मिलन ने कहा और प्रशस्ति का हाथ पकड़ कर अपने सिर पर रख दिया । 

​​न चाहते हुये भी असमंजस से भरी प्रशस्ति को सौंगध खानी पड़ी । किसी की भी समझ में नहीं आ रहा था कि मिलन क्या करने वाली है किन्तु सभी को उसकी क्षमताओं पर विश्वास था । अतः तैयारी एक बार फिर प्रारम्भ हो गयी ।

​​शाम होते ही पूरा आडीटोरियम रौशनी से जगमगा उठा । कीमती परिधानों में सजे-संवरे विशिष्ट अतिथियों की भीड़ वहां जुटने लगी । यह मिलन राय की लोकप्रियता का परिणाम था कि समय से पूर्व ही पूरा हाल खचाखच भर गया । 

​​मुख्य अतिथि के आने के बाद माईक पर मिलन राय की खनकती हुयी आवाज गूंजी,’’तहजीब की नगरी लखनऊ की सरजमीं पर मैं मिलन राय अपनी यूनिट के सदस्यों के तरफ से आप सबका स्वागत करती हूं । आज की रात एक विषेष रात है । वर्षो से कामदेव समाधि में लीन है आज रात रति उनका आहवाह्न करेगी । यदि उसकी नृत्य में शक्ति है तो कामदेव को अवतरित होना होगा । आज की नृत्य-नाटिका में सिर्फ नृत्य नहीं बल्कि रति की तपस्या और कामदेव के हठ के बीच परीक्षा होगी । हजारों तूफानों के बीच रति के थिरकते हुये कदम तभी थमेंगें जब कामदेव स्वयं आगे बढ कर उसे थामेंगें ।‘‘

​​इसी के साथ मंच पर अंधेरा छा गया और तालियों की गड़गड़ाहट से हाल गूंज उठा ।

​​’’प्रशस्ति, तुझे मेरी सौगन्ध याद है कि नहीं ?‘‘ पर्दे के पीछे खड़ी मिलन ने कामदेव बनी प्रशस्ति से फुसफुसाते हुये पूछा ।

​​’’याद है लेकिन तू करना क्या चाहती है‘‘ किसी अनिष्ट की आशंका से प्रशस्ति का स्वर कांप रहा  था ।

​​’’तू बस इतना याद रख कि अगर समाधि से बाहर आयी तो मेरा मरा हुआ मुंह देखेगी ‘‘ मिलन ने कहा और फिर समीप खड़े कर्मचारी को पर्दा खींचने का ईशारा कर दिया ।

​​इसी के साथ वाद्ययन्त्रों पर बिजली कड़कने की ध्वनि सुनायी पड़ने लगी । प्रशस्ति अभी बहुत कुछ पूछना चाहती थी किन्तु मजबूरी थी । न चाहते हुये भी उसे मंच पर बने पर्वत पर समाधि में लीन होने की मुद्रा में बैठना पड़ा । मिलन फुर्ती से वहां से हट गयी । 

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​​पर्दा खुलते ही बिजली जोर से चमकी । इसी के साथ मंच पर बने कैलाश पर्वत के शिखर जगमगा  उठे । तेज हवा की सरसराहट और बादलों की गड़गड़ाहट से एकबारगी हाल में बैठे दर्शकों के हृदय प्रकंम्पित हो उठे । साजिन्दों और तकनीशयनों के सम्मिलित प्रयास से मंच पर तूफान का प्रभाव उत्पन्न हो गया था ।

​​तभी दूर कहीं बांसुरी की मधुर धुन सुनायी पड़ी । इसी के साथ घुंघरुओं की छनक भी खनकी। अगले ही पल मंच पर रौशनी का एक गोला उभरा । उसके बीच न्त्य करती रति मंच पर अवतरित हुयी । उसके चेहरे पर बेचैनी के चिन्ह छाये हुये थे । उसकी आखें अत्यन्त बेचैनी से चारों दिशाओं में कुछ खोज रही थीं । 

​​दर्शकों ने करतल ध्वनि से उसका स्वागत किया । नृत्य करते हुये रति ने मंच का पूरा चक्कर काटा फिर एक स्थान पर खड़ी हो कर न्रत्य करने लगी । भाव-भंगिमा से वह अतृप्त प्रणयी सी व्याकुल दिखायी पड़ रही थी । अचानक जोर से बिजली कड़की । उसके साथ चमके प्रकाश में रति की दृष्टि समाधि में लीन कामदेव पर पड़ गयी ।

​​क्षणांस में उसके चेहरे पर तृप्ति के चिन्ह उभर आये । जैसे उसके मन की मुराद पूरी हो गयी   हो । जैसे उसकी तलाश पूर्णता तक पहुंच गयी हो । जैसे उसकी वर्षो की तपस्या सफल हो गयी हो । एक पैर पर खड़ी हो थिरकते हुये उसने दोनों हाथ जोड़े फिर नृत्य करता हुआ उसका शरीर धनुष की मुद्रा में कामदेव की ओर झुकने लगा । 

​​अराध्य की अर्चना करने के बाद वह मदमस्त हो कर नाचने लगी । उसके पैरों में  बिजली समा गयी थी। किसी झंझावत की भांति वह झूम-झूम कर नाच रही थी। उसका अंग-अंग थिरक रहा था । ऐसा लग रहा था कि आज कामदेव की समाधि भंग हो कर रहेगी । रौशनी के गोले ने रति को अपने घेरे में ले रखा  था । उसके लयबद्ध कदम जिधर जाते वह गोला उधर ही बढ़ जाता ।  

​​बिजली रह – रह कर कड़क रही थी । उसकी चमक में रति की दृष्टि जैसे ही समाधि में लीन कामदेव पर पड़ती उसके नृत्य की गति कुछ और तेज हो जाती । प्रणय याचना कर रही देवी का सर्वस्व देवता के चरणों में लीन हो जाने के लिये प्रस्तुत था किन्तु वे पूर्ववत समाधि में लीन थे । प्रणयी की वेदना हृदय में समेटे रति व्याकुल हिरणी सी कुलांचे भर रही थी । प्रचंड अग्नि की शिखा के समान उसका सर्वस्व धधक रहा  था । उसके चंचल पैरों की गति वायुदेव से प्रतिस्पर्धा कर रही थी । व्यतीत हो रहा प्रत्येक क्षण अपनी उर्जा विर्सजित कर उसकी उर्जा में श्रीवृद्धि कर रहा था।  

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​​उसका नृत्य देख चारों ओर सम्मोहन सा छा गया था। सभी मंत्रमुग्ध हो कर सिर्फ उसे ही निहार रहे थे । पलकें जैसे झपकना भूल गयी थीं । ऐसा अद्भुत नृत्य न तो पहले किसी ने देखा था और न ही सुना था। मिलन के थिरकते कदमों का साथ देने में दिग्गज संगीतकारों को पसीने छूटने लगे। पिछड़ जाने के कारण उनकी लय बार-बार टूट जाती थी । किन्तु मिलन पर इसका कोई असर नहीं पडता । संगीतकारों का साथ देने के लिये वह क्षण भर के लिये अपनी गति कुछ कम करती फिर पलक झपकते ही सप्तम सुर में पहुंच जाती ।  

​​साथी संगीतकारों ने उसका ऐसा रूप पहले कभी नहीं देखा था। बार-बार लय टूट जाने के कारण वे उस चपला का साथ देने में अपने को असमर्थ पा रहे थे । अंततः उन्होंने हार मान ली । एक-एक करके वाद्ययंत्र खामोश होने लगे । सिर्फ तबले पर निपुण कलाकार किसी तरह साथ निभा रहा था किन्तु वह भी नहीं जानता था कि कितने देर तक साथ निभा पायेगा । 

​​कामदेव बनी प्रशस्ति के हृदय में हाहाकार मचा हुआ था । वह समझ गयी थी कि मिलन जो कर रही है वो नृत्य नहीं बल्कि कुछ और है, किन्तु क्या है लाख सोचने पर भी वो तय नहीं कर पायी । किसी अनिष्ट की आशंका से उसका सर्वस्व कांप रहा था । मिलन की सौगन्ध उसे समाधि में बैठे रहने के लिये मजबूर किये हुये थी वरना वह कब की दौड़ कर उसे रोक चुकी होती ।

​​रति का नूत्य पूर्ववत जारी था । अचानक उसके पैर के घुंघरू टूट कर बिखर गये । शायद वे भी उस चपला का साथ देने में असमर्थ हो गये थे । टूटे हुये घुंघरूओं के उपर मिलन नाच रही थी । उसके पैर घायल हो गये । उनसे रक्त प्रवाह होने लगा किन्तु इस सबसे विरक्त उसका नृत्य अनवरत जारी था । 

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​​श्रेष्ठ कलाकार की श्रेष्ठतम प्रस्तुति देख मंत्रमुग्ध दर्शकों की उत्तेजना चरमसीमा को पार करने लगी थी । रति की हालत देख उनके हृदय भी पुकार उठे थे कि अब तो कामदेव को हठ त्याग कर रति के आहवाह्न की मर्यादा रखनी चाहिये ।  

​​मंच पर कामदेव किसी हठ योगी की भांति अभी भी समाधि में लीन थे किन्तु दर्शक दीर्घा में बैठे डा0 हेमन्त सागर के हृदय में हाहाकार मचा हुआ था । ’आज रति कामदेव का आहवाह्न करेगी । यदि उसके नृत्य में शक्ति है तो कामदेव को अवतरित होना होगा ।‘ मिलन के ये शब्द पिघले हुये शीशे की भांति उनके कानों में दहक रहे थे । उसका प्रलयंकारी नृत्य उनकी अंतर्रात्मा को बींधे डाल रहा   था । वह किसका आहवाह्न कर रही है यह रहस्य अब कोई रहस्य नहीं रह गया था । मिलन ने सत्य कहा था आज रति की तपस्या और कामदेव के हठ के बीच परीक्षा थी । 

​​डा0 हेमन्त सागर ने मजबूती के साथ अपनी सीट के हत्थों को थाम रखा था । उनकी बेचैनी हर क्षण बढती ही जा रही थी । हर बीतते पल के साथ वह शक्तिहीन से होते जा रहे थे । वह पराजित नहीं होना चाहते थे किन्तु मिलन का यह रूप भी उनसे देखा नहीं जा रहा था । इसी नृत्य ने उनकी मिलन को उनसे अलग किया है अतः कुछ भी हो जाये वह इस नृत्य से पराजित नहीं होंगे । अपनी समस्त चेतना को जागृत करते हुये उन्होंने निष्चय किया । क्षण भर के लिये कुछ राहत मिली किन्तु मिलन के पैरों से बह रहे रक्त को देख वह पुनः विचलित हो उठे । 

​​नहीं अब वे यहां एक पल भी नहीं ठहरेंगें । दूर चले जायेगें, इतनी दूर कि मिलन की छाया तक वहां नहीं पहुंच सकेगी । उन्होंने उठने का उपक्रम किया ही था कि लहराती हुयी मिलन मंच पर गिर पड़ी । इससे पहले कि अनिर्णय की स्थित में फंसे डा0सागर कोई निर्णय ले पाते वह पुनः उठ कर नृत्य करने लगी। उसके चेहरे पर तूफान के चिन्ह छाये हुये थे । डा0सागर के कानों में मिलन के शब्द एक बार फिर गूंज पड़े ‘हजारों तूफानों के बीच रति के थिरकते हुये कदम तभी थमेंगें जब कामदेव स्वयं आगे बढ उसे थामेंगें ।‘  

​​यदि उन्होने मिलन को नहीं रोका तो क्या होगा ये सोच कर उनका हृदय कांप उठा । एक बार उन्होंने आर-पार का निर्णय करना चाहा था और आज मिलन आर-पार का निर्णय चाहती थी । पहली बार वे दोनों ही पराजित हुये थे किन्तु आज किसी एक को पराजित होना होगा । किन्तु किसे ? उनके हृदय को एक झटका सा  लगा ।  

​​पसीने से लथपथ मिलन का शरीर एक बार फिर लहराने लगा था । ऐसा लग रहा था कि वह अचेत होने वाली है । क्या मिलन की पराजय उनकी जीत हो सकती है ? क्या तपस्या, हठ से पराजित हो सकती है ? क्या मिलन की पराजय उनकी अपनी पराजय नहीं होगी ? डा0सागर का हृदय चीत्कार कर उठा । 

​​मिलन की आंखे मूंदने लगी थीं । उसका पूरा शरीर बुरी तरह लहरा रहा था । डा0 सागर से और बर्दाश्त नहीं हुआ । वह पागलों की तरह चिल्लाते हुये मंच की ओर भागे ,’’मिलन रूक जाओ । तुम्हारी तपस्या के आगे हेमन्त का हठ पराजित हो गया है ।‘‘

​​अचेतावस्था की ओर अग्रसर हो रही मिलन ने अपनी समस्त उर्जा बटोर डा0 सागर की ओर  देखा । उसके चेहरे पर तृप्ति के चिन्ह उभर आये थे। मिलन की आस में उसने अपनी बांहे पसारने की कोशिश 

किन्तु मूर्छावस्था उस पर हावी हो गयी थी। इससे पहले कि वह एक बार फिर मंच पर गिरती डा0 सागर ने उसे अपनी बांहों में संभाल लिया । 

​​उपस्थित जनसमुदाय सम्मोहित सा दो प्रेमियों के मिलन को देख रहा था । आज की अविस्मरणीय रात्रि मिलन के मिलन की साक्षी बन चुकी थी । 

  • लेखक संजीव जायसवाल ‘संजय’

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