सरोज स्मृति – सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”
सरोज स्मृति ऊनविंश पर जो प्रथम चरण तेरा वह जीवन-सिन्धु-तरण; तनये, ली कर दृक्पात तरुण जनक से जन्म की विदा अरुण! गीते मेरी, तज रूप-नाम वर लिया अमर शाश्वत विराम पूरे कर शुचितर सपर्याय जीवन के अष्टादशाध्याय, चढ़ मृत्यु-तरणि पर तूर्ण-चरण कह - "पित:, पूर्ण आलोक-वरण करती हूँ मैं, यह नहीं मरण, 'सरोज' का ज्योति:शरण - तरण!" अशब्द अधरों का सुना भाष, मैं कवि हूँ, पाया है प्रकाश मैंने कुछ, अहरह रह निर्भर ज्योतिस्तरणा के चरणों पर। जीवित-कविते, शत-शर-जर्जर...