Month: May 2021

नमस्कार से संस्कार की होती है पहचान – अशोक हमराही

  नमस्कार से संस्कार की होती है पहचान   नमस्कार से संस्कार की होती है पहचान नमस्कार जब ह्रदय से...

कहानी : दूरबीन – पूनम अहमद

दूरबीन सुबह 9 बजे नंदिनी ने खाने की मेज पर अपने पति विपिन और युवाबच्चों सोनी और राहुल को आवाज दी, ‘‘जल्दी आ जाओ सब, नाश्ता लग गया है.’’ नंदिनी तीनों के टिफिन भी पैक करती जा रही थी. तीनों लंच ले जातेथे. सुबह निकल कर शाम को ही लौटते थे. विपिन ने नाश्ता शुरूकिया. साथ ही न्यूजपेपर पर भी नजर डालते जा रहे थे. सोनी औरराहुल अपनेअपने मोबाइल पर नजरें गड़ाए नाश्ता करने लगे. नंदिनीतीनों के जाने के बाद ही आराम से बैठ कर नाश्ता करना पसंद करतीथी. सोनी और राहुल को फोन में व्यस्त देख कर नंदिनी झुंझला गई, ‘‘क्या आराम से नाश्ता नहीं कर सकते? पूरा दिन बाहर ही रहना है न, आराम से फोन का शौक पूरा करते रहना.’’ विपिन शायद डिस्टर्ब हुए. माथे पर त्योरियां डाल कर बोले, ‘‘क्योंसुबहसुबह गुस्सा करने लगती हो? कर रहे होंगे फोन पर कुछ.’’ नंदिनी चिढ़ गई, ‘‘तीनों अब शाम को ही आएंगे… क्या शांति सेनाश्ता नहीं कर सकते?’’ विपिन ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘हम तो शांति से ही नाश्ता कर रहे हें. शोर तो तुम मचा रही हो.’’ बच्चों को पिता की यह बात बहुत पसंद आई. दोनों एकसाथ बोले, ‘‘वाह पापा, क्या बात कही है.’’ नंदिनी ने तीनों के टिफिन टेबल पर रखे और चुपचाप उदास मन सेवहां से हट गई. सोचने लगी कि पूरा दिन अब अकेले ही रहना है…इन तीनों को इस बात से कोई मतलब नहीं है कि कुछ देर हंसबोल लें. शाम को सब थके आएंगे और फिर बस टीवी और फोन. किसी केपास क्यों आजकल कोई बात नहीं रहती करने के लिए? बच्चों के हर समय फोन पर रहने ने तो घर में ऐसी नीरसता भर दी हैकि खत्म होने को नाम ही नहीं लेती है. अगर मैं तीनों से अपनामोबाइल, टीवी, लैपटौप बंद कर के थोड़ा सा समय अपने लिएचाहती हूं, तो तीनों को लगता है पता नहीं मुझे क्या हो गया है. जबरदस्ती दोस्त बनाने में, सोशल नैटवर्किंग के पागलपन में समयबिताने में, पड़ोसिनों से निरर्थक गप्पें मारने में अगर मेरा मन नहींलगता तो क्या यह मेरी गलती है? ये तीनों अपने फेसबुक मित्रों कीतो छोटी से छोटी जानकारी भी रखते हैं पर इन के पास मेरे लिए कोईसमय नहीं. तीनों चले गए. घर में फिर अजीब सी खामोशी फैल गई, मन फिरउदास सा था. नाश्ता करते हुए नंदिनी को जीवन बहुत नीरस औरबोझिल सा लगा. थोड़ी देर में काम करने वाली मेड श्यामा आ गई. नंदिनी फिर रूटीन में व्यस्त हो गई. उस के जाने के बाद नंदिनी इधरउधर घूमती हुई घर ठीक करती रही. सोचती रही कि वह कितनी खुशमिजाज हुआ करती थी, कहेकहेलगाती रोमानी सपनों में रहती थी और अब रोज शाम को टीवी, फोनऔर लैपटौप के बीच घुटघुट कर जीने की कोशिश करती रह जातीहै. पता नहीं क्याक्या सोचती वह अपने फ्लैट की अपनी प्रिय जगहबालकनी में आ खड़ी हुई. उसे लखनऊ से यहां मुंबई आए 1 ही सालहुआ था. यहां दादर में ही विपिन का औफिस और बच्चों का कालेजहै, इसलिए यह फ्लैट उन्होंने दादर में ही लिया था. रजनीगंधा की बेलों से ढकी हुई बालकनी में वह कल्पनाओं मेंविचरती रहती. यहां इन तीनों में से कोई नहीं आता. यह उस काअपना कोना था. फिर वह यों ही अपने छोटे से स्टोररूम में जा करसामान ठीक करने लगी. काफी दिन हो गए थे यहां का सामानसंभाले. वह सब कुछ ठीक से रखने लगी. अचानक उस ने बच्चों केखिलौनों का एक बड़ा डब्बा यों ही खोल लिया. ऐसे ही हाथ डाल करखिलौने इधरउधर कर देखने लगी. 3 साल पहले चारों नैनीताल घूमनेगए थे, वहीं बच्चों ने यह दूरबीन खरीदी थी. वह दूरबीन ले कर डब्बा वापस रख कर अपनी बालकनी में आ करखड़ी हो गई. सोचा ऐसे खड़े हो कर देखना अच्छा नहीं लगेगा. कोईदेखेगा तो गड़बड़ हो जाएगी. अत: फूलों की बेलों के पीछे स्टूल रखकर अपनी दूरबीन संभाले आराम से बैठ गई. आंखों पर दूरबीन रख कर देखा. थोड़ी दूर स्थित बिल्डिंग बने ज्यादासमय नहीं हुआ था, यह वह जानती ही थी. अभी काफी फ्लैट्स मेंकाम हो रहा था. एक फ्लैट की बालकनी और ड्राइंगरूम उसे साफदिखाई दे रहा था. उस की उम्र की एक महिला ड्राइंगरूम में दिखाईदी. उस घर में शायद म्यूजिक चल रहा था. वह महिला काम करतेकरतेसिर को जोरजोर से हिला रही थी. अचानक उस की बेटी भी आ गई. दोनों मिल कर किसी गाने परथिरकीं और फिर खिलखिलाईं. नंदिनी भी मुसकरा उठी. मांबेटी केस्टैप से नंदिनी को लगा शायद ‘बेबी डौल’ गाना चल रहा है. नंदिनीअकेली ही खिलखिला दी. अचानक उस ने मन में ताजगी सी महसूसहुई. आसपास फूलों की खुशबू और सामने मांबेटी के क्रियाकलापदेख कर नंदिनी बिलकुल मस्ती के मूड में आ गई और गुनगुनाने लगी. फिर मांबेटी शायद घर के दूसरे हिस्से में चली गईं....