बालकनी की चिड़िया – दिव्या त्रिवेदी
बालकनी की चिड़िया सुनो तुम्हारी बालकनी में हर सुबह रोज एक चिड़िया आती है ना कोई गीत गा...
बालकनी की चिड़िया सुनो तुम्हारी बालकनी में हर सुबह रोज एक चिड़िया आती है ना कोई गीत गा...
डर ... दहशत ... ख़ौफ़ डर ... दहशत ... ख़ौफ़ सिर्फ़ मन की कमज़ोरी है - कायरता है...
दुआ क्या और उनकी बद्दुआ क्या दुआ क्या और उनकी बद्दुआ क्या जो रिश्ता ही नहीं उसका गिला...
प्रेम सब कहते हैं ये प्रेम नहीं है जो मुझे उस अज्ञात प्रियतम से है कैसे बताऊं उन्हें वो...
प्राणमय एक मूर्त हूं ना इश्क़ की नब्ज़ हूं l ना मुहब्बतों का लब्ज़ हूं ll ना अब्र हूं मैं...
चलें फिर आज उजालों की तरफ़ फ़िज़ा में रंग नज़ारों में जान आई है सहर ये आज फिर नए...
और एक साल दिए जाता हूँ अपनी यादों के दरीचे से फिर और एक साल दिए जाता हूँ...
हाँ मैं हूँ करो प्रताड़ित सहूं अगर तो कहना नारी महान हो तुम तोड़ दूँ चुप्पी तो कहना हाय...
मैं स्वयं परिभाषित नहीं करना अब तुम मुझे क्षण शब्दों में मैं स्वयं परिभाषा बनूंगी वर्ण-वर्ण कर नहीं अब...
असीर-ए-ज़िंदगी ज़िन्दगी, ज़िन्दगी में ही क़ैद होकर रह गई ख़्वाहिशें समझौतों के कंधे पर बोझ हो गईं लड़कपन जवानी...