कवयित्री सुमीता प्रवीण केशवा

0

1.तुम
तुम छू लेते हो
धड़कनें बढ़ जाती हैं मेरी
कितना जरूरी है
दिल की सलामती के लिये
तुम्हारा छू लेना मुझे……

2. मोहब्बत
कितने खूबसूरत लोग
होते हैं इस दुनिया में
और हम हैं कि
बगैर मोहब्बत किये
चल देते हैं इस दुनिया से

3.इश्क में
इश्क में दुनिया की
हर शै खूबसूरत हो जाती है
झूठ बोलता है वह….
जो कहता है कि इश्क में इंसान
अंधा हो जाता है।

4.हर साल….
हर साल
तुम कहते हो
कि तुम मुझसे
दस साल छोटी हो
और हर साल मैं
तुम्हें छूने के लिये
लांघती चली जाती हूं
साल दर साल….
मगर दूरी फिर भी
कभी कम नहीं होती
इन दस सालों के गणित में
जोड़ घटाना आता ही नहीं कभी
दस साल दस साल से भी ज्यादा
लम्बे होते चले जाते हैं 
एक आदरजन्य भययुक्त प्रेम
पल्लवित होता तो रहा
मेरे भीतर….तुम्हारे लिये
मगर डरती हूँ
कि इस अनाम प्रेम के
गड्डमड्ड से उपजी पौंध
क्या कभी प्रेमालु हो पाएगी??
संशय है मुझे….
तुम्हें पूरा-पूरा पा जाने की ज़िद में
अधूरी-अधूरी जीती रही हूं मैं
मैंने तो चाहा था
तुम्हारी दोस्त हो जाना
तुम्हारी प्रेमिका हो जाना
तुम्हें अपने अधिकार से
प्यार करने वाली अर्धांगिनी हो जाना
नहीं चाहा था केवल
कोख का हरा हो जाना……

कन्या भ्रूणहत्या ( गीत)


माँ तू क्यों मुझसे खफा हो गई
कोख तेरी मेरी कब्रगाह हो गई
क्या थी मेरी खता तू जरा तो बता
जुर्म क्या था मेरा फिर मिली क्यों सजा
ज़िंदगी कोख में ही फना हो गई
माँ तू क्यों,….
तेरे अंगना खेलूँ जैसे भाई खेले
कुछ न माँगू कभी ज़िंदगी तो मिले
मौत की फिर मुझे क्यों सजा हो गई
माँ तू क्यों……
तेरी गोदी चढूँ तेरा चेहरा देखूँ
कितनी सुंदर है तू बाबा से ये कहूँ
बेदखल तेरे आंचल से माँ हो गई
माँ तू क्यों…….
बाबा को तू मना मार न कोख में
जन्म दे दे मुझे अब तो आ होश में
जुर्म की अब तो बस इन्तेहा हो गई
माँ तू क्यों ……
राखी आये जभी आंख नम हों तभी
सूनी सूनी कलाईयां रहे भाई की
बेटियों की कमी हर जगह हो गई
माँ तू क्यों…..

अंखियों से (गीत)


अंखियों से प्यार की चिट्ठियां जो तूने भेजी
बांच ली है मेरे दिलबरा….
मन जो ये तितली बना उड़ता था आँगन आंगन
तेरे गली में आ रुका…..
शोर है ये कैसा दिल में कोई आवाज़ नहीं
बजती है शहनाईयां पर कोई साज़ नहीं
सतरंगी मन ये हुआ बेरंगी दुनिया में
तू जो हमारा हो गया….
अंखियों से……
मंतर ये कैसा किया बस में नहीं है जिया
कुछ न मेरा रहा काला तूने जादू किया
झाड़ फूंक सारे किये ताबीजें बांध लीं
पर तेरा उतारा न हुआ…..
अंखियों से ……
देखते हो चोरी चोरी फेर लेते हो क्यों नज़र
प्यार की है ये एबीसीडी तुमको नहीं है खबर
कितना छिपा लो खुद से तेरे ही खिलाफ होंगीं
चुगली करेंगी अंखियां…….
अंखियों से……

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *