कवयित्री: अपर्णा दीक्षित
तिलचट्टा वो किताबों की अलमारी से निकलकर तेजी से रसोई घर की तरफ भाग गया तिलचट्टा है सरकार, जब सब...
तिलचट्टा वो किताबों की अलमारी से निकलकर तेजी से रसोई घर की तरफ भाग गया तिलचट्टा है सरकार, जब सब...
यादों की गंध आज पुरानी यादों के सारे लिफाफे खोल डाले कुछ खत मिले कुछ तसवीरें उन तसवीरों में अपने...
ग़ज़ल ज़िंदगी को आज़माकर देख लो , अश्क पलकों से चुराकर देख लो । ख़्वाहिशों के दरमिया क़िस्मत फ़क़त, चाँदनी...
प्रश्न जीवन ही अब खत्म हुआ या मैंने जीना छोड़ दिया है मैंने प्रश्नों की पुस्तक में एक प्रश्न ये...
1- कश्मीरी औरत कश्मीरी औरत माँ बनने से घबराती है गर बेटा पैदा हुआ तो आतंकवाद का शिकार होगा गर...
आल्हा छंद ~ निज भाषा बिन सब बेकार अक्षर अक्षर भाषा बनते, भाषा प्रगटे भाव विचार।अपनी भाषा अपनी बोली, निज...
सरस्वती वंदना मुझे ऐसा वर दे मां मैं तेरा ध्यान करूं जब - जब तुझको ध्याऊं नित - नूतन गीत...
वरिष्ठ साहित्यकार: गोप कुमार मिश्र उदाहरण -४ पियूष वर्ष तथा आनंद वर्धक छंद छन्द पीयूषवर्ष मापनी- 2122 21 , 22...
क्यूँ मेरी आँखों में आते हैं बराबर आंसू तोड़ जाते हैं भरम मेरा ये अक्सर आंसू जाने कब से मेरी...
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र \निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल। अंग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन। उन्नति पूरी है तबहिं जब घर उन्नति होय निज शरीर उन्नति किये, रहत मूढ़ सब कोय। निज भाषा उन्नति बिना, कबहुं न ह्यैहैं सोय लाख उपाय अनेक यों भले करे किन कोय। इक भाषा इक जीव इक मति सब घर के लोग तबै बनत है सबन सों, मिटत मूढ़ता सोग। और एक अति लाभ यह, या में प्रगट लखात निज भाषा में कीजिए, जो विद्या की बात। तेहि सुनि पावै लाभ सब, बात सुनै जो कोय यह गुन भाषा और महं, कबहूं नाहीं होय। विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार सब देसन से लै करहू, भाषा माहि प्रचार। भारत में सब भिन्न अति, ताहीं सों उत्पात विविध देस मतहू विविध, भाषा विविध लखात।...