Kavi Aur Kavita कवि और कविता – Ratibhan Tripathi रतिभान त्रिपाठी

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सन्मार्ग पर है वह

वह भटकेगा नहीं, थकेगा नहीं
डिगेगा नहीं, डरेगा भी नहीं
आतताइयों को जीतकर निकला है
चिंतित न हो, सन्मार्ग पर है वह

भटका तो पहले था
कितने जंगल बियाबान
डरावने खूंखार हिंसक पशु
देखे हैं उसने

पल – पल, तिल – तिल मरता रहा है
कभी इस विचार तो कभी उस विचार से
कभी जंगली पाखंड से
कभी आसुरी अत्याचार से

सुकून के पल तो अब दिखे हैं
हर पल मौत का भयावह मंज़र
और सियारों गीदड़ों से
अभी अभी छूटा है पीछा उसका।

सुस्ता लेने दो ज़रा
शीतल हवा के झोंके महसूस होने दो
सद्विचारों के बीच आनंदित होने दो
झरनों का कल – कल निनाद सुनने दो उसे

फिर बढ़ेगा उस मुकाम की ओर
जहां उसे रहना है
जो अपरिमित है, अतुल्य है
जहां शिवत्व है, सत्य का प्रकाश है

 

ज़िंदगी दर्द दिए जाती है

 

ज़िन्दगी दर्द दिए जाती है

ख़्वाब सब ख़ाक किए जाती है

 

बात कुछ भी नहीं बहुत कुछ है

आग पानी में ये लगाती है

 

हमने जीवन में बहुत कुछ खोया

पाने का अहसास तो जज़्बाती है

 

कहां निकले थे हम हवन करने

जो हथेली ये जली जाती है

 

कैसे टूटेगा ये दम पल भर में

रिश्तों का जाल करामाती है

 

ज़िन्दगी साज़ नहीं सोज़ हुई

उसकी फ़ितरत ही खुराफ़ाती है

 

अब तो सब वक़्त के हवाले है

ज़िन्दगी है कि दिया बाती है

 

ज़िन्दगी खोलूं तेरी पोल

 

ज़िन्दगी खोलूं तेरी पोल

कहां है रिश्तों का कोई मोल

तेरे दावों वादों में है झोल

फिर क्यों कहलाती है तू अनमोल

कहां संजीदा है तेरी बात

कहां हर पल का है ये साथ

बड़े चंचल तेरे जज़्बात

मैं अगर ग़लत कहूं तो कुछ बोल

तेरा कोई धरम न है ईमान

भरम छल झूठ है तेरी शान

दिखते सब के सब बेईमान

बात ये दिल के तराजू में तोल

तेरे मुंह में गुड़ मन में ख़ार

करती है सबका बंटाढार

कभी तो ख़ुश है कभी बेज़ार

बड़ा बेरहम तेरा मेल-जोल

निकली तू आस्तीन की सांप

बदन सुंदर है दिल में पाप

बात तू सोच ये अपने आप

अरे हरजाई राज़ ये खोल

रतिभान त्रिपाठी प्रतिष्ठित कवि-लेखक और पत्रकार हैं.

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