Kavi Aur Kavita कवि और कविता : राजकुमार सिंह
मौन
ज़िंदगी के बीतते पल
बचपन से बुढ़ापे तक का सफ़र
देखा है पल पल का दृश्य,
समाज और घटती घटनाओं को
मनुष्य मन की खिड़कियों से
झांकते चेहरों को आंकने की
सफ़ल – असफ़ल कोशिश
खट्टी -मीठी यादों का बिम्ब,
बीतता हुआ
हर पल, हर क्षण ।
एक एक दिन, एक एक माह
एक एक वर्ष बदलते मौसमों के साथ
और मढ़ता रहा चेहरे पर झुर्रियां,
बालों में सफ़ेदी, आंखों में ऐनक,
हाथ में लाठी, आवाज़ में कंम्पन
और पैरों की शिथिलता
घड़ी की टिक टिक में
धड़कनों का गुम हो जाना
और…..
ठहर जाना
सन्नाटे के साथ
छोड़ जाना
न टूटने वाला एक ‘ मौन’
चलो ढूंढें
ये भी किया, वो भी किया
क्या नहीं किया वो ढूंढें
कंकरीट के इस शहर में
कोई पत्ता हरा ढूंढें
हैवानियत के अंधेरे में
कोई नेकदिल इंसान ढूंढें
जुगनुओं की शक्ल में
उजाले का आसार ढूंढें
चहुँ ओर पसरी नफ़रतों में
प्यार की एक आस ढूंढें
बोलते तो हैं पर झूठ सभी
सच्चाई की इक आवाज़ ढूंढें
ज़िन्दा लाशों के बीच इक
ज़िंदादिल इंसान ढूंढें
ठहरे पानी में पत्थर फेकें
संभावनाओं के भंडार ढूंढें
एक मुसाफ़िर की तरह नहीं
मैनें एक मुसाफ़िर की तरह
नहीं देखा है
दृश्य ,गांव ,समाज में घटित
घटनाओं को
उसमें धंसकर,
चहलकदमीं कर,
एक एक पल को महसूस किया है
एक पुख़्ता अहसास किया है
अंदरूनी तनाव, छिछले उथले
गहरे संबंधों को जिया है
इस समाज के
स्वार्थी ,हिंसक,बिचौलियों
से छले जाने का
असह्य दर्द महसूस किया है
उसपर ये धर्म-आस्था के ढकोसले
मनुष्यता को न ढूंढ पाने की पीड़ा झेली है
चेहरों के पीछे छिपे चेहरों को
बेनकाब न कर पाने की कसक समझी है
वक़्त की रफ़्तार से पीछे छूटने का
क्रंदन महसूस किया है
एक मुकम्मल आदमी
न बन पाने का दंश झेला है
मनुष्य मन की अनगिन खिड़कियों से झांकते चेहरों को आंका है
मनुष्य मन की अशाक्तताओं को
जानने की पूरी कोशिश की है
एक एक पल को जिया है
राजकुमार सिंह प्रतिष्ठित कवि एवं लेखक होने के साथ-साथ
जाने-माने पत्रकार और अभिनेता भी हैं .