और एक साल दिए जाता हूँ – अशोक हमराही

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और एक साल दिए जाता हूँ 

 

अपनी यादों के दरीचे से फिर

और एक साल दिए जाता हूँ

तेरी तन्हाइयों का हर लम्हा

मैं अपने साथ लिए जाता हूँ

 

 

तेरे गीतों के सुलगते आंसू

कभी कांधे से लग के रोये हैं

कभी बच्चों की तरह आँचल में

तेरे नग़में दुबक के सोये हैं

जो सुकूं दे उन्हीं ख़यालों को

तेरे दिल में बसाये जाता हूँ

 

 

फिर नई प्यास नई आस लिए

साथ मौसम के लौट आऊँगा

और नए रूप नए रंगों से

तुझको एक बार फिर सजाऊँगा

वक़्त से ख़ूबसूरत कुछ भी नहीं

यही एहसास दिए जाता हूँ

 

जिन पलों ने ख़ुशी के गीत बुने

उनकी आहट पे अब नज़र रखना

वक़्त के साथ वो लौटेंगे कभी

उनके आने की तुम ख़बर रखना

मैं तेरे साथ नहीं हूँ  न सही

ख़ुद को तेरे पास छोड़ जाता हूँ

 

अपनी यादों के दरीचे से फिर

और एक साल दिए जाता हूँ

तेरी तन्हाइयों का हर लम्हा

मैं अपने साथ लिए जाता हूँ

 

अशोक हमराही 


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