कवयित्री: सविता चड्ढा
मन
इस कदर बढ़ गई है उदासियां,
इधर उधर ,
बड़ी से बड़ी खुशी अब,
छोटी नजर आने लगी है ,
मन को समझा लिया है,
कुछ इस तरह अब तो,
अब अंधेरों में भी,
रोशनी नजर आने लगी है।
एक सोच
प्रतिदिन चाहती हूं
सुखों के फूल अपने गमलों में,
उन्हें ही देख मैं सांस ले सकती हूं,
मुझे सुखों के फूल बहुत पसंद है,
इसके लिए मैं हर दिन बोती रही हूं
अच्छाइयों के बीज,
सुनहले सपनों के बीज,
अपने आसपास के गमलों में।
मैं जानती हूं ये बीज,
एक ना एक दिन सुख के फूल बनकर ,
गमलों में आएंगे,
जिस दिन मेरे गमले में ,
सुख का गुलाब नहीं आता ,
उस दिन मैं खुद को बहुत कोसती हूं
और तलाश करती हूं ,
वह कौन सा दिन था जिस दिन,
मैंने अच्छाई का कोई बीज नहीं रोपा था
किसी खाली गमले में।
सवाल – जवाब
सवाल तो बहुत हैं जीवन से,
जवाब भी उतने ही है,
काई बार तो
प्रश्नों के जवाब,
प्रश्नों से कहीं अधिक,
ऐसे में सवाल निरुत्तर,
क्या चुप रहना बेहतर?
जीवन भी शांत सुखमय, सुंदर।
धर्म- विज्ञान एक हो जाएं
आओ हम-तुम, हवा हो जाएं,
किसी और को नज़र ना आएं ,
लेकिन कुछ ऐसा कर पाएं,
साथ रहें सदा गुनगुनाएं ,
खुश रहकर सबको चौंकांए ,
धरती अंबर को महकांए,
असंभव को संभव कर पाएं,
मिलकर कुछ ऐसा कर जांए,
धर्म- विज्ञान यदि एक हो जाएं ,
हर असंभव संभव हो जाए,
आओ हम तुम हवा हो जाएं,
आओ हम तुम एक हो जाएं।