आत्मकथा : मेरे घर आना ज़िन्दगी (31)
कुछ देश ऐसे रहे जो मेरी भ्रमण लिस्ट में कहीं फीके फीके से अंकित थे। ऐसा ही था श्रीलंका। पर अब लगता है श्रीलंका नहीं जाती तो एक साथ बहुत सारी चीजों से वंचित रह जाती। जैसे
2014 की फरवरी में श्रीलंका के जयवर्धनपुरे विश्वविद्यालय में आयोजित अंतरराष्ट्रीय शोध कॉन्फ्रेंस में शामिल होना और ऐन कार्यक्रम के दौरान लाइट चली जाने से मोमबत्ती की रोशनी में अपना प्रपत्र पढ़ना। इस कॉन्फ्रेंस में दुनिया के 8 देशों ने शिरकत की थी जिसमें भारत भी एक था।
साथ ही सबसे खूबसूरत ठंडे हिल स्टेशन नुवाराईलिया में एक पूरा दिन और रात बिताना बगैर गर्म कपड़ों के।
ढेरों चाय बागान ,जड़ी-बूटियों और मसालों के उद्यान। नारियल पीले और हरे दोनों तरह के मगर इतने बड़े कि एक नारियल एक आदमी पूरा नहीं पी सकता। रामायण से जुड़े बहुत सारे मंदिर और स्थल। कैंडी में बुद्ध का एक दांत रखा हुआ है और उसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर का दर्जा दिया है।कोलंबो,नोवागोड़ा, सीलोन रेडियो स्टेशन जहां से बिनाका गीतमाला अमीन सयानी की आवाज में सुनते थे। हिंद महासागर के तट पर बसा खूबसूरत समुद्री शहर बेंटोटा। महाबली गंगा की लहरों पर बोट पर सवार होकर मैंग्रोव्स के सघन वन से गुजरना यादों में अंकित है।
एक सप्ताह के बाद जब भारत लौटी तो खुशखबरी इंतजार में थी ।मध्य प्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिति भोपाल का नारी लेखन पुरस्कार का पत्र मेरी बाट जोह रहा था। यह पुरस्कार “नीले पानियों की शायराना हरारत ” को दिया जा रहा था जिसमें मेरे 18 देशों के यात्रा वृत्तांत संकलित हैं। यह पुस्तक नमन प्रकाशन से प्रकाशित हुई थी और लोकार्पण नासिक में साहित्य सरिता मंच ने किया था ।नासिक और पूना के साहित्यकारों को भी आमंत्रित किया गया था। मराठी दैनिक अखबार देशकाल ने इस समाचार को पूरे पेज पर फोटो सहित छापा था। समारोह में मराठी अख़बार सार्वमत के संपादक श्री कृष्ण सार्डा विशिष्ट अतिथि थे। स्टॉल भी लगा था जिसमें पुस्तक की कई प्रतियां हाथों हाथ बिकी थीं।
इस पुस्तक पर पुरस्कार दिए जाने की घोषणा मुंबई के अखबारों ने प्रमुखता से प्रकाशित की।
मुझे 1 अक्टूबर को भोपाल पहुंचना था जहाँ 2 अक्टूबर को हिन्दी भवन में मध्यप्रदेश के राज्यपाल माननीय रामनरेश यादव के कर कमलों से मुझे पुरस्कृत किया जाना था ।आयोजन में कई नए पुराने साहित्यकारों से मुलाकात हुई। अच्छा लगा भोपाल में। अच्छा भी और कई मायनों में फलदायक भी ।पुरस्कार के अतिरिक्त साहित्यकारों से जुड़ाव सहित नई संभावनाओं से ओतप्रोत मैं मुंबई लौटी।
इन सभी यात्राओं से मेरे लेखन को नया विजन मिला। नया विस्तार मिला। यह विजन लेखन के लिए एक प्रकार की गहरी दस्तक ,मेरे भीतर उठे संवेगों, दुरभिसंधियों और प्रतिक्रियाओं का जमघट लेखन की जड़ों को और और गहरे धंसाता जाता है। मैं साफ़ महसूस करती हूँ मेरे भीतर के किवाड़ों के खुलकर चरमराने की आवाज ।जाहिर है मेरे मन में इन सभी बातों का मंथन ,दोहन चलता रहता है। लेखन की एक नई सदा सुनाई देती है। तब वीरानियों में हरियाली का सागर लहराता है।
जनवरी 2015 विश्व पुस्तक मेले दिल्ली में अशोक बाजपेयी के हाथों सामयिक प्रकाशन से प्रकाशित “टेम्स की सरगम “के अंग्रेजी अनुवाद Romancing The Thames का लोकार्पण हुआ और मैं और प्रमिला विकेश निझावन जी के आग्रह पर बस से अंबाला चले गए ।विकेश जी अपने बेटे अरुण के साथ स्टेशन पर लेने आए । हमारी बस शाम को पहुंची ।ठंड अपने चरम पर थी।
विकेश जी के खूबसूरत बंगले में ही हमारे रुकने की व्यवस्था थी। खूब खातिर सत्कार हुआ। सुबह विकेश जी की पत्नी विजया भाभी के बनाए स्वादिष्ट नाश्ते के बाद विकेश जी पुष्पगंधा के ऑफिस ले गए जो उसी बंगले के एक हिस्से में था ।
मेरे सम्मान में शाम 4:00 बजे की गोष्ठी की पूरी तैयारी की गई थी।जगह जगह टेबल पर मेरी किताबें ,मुझ पर केंद्रित विशेषांक की प्रतियां ,दीवारों पर पुष्पगंधा के पुराने अंकों के मुखपृष्ठ लगे थे।
अंबाला के मेरे प्रशंसकों और साहित्यकारों ने वह पूरी शाम मेरे लेखन पर ही चर्चा की। मेरी कविताएं और लघुकथाएं सुनीं और गरमागरम समोसे,पकोड़े , चाय के बीच ढेरों साहित्यिक चर्चाएं हुई। इस सब में डूबी मैं अभी उबर भी नहीं पाई थी कि मेरी रचनाओं के प्रशंसक साहित्य प्रेमी मोहनदास फकीर हमें अंबिका देवी के मंदिर ले गए। वे उस मंदिर के संरक्षक थे। उन्होंने मंदिर के द्वार पर ही गुलाब के फूलों से हमारा भव्य स्वागत किया। दूसरे दिन सुबह हमें विकेश जी अपनी गाड़ी से पिछले 50 वर्षों से निकल रही मासिक पत्रिका शुभ तारिका की संपादक उर्मी कृष्ण के घर ले गए।
शुभ तारिका में मेरी कई रचनाएं छप चुकी थीं। मुझे अचानक सामने देख वे बेहद खुश हो गईं और शुभ तारिका के कुछ पुराने अंक मेरे लिए ले आईं।
उर्मी जी कहानी लेखन महाविद्यालय भी चलाती हैं और अपने पति डॉ महाराज कृष्ण की स्मृति में प्रतिवर्ष शिलांग में आयोजन करती हैं।
डॉ महाराज कृष्ण दिव्यांग थे और उनकी पूरी जिंदगी व्हील चेयर पर ही बीती थी। लेकिन उर्मी कृष्ण ने उनकी इतनी सेवा की। उन्हें व्हीलचेयर पर ही वे पर्यटन के लिए ले जाती थीं और शुभ तारिका में उनका साथ देती थीं। मैं उनकी जिजीविषा को सलाम करती हूं।
वहां से हम कुरुक्षेत्र के लिए रवाना हो गए कितना अद्भुत संयोग है कि भीष्म पितामह ने सूर्य उत्तरायण होने पर कुरुक्षेत्र में प्राण त्यागे और हम भी उत्तरायण पर ही वहां पहुंचे। महाभारत काल मानो जीवंत हुआ और उससे जुड़ी स्मृतियां ,स्थापत्य,मन्दिर, ब्रह्मसरोवर आदि का दर्शन करते हुए हम लोगों ने विजया भाभी के द्वारा बनाए हुए गोभी के पराठे और अमिया के अचार का ब्रह्मसरोवर की सीढ़ियों पर बैठकर स्वाद लिया।
विकेश जी के घर से मुझे इतना अपनत्व मिला कि मेरी विदाई पर विजया भाभी ने मुझे उपहारों से लाद दिया ।कपड़े ,मूंगफली, रेवड़ी। लग ही नहीं रहा था कि अभी दो दिन पहले ही इस घर में पहली बार आई हूं।
क्रमशः