चलें फिर आज उजालों की तरफ़ – अशोक हमराही
चलें फिर आज उजालों की तरफ़ फ़िज़ा में रंग नज़ारों में जान आई है सहर ये आज फिर नए...
चलें फिर आज उजालों की तरफ़ फ़िज़ा में रंग नज़ारों में जान आई है सहर ये आज फिर नए...
और एक साल दिए जाता हूँ अपनी यादों के दरीचे से फिर और एक साल दिए जाता हूँ...
આપની દોસ્ત દીપા દેસાઈનો સમય સાથે સંવાદ કેમ છે સમય,"? આમતો તું અમારો અંગત. સદાય અમારી સાથેજ છતાં જરા...
हाँ मैं हूँ करो प्रताड़ित सहूं अगर तो कहना नारी महान हो तुम तोड़ दूँ चुप्पी तो कहना हाय...
मैं स्वयं परिभाषित नहीं करना अब तुम मुझे क्षण शब्दों में मैं स्वयं परिभाषा बनूंगी वर्ण-वर्ण कर नहीं अब...
असीर-ए-ज़िंदगी ज़िन्दगी, ज़िन्दगी में ही क़ैद होकर रह गई ख़्वाहिशें समझौतों के कंधे पर बोझ हो गईं लड़कपन जवानी...
वो पेड़ आरे में मेट्रो कार शेड नहीं बनेगा , ये ख़बर मिलते ही जश्न सा माहौल हो गया...
तुमने मुझे दिल से उतारा नहीं है जानता है दिल, तुमने मुझे दिल से अभी तक उतारा नहीं...
दिल के रिश्तों को अजनबी होते देखा है सब बदलते देखा है, छलते देखा है, दिल के...
रात को आफ़ताब देखा है रात को आफ़ताब देखा है, ...