कवयित्री ज्योति किरन सिन्हा

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मेरा मन

मेरे मन तू  कितना मनचला,

तूने मुझको हर पल छला  

                    तू कौन है क्या रूप है 

                    मेरे जीवन की धूप है 

                     अपना है या तू बेगाना 

                     या मेरा ही प्रति रूप है 

सब कहते हैं मन दर्पण है 

क्यों अक्स मेरा धुंधला धुंधला 

                      तू पत्थर की इक मूरत है 

                       या बर्फ सी तेरी सूरत है 

                       मिले धूप ज़रा पिघल जाए 

                        तेरी मोम की जैसी सीरत है

किसी ठौर तू ठहरे कहाँ  

जैसे नदी कोई चंचला 

                          महके फूलों की गंध है 

                          तो शूलों का भी दंश है 

                          कुछ उजला तो कुछ श्यामल है 

                           साये में धूप का अंश है 

गहरा लगे सागर जैसा 

कभी मन लगे  उथला उथला 


इक अदा से ये घटाएं ले रही  अंगड़ाइयां 

 इक अदा से ये घटाएं ले रही  अंगड़ाइयां 
किसके आने की खबर यूँ दे रही पुरवाईयां 


 बांध कर दामन में अपने इक समुन्दर ले उड़ीं 

राह तकती बादलों की मुन्तजिर अंगनाईयां 


तन बदन महका ज़मीं का ,मेहँदी के बूटे सजे 

प्रीत बरसाई गगन ने खिल उठीं रानाईयां 


कुछ फ़साने लिख रही हैं बारिशें इस रेत पे 

सोंधी सोंधी सी महक पाने ;लगीं पुरवाईयां 


  घुल रही तेरी चाहत की हवाओं में महक 

  फूल खुशबू चांदनी सब हैं तेरी परछाईयां 


दुनिया तेरे इन चेहरों से यूँ तो हम अनजान कहाँ 

दुनिया तेरे इन चेहरों से यूँ तो हम अनजान कहाँ 

लेकिन इतनी भीड़ मैं हमको अपनी भी पहचान कहाँ 


हर ठोकर पर थामने हमको जाने कितने हाथ बढे 

लेकिन हम जैसे दीवाने लेते हैं एहसान कहाँ 


अब तो इक इक बूँद मेरी तेरी मौजों का हिस्सा है 

तू सागर और मैं एक दरिया अब मेरी पहचान कहाँ 


खाली  हाथ चले जाते हैं ,सब मेरे दरवाज़े से 

लौट गए वो ख्वाब भी मेरे अब घर  में मेहमान कहाँ 


राख की ढेरी में चिंगारी कब तक जिंदा रह पाती 

बुझा बुझा सा दिल है मेरा ,अब इसमें अरमान कहाँ 


ले देकर इक जान बची है वो भी तेरे नाम लिखी  

सौदे में अब इश्क़ के होगा और भला  नुक्सान कहाँ 


माना मैं तन्हा  हूँ लेकिन फिर भी मेरे पास है तू 

सजी हुई हैं तेरी  यादें , अब ये दिल वीरान कहाँ 


जीवन की इस शाम में आकर अब ये बात समझ आई 

जीना  तो मुश्किल था लेकिन, मरना भी आसान कहाँ 

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