शायर अबरार लखनवी

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ग़ज़लें

मत पूछ मुझ को वफाओं से क्या मिला

मत पूछ मुझ को वफाओं से क्या मिला
राज़दान मेरा ही रकीबों से जा मिला
कलतक जो था मेरा रहबर बना हुआ
मंज़िल के आते आते रहज़नो से जा मिला
क्यूं राज़ तूने खोल दिए सब के सामने
उलफत कोआखिर ऐसी जफ़ाओं से क्या मिला
इधर आ मिला तो कभी उधर जा मिला
हमको ऐसे मौका परस्तों से क्या मिला
होता ना था यक़ीन मुझे हाजित पे उसकी रोज़
घर से चला वो मेरे मै कशों से जा मिला
कुछ काम है दुनिया में ऐसे भी अबरार
जिनका सिला तो दोनों आलमों से जा मिला

ना समझ रहनुमा हो गए

ना समझ रहनुमा हो गए
बे अदब बे पनाह हो गए
थोड़ी दौलत उन्हें क्या मिली
शौक़ उनके जुदा हो गए
हमने साकी से कि बे रूखी
शेख़ जी क्यूं खफा हो गए
वाख्ते रुखसत आय और बस
फ़र्ज़ उनके अदा हो गए
बंटते बंटते मेरे सामने
घर के कोने जुदा हो गए
अबरार तुम यूंही एक दिन
फक्र में ही फना हो गए

बे इमानों का यहां ना ठिकाना होगा

बे इमानों का यहां ना ठिकाना होगा
पहले कौम की अना को जगाना होगा
दिखे गा खंजर कल उन्हीं हाथों में
जिनका अंदाज़ दोस्ताना होगा
जो हैं ओहदे के नशे में चूर
कल उन्हें होश में आना होगा
ख़ाक व्हो चलेंगे रहे ख़ुदा पर
जिनका शागल ही मेखना होगा
जो करते है बस तफ्रीक की बात
उनका माजी भी वहशियाना होगा
वक़्त रहते जो ना सुधरे अबरार
बड़ी मुश्किल में आबो दाना होगा



ज़रा एहतियात क्या करने लगे

ज़रा एहतियात क्या करने लगे
वोह समझ बैठे कि हम डरने लगे
हमने नज़रों से गिराया था जिन्हें
उनके ज़ानों पे आप गिरने लगे
होगा वहीं मुकद्दर में जो है लिखा
क्यूं मौत से पहले आप मरने लगे क्यूं शिकायत हो गैरों से हमको
अब अपने भी मुंह देखी बात करने लगे
तै किया है ज़िन्दगी का लंबा सफ़र
ताजरूबे खुद ही गुफ्तगू करने लगे
जिनकी दुनिया थी कल अबरार के अतराफ
वहीं हमें आज भूलने बिसरने लगे

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