कहानी : मोनालिसा – पूनम अहमद
मोनालिसा
पेरिस का लूव्र म्यूजियम देखने की बड़ी चाह थी मेरे मन में ,अब से पहले कई बार मैं रजत से पूछ चुकी थी ,”रजत,अंदर से क्यों नहीं देखा तुमने म्यूजियम अब तक?पेरिस में दो साल से रहकर भी नहीं गए?
“दीदी, मुझे पेंटिंग्स का इतना शौक नहीं है न.”
मैंने उसे छेड़ा,”बस ,तुम बाहर से ही लूव्र के साथ फोटो खिचवाकर अपनी डीपी रखना .” रजत हस पड़ा था .मम्मी .पापा और मैं यूरोप घूमने आये हुए हैं .रजत पेरिस में एम् ऑय एम् कर रहा है .आज हम लूव्र जा रहे हैं .विश्व के सबसे प्रसिद्ध संघ्रालयों में से एक है लूव्र . लूव्र का पिरामिड पेरिस का सबसे मशहूर दर्शनीय स्थल है जहाँ पैंतीस हजार से ज्यादा पेंटिंग्स और मूर्तियां हैं ,यहाँ विन्ची की मोनालिसा शायद विश्व की सबसे मशहूर पेंटिंग है ,माइकल एंजेलो का बनाया २.१५ मीटर ऊंचा स्टेचू उनकी महान कृतियों में से एक है .लूव्र पेरिस का सेंट्रल लैंडमार्क है .पेरिस आकर लूव्र तो जाना ही था .
पापा को पेंटिंग्स ,मूर्तियां देखने का कभी ज्यादा शौक तो नहीं रहा पर यहाँ की कला देखकर कौन तारीफ किये बिना रह सकता है .पापा भी मुझे मंत्रमुग्ध से दिखे .पेंटिंग्स की खूब फोटो ले रहे थे .उनकी नजरों में प्रशंसा का भाव देख मुझे अच्छा लगा
रजत !आज तो वह भी बोरियत के एक्सप्रेशंस नहीं दे पाया इन पेंटिंग्स को देखकर वह भी हैरान था ,कहने लगा,”मुझे तो लगा मैं आज बोर हो जाऊंगा ,पर ये सब तो एक से एक मास्टरपीस हैं .” और मुझे तो ये सब देखने में जो अतुलनीय आनंद आ रहा था .शब्दों में वर्णन नहीं कर सकती .मैंने एक नजर मम्मी पर डाली ,वे हम तीनो से काफी पीछे थी जैसे किसी जादू के घेरे में हर पेंटिंग के आगे खड़ी होती और अपलक पेंटिंग को निहारती ,मैंने पापा को इशारा करके यह सीन दिखाया ,पापा ने मम्मी को छेड़ा ,”शुभा,हम भी हैं साथ में ,हमें भूल गयी क्या ?’
मम्मी की नजरें मुझसे मिली तो मैंने नोट किया कि उनकी आँखों में नमी सी है जिसे वह बड़ी महारथ से सबसे छुपाने की नाकाम कोशिश कर रही हैं,नाकाम ही कहूँगी क्योकि मैंने तो देख ही लिया था न ,बेटी हूँ उनकी ,जैसे वे मेरी बात मेरे बिना कहे जान जाती हैं तो मैं भी तो उन्ही की बेटी हूँ न ,उनकी आँखों की यह नमी मुझसे भला कैसे छुप पाती ,मैं प्रत्यक्षतः तो चुप रही पर अब मेरा ध्यान मम्मी की भावभंगिमाओं पर ही लगा था .रजत ने इतने में मेरे कान में कहा ,”दीदी ,भूख लगी है ,यह तो बहुत बड़ा म्यूजियम है ,खाना खा लें ?”एक बज रहा था ,मम्मी के खाने का भी टाइम है यह ,उन्हें भी भूख लगी होगी .”
मैंने मम्मी से कहा ,”मम्मी ,लंच कर लें ? फिर यहीं आ जायेंगे .”
कुछ गीले से नरम से शब्द मेरे कानो में पड़े ,”धैर्या,एक बात मानोगी ?”
“बोलो, मम्मी.”
“तुम तीनो जाकर खा लो, मैं बाद में खा लूंगी, यहाँ से हटने का मन ही नहीं है.”
पापा भी कहने लगे ,”नहीं ,शुभा ,लगातार खड़े और चलने से तुम्हारा बैकपेन बढ़ सकता है ,तुम्हारा थोड़ा बैठना होना चाहिए .”
“पर एक बार इस विंग से एग्जिट कर दिया तो शायद आ नहीं पाएंगे, और अभी तो बहुत सारी पेंटिंग्स बची हैं, कहीं देखने से रह न जाएँ.”
रजत ने कहा ,”इतनी पेंटिंग्स हैं ,मम्मी ,थोड़ी बहुत रह भी गयी तो कोई बात नहीं .”
मम्मी परेशान सी दिखी ,”न, न, बेटा ,कुछ रह न जाए, धैर्या,प्लीज तुम तीनो जाओ ,खालो ,मैं बाद में खा लूंगी ,बेटा, “
मैंने कहा ,”ठीक है ,मम्मी ,बाद में चलते हैं ,बस थोड़ा जल्दी कर लो आप ,अभी यह विंग काफी बचा है .”
“ठीक है ,”कहकर मम्मी ने बहुत उत्साह से आगे कदम बढ़ा दिए.बेहद खूबसूरत कलाकृतियों के बीच कुछ ामय और बीत गया .हमेशा समय पर खाने पीने वाली मम्मी को आज भूख प्यास का कुछ भी होश नहीं था .लंच करते हुए भी उनके प्रफ्फुलित चेहरे पर जरा भी थकान नहीं थी .नहीं तो अब तक हम यूरोप में जहाँ जहाँ घूमे थे ,मम्मी कभी थक कर बैठ जाती,कभी जल्दी से देखकर निपटा देती पर लूव्र में तो यह मेरी कोई और ही माँ थी ,उनके चेहरे में कुछ तो ऐसा था जो मैंने लम्बे समय से नहीं देखा था उसके बाद हम उस विंग में गए जहाँ विन्ची की विश्व प्रसिद्द मोनालिसा का चित्र बाहर ही लगा हुआ था ,हम समझ गए अब हम उस हॉल में जा रहे हैं जहाँ मोनालिसा विराजमान हैं ,उस हॉल में भीड़ सबसे ज्यादा थी एक दीवार पर मोनालिसा थीऔर उसके सामने की दीवार पर “दी लास्ट सपर”.पेंटिंग्स पर नजर डालकर मैंने मम्मी को देखा.भीड़ में पेंटिंग के आगे जाकर खड़ी मम्मी ,पेंटिंग को एकटक देखती हुई ,उनकी आँखों से आंसुओं की अविरल धारा बहे चली जा रही थी ,मेरे कदम वहीं जड़ हो गए ,मम्मी कभी मोनालिसा को देखती ,कभी मुड़कर दी लास्ट सपर को ,जैसे उन्हें समझ ही न आ रहा हो कि पहले और ज्यादा किसे देखें . रजत और पापा अपने अपने फ़ोन से तस्वीरें लेने में व्यस्त हो गए थे,मम्मी मोनालिसा को कई कोणों से देख रही थी ,और मैं अपनी माँ को ,कभी इधर से ,कभी उधर से चेहरे पर बच्चों जैसा भोलापन लिए जैसे किसी बच्चे को अचानक कई चीजें देखकर समझ नहीं आता न कि पहले कौनसी चीज हाथ में ले ,बच्चा कभी कुछ उठाता है ,कभी कुछ, ऐसी ही स्थिति मम्मी की थी,इतनी भीड़ में कभी किसी पेंटिंग के सामने खड़ी होती ,कभी किसी के,आंसू उनके गाल पर बहे चले जा रहे थे ,अब मुझसे रुका नहीं गया ,मम्मी के कंधे पर हाथ रखकर पूछा,”यह क्या मम्मी?रो क्यों रही हो ?देखो ,कोई और रो रहा है यहाँ ?तबियत तो ठीक है न ?”मम्मी के आंसू और वेग से बहने लगे ,उत्साह के आवेग से रुंधे कंठ से निकला ,”धैर्या ,ये मोनालिसा ,मैंने इसकी पढाई की है ,और ये लास्ट सपर ,मुझे आज तक याद था कि इसमें ऊपर तीन चिड़ियाँ हैं और यह कुत्ता ,देखो इसके कलर्स देखो ,मैंने सब पढ़ा है ये ,कभी सोचा ही नहीं था कि इन पेंटिंग्स को जीवन में अपनी आँखों से देखूंगी ,देखो ,धैर्या,कितनी सुन्दर कलर स्कीम . तुम्हे पता है ,हमने पढ़ा है यह सब ,ये बेहतरीन कलाकार !और मोनालिसा को देखो जैसे अभी कुछ कहेगी ,इसे बनाने की हम बहुत कोशिश करते थेऔर फिर कितना हसते थे ,इसके तो आसपास भी नहीं फटक सके हम ,दिन भर इसके स्केच बनाने की कोशिश करते थे हम ,मेरी एक स्केच बुक तो इसी की प्रैक्टिस से भरी थी पर ऐसी कहाँ बनती .”अचानक भीड़ से मम्मी संभली,माहौल का आभास हुआ तो चुप हो गयीं .”थोड़ा और देख लूँ “,कहकर भीड़ में और आगे जाकर देखने की कोशिश करने लगी .
मैं ?मैं तो पाषाणवत खड़ी की खड़ी रह गयी .रजत और पापा इधर उधर हो गए थे .मैं एक कोने में जाकर मम्मी को ही देखते खड़ी हो गयी .मेरी आँखें भी भर आयीं थीं यह मुझे अभी आभास हुआ था .यह क्या हो गया हमसे ,ड्राइंग एंड पेंटिंग में एम् .ए.किया था मम्मी ने .मम्मी कितनी पेंटिंग्स बनातीं थीं ,हमें पढ़ाते हुए बैठे बैठे हमारी किसी भी नोटबुक के आखिरी पेज पर स्केच बनातीं रहतीं थीं ,स्कूल में बच्चे भी पूछते थे ,किसने बनाया ,हम गर्व से बताते थे मम्मी ने .मम्मी ने ही तो हमेशा हमारी ड्राइंग के होमवर्क किये थे और हमने क्या किया !उनसे उनका यह शौक घर और हमारी जिम्मेदारियों के बीच कब पीछे छूटता चला गया ,हममें से किसी ने परवाह भी नहीं की ,पूछा भी नहीं किसी ने कि मम्मी अब क्यों नहीं कुछ बनातीं ,क्या अब उनका मन नहीं होता ? वे घर के ही काम निपटाती रहीं ,उनका एक ही तो शौक था ,वह भी खो गया ,हम सब कैसे भूल गए कि वे भी एक कलाकार हैं ,अपनी कला को गुम होते देख कैसे उनका मन चैन पाता रहा होगा ,आज मुझे याद आ रहा है कि कैसे तबीयत खराब होने पर भी वे मेरा ड्राइंग का होमवर्क करने बैठ गयीं थीं ,कहा था ,”अरे ,मैं कभी कुछ ड्रा करने से थक सकती हूँ क्या ?”जल्दी बताओ क्या बनाना है ,बहुत दिन से कुछ नहीं बनाया ,जो हमारा ड्राइंग का काम करने के लिए बीमारी में भी आतुर हो उठतीं थीं ,उन्हें और कुछ बनाने के लिए मौका क्यों नहीं मिला . उनके अंदर का कलाकार बस हमारा होमवर्क करने में ही संतोष पाता रह गया ,बड़ी भूल हुई हमसे ! अचानक मुझे मां के चेहरे में मोना लिसा के चेहरे का प्रतिबिम्ब दिखाई दिया जैसे उनके चेहरे पर भी एक उदास सी मुस्कराहट थी और मन में जाने कितने दुःख भरे राज .यह क्या !मैंने मोनालिसा को देखा तो उसमे मुझे अपनी माँ का चेहरा नजर आया .मुझे मोनालिसा की उदास ,रहस्यमयी मुस्कराहट में अपनी माँ की मुस्कराहट दिखाई दी ,मेरी हथेलियां पसीने से भीग उठी थीं .यह आज माँ के चेहरे पर कौनसे भाव हैं जो मेरे दिल तक सीधे पहुँच रहे हैं .अचानक एक धुंधली सी याद आयी जब मैं एक दिन स्कूल से लौटी थी तो माँ अपना पेंटिंग का सामान रोते हुए स्टोर रूम में रख रही थी .नहीं ,बात कुछ और थी ,यह घर की व्यस्तता नहीं थी जिसने माँ को उनकी कला से दूर किया था ,यह कुछ और था ,हाँ ,याद आ रहा है .मैंने माँ से पूछा था ,यह सामान यहाँ क्यों रख रही हो .” माँ ऐसे ही मुस्कुरायी थी ,हाँ ,ऐसी ही हसी थी ,मोनालिसा जैसी .कहा था ,अब कहाँ टाइम मिलता है .उस दिन मुझे खाना खिलाते हुए भी माँ अपने आंसू पोंछ रही थी .क्यों रोई थी माँ उस दिन ,क्यों नहीं उसके बाद कभी कुछ बनाया उन्होंने .मैं जानकर रहूंगी कि उस दिन हमारेस्कूल जाने के बाद क्या हुआ tha . हमें यह गलती सुधारनी होगी .मैं मन ही मन बहुत कुछ सोच चुकी थी .हम चारों इकठ्ठा हुए ,दूसरे हॉल में जाना था जहाँ एक से एक लैंडस्केप्स थे,मम्मी फिर ख़ुशी से झूम उठीं ,यहाँ इस समय ज्यादा भीड़ नहीं थी ,मैंने बात छेड़ी ,”मम्मी ,इन सबमें कौनसी बेस्ट है ?”मम्मी ने हर तरफ देखकर बताया ,”यह वाली .”
“मम्मी ,ड्राइंग रूम के लिए ऐसी बनाओगी ?मम्मी ने एक ठंडी सांस ली ,”पता नहीं .क्या कहूं ?”
“कहना क्या है. जाते ही ऐसी बनाना ,घर के हर रूम में आपकी पेंटिंग होनी चाहिए ,हमारे ही घर में एक कलाकार है और हम यहाँ दूसरे की वाहवाही कर रहे हैं.”मेरे कहने के ढंग पर मम्मी हस पड़ी ,बोली ,”देखेंगे .”मैंने पापा और रजत को जल्दी से इशारा कर दिया था ,पहले दोनों कुछ समझे नहीं ,फिर मैंने उन्हें आँखों ही आँखों में बहुत कुछ कहा जिसे दोनों ने सुन लिया .दोनों ने कहा ,”हाँ .जरूर बनाना .”
रजत ने कहा ,”हमें आपके जितना इंटरेस्ट नहीं है तो क्या हुआ ,मैं जब अगली बार इंडिया आऊं तो आपकी पेंटिंग ड्राइंग रूम में होनी चाहिए .”मम्मी ने पपा को देखा ,वे भी फौरन बोले ,”हाँ ,शुभा,बहुत सालों से तुमने कुछ नहीं बनाया ,अब एक मास्टरपीस हो ही जाए . मम्मी ने इस बात पर जैसे पापा को देखा ,मुझे फिर मोनालिसा की मुस्कराहट याद आयी ,कुछ था मम्मी की मुस्कराहट में ,क्या था ,मुझे जानना था .
मैंने उन्हें कब ऐसा देखा था ,याद नहीं ,मेरे दिल में जैसे कुछ उमड़ा जा रहा था ,कैसी होती हैं माएं,घर बच्चों में अपने ही दिल को क्या अच्छा लगता है ,भूल जाती हैं ,कभी जिक्र भी नहीं करतीं ,कभी जतलाती भी नहीं कि उनका क्या कब छूटता चला गया ,पर हमें उन्हें अब याद दिलाना था ,मैंने बहुत कुछ सोच लिया था ,जाते ही उनके लिए कलर्स ,कैनवास ,सब सामान आना था ,यह तय था . पर मुझे उससे पहले बहुत कुछ जानना था .डिनर करते हुए जब हम चारों साथ बैठे तो टॉपिक लूव्र ही था .हम चारों को ही लूव्र बहुत अच्छा लगा था .मैंने बात छेड़ ही दी,”माँ ,आपने पेंटिंग बनाना क्यों छोड़ा था ?” माँ के हाथ का निवाला हाथ में ही रह गया ,उन्होंने पापा को देखा ,मुझे पल भर में ही माँ की आँखों में बहुत कुछ दिखा ,दुःख ,निराशा ,नमी .मेरी और रजत की आँखें भी पापा पर टिक गयीं .रजत ने कहा ,हाँ ,मम्मी ,बताओ न .”माँ की आँखों में पापा को जो भी कुछ नजर आया होगा ,पापा ने गंभीर स्वर में शर्मिंदगी के साथ कहा ,”मैं बताता हूँ ,यह सब मेरी गलती है ,तुम्हारे दादा दादी शुभा के पेंटिंग के इस शौक से नफरत करते थे,अम्मा को लगता था यह बेकार में पैसे उड़ाने वाला शौक है ,उन्हें पता नहीं क्यों शुभा पर गुस्सा आता रहता था ,बहुत बाद में मैंने महसूस किया अम्मा शुभा के गुणों से जलती थी .शुभा में जो गुण हैं ,वे अम्मा में नहीं थे .इतना धैर्य ,त्याग उनमे कहाँ था .मैं उनकी इकलौती संतान था .वे शुभा की पेंटिंग ,उसके हुनर को मेरे सामने इतने बुरे रूप में रखतीं कि एक दिन मैं उनपर अंधविश्वास कर शुभा की इस कला का अपमान कर बैठा ,अम्मा ने मेरे सामने इसकी अधूरी पेंटिंग फाड़कर फेंक दी ,मैं चुपचाप देखता रहा ,अम्मा को कुछ नहीं कहा .उस दिन शुभा ने जिन नजरों से मुझे देखा था ,मैं अंदर तक शर्मिंदा हो गया था पर अपने माता पिता की गलत बातों के खिलाफ बोलने की हिम्मत कभी नहीं कर पाया .शुभा ने उसी दिन अपना सामान उठाकर स्टोर रूम में रख दिया ,फिर कभी कुछ नहीं बनाया .जो बच्चे शुभा से पेंटिंग्स सीखने आते थे ,उन सबको शुभा ने अगले दिन ही सिखाने से भी मना कर दिया . मैं शुभा का जीवन साथी था ,उसका पति हूँ ,मैं अपने पति होने का फर्ज ठीक से नहीं निभा पाया ,मैंने अपनी पत्नी के गुणों की कदर नहीं की ,
उसका दिल दुखाया है ,सालों यह मन ही मन कितना जली होगी ,एक कलाकार को अपनी भावनाएं व्यक्त करने से रोका मैंने,कैसी जी होगी यह,फिर भी कभी कोई शिकायत नहीं की .अम्मा, बाबूजी नहीं रहे ,पर शुभा ने फिर कभी ब्रश नहीं उठाया ,मैंने भी नहीं कहा .पर आज बच्चों के सामने तुमसे माफ़ी मांगता हूँ,शुभा ,”पापा ने कहते कहते मम्मी का हाथ पकड़ लिया ,”शुभा ,जितना समय निकल गया ,उसके लिए मुझे माफ़ करदो ,शुभा ,अब घर जाकर अपनी इस कला को नयी ऊंचाइयों पर ले जाओ ,क्लासेस लो ,पेंटिंग्स बनाओ ,सब कुछ करो जो तुम्हे करना था ,हम सब तुम्हारे साथ हैं ,आज इतना अच्छा दिन था ,लूव्र का दिन ! आज के दिन मुझे माफ़ करदो ,शुभा .”मम्मी इस आखिरी बात पर मुस्कुराई तो मुझे लगा ,मेरी मां ,मेरी मोनालिसा की इस मुस्कराहट के आगे सारी दुनिया की मुस्कुराहट फीकी है ,इस मुस्कुराहट में बहुत कुछ था जो मेरे मन को पुलकित कर गया था .