कवि और कविता

सरोज स्मृति – सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”

सरोज स्मृति ऊनविंश पर जो प्रथम चरण तेरा वह जीवन-सिन्धु-तरण; तनये, ली कर दृक्पात तरुण जनक से जन्म की विदा अरुण! गीते मेरी, तज रूप-नाम वर लिया अमर शाश्वत विराम पूरे कर शुचितर सपर्याय जीवन के अष्टादशाध्याय, चढ़ मृत्यु-तरणि पर तूर्ण-चरण कह - "पित:, पूर्ण आलोक-वरण करती हूँ मैं, यह नहीं मरण, 'सरोज' का ज्योति:शरण - तरण!"  अशब्द अधरों का सुना भाष, मैं कवि हूँ, पाया है प्रकाश मैंने कुछ, अहरह रह निर्भर ज्योतिस्तरणा के चरणों पर। जीवित-कविते, शत-शर-जर्जर...

राम की शक्तिपूजा – सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”

राम की शक्तिपूजा रवि हुआ अस्त; ज्योति के पत्र पर लिखा अमर  रह गया राम-रावण का अपराजेय समर  आज का तीक्ष्ण-शर-विधृत-क्षिप्र-कर वेग-प्रखर  शतशेलसंवरणशील नील नभ गर्ज्जित स्वर , प्रतिपल- परिवर्तित-व्यूह-भेद-कौशल-समूह  राक्षस- विरुद्ध प्रत्यूह- क्रुद्ध-कपि-विषम-हुह, विच्छुरितवह्रि- राजीवनयन-हत लक्ष्य- बाण लोहितलोचन- रावण-मदमोचन-महीयान  राघव-लाघव-रावण-वारण-गत-युग्म-प्रहर  उद्धत- लंकापति मर्द्दित-कपि-दल-बल-विस्तर अनिमेष-राम-विश्वजिद्दिव्य-शर-भंग-भाव, विद्वांग-बद्ध-कोदंड-मुष्टि-खर-रुधिर-स्राव, रावण-प्रहार-दुर्वार-विकल वानर-दल-बल मूर्च्छित-सुग्रीवांगद- भीषण-गवाक्ष-गय-नल, वारित-सौमित्र-भल्लपति-अगणित-मल्ल-रोध, गर्ज्जित-प्रलयालब्धि-क्षुब्ध-हनुमत-केवल-प्रबोध , उदगीरित्त-वह्रि-भीम-पर्वत-कपि-चतुःप्रहर,...

जय मां शारदे – कवयित्री सुधा त्रिपाठी शुक्ला

जय मां शारदे  जय मां शारदे  विद्या दायिनी कल्मष हारिणी वीणा वादिनि वर दायिनी  माता । वर दो ऐसा काव्य पथिक कहाऊं। नित नवीन  भावों को गूंथूं शब्दों की माला पहनाऊं । शब्दों से अपने  सबको सुख पहुचाऊं ऐसी कर दो कृपा  मां तुम विश्व रचयिता त्रय ताप नाशिनी जगत तारिणी मातु  कालिका जगत पालिका क्लेश हारिणी ...