कोविड-19: मानवीय संवेदनाएँ और महिलाओं पर हिंसा – कुसुम त्रिपाठी
कोविड-19, मानवीय संवेदनाएँ और महिलाओं पर हिंसा - कुसुम त्रिपाठी हम आज कोरोना कोविड – 19 के कारण अंतरराष्ट्रीय शोक से घिरे हुए है और राष्ट्रीय...
कोविड-19, मानवीय संवेदनाएँ और महिलाओं पर हिंसा - कुसुम त्रिपाठी हम आज कोरोना कोविड – 19 के कारण अंतरराष्ट्रीय शोक से घिरे हुए है और राष्ट्रीय...
वरिष्ठ साहित्यकार गोप कुमार मिश्र जिस प्रकार गद्य में व्याकरण का विशेष महत्व है , उसी प्रकार पद्य में छंद...
कथाकार: सुधा जुगरान पीहू के कॉलेज की छुट्टी थी. छुट्टी के दिन पढ़ाई करके, अलसा कर वह शाम को...
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र \निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल। अंग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन। उन्नति पूरी है तबहिं जब घर उन्नति होय निज शरीर उन्नति किये, रहत मूढ़ सब कोय। निज भाषा उन्नति बिना, कबहुं न ह्यैहैं सोय लाख उपाय अनेक यों भले करे किन कोय। इक भाषा इक जीव इक मति सब घर के लोग तबै बनत है सबन सों, मिटत मूढ़ता सोग। और एक अति लाभ यह, या में प्रगट लखात निज भाषा में कीजिए, जो विद्या की बात। तेहि सुनि पावै लाभ सब, बात सुनै जो कोय यह गुन भाषा और महं, कबहूं नाहीं होय। विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार सब देसन से लै करहू, भाषा माहि प्रचार। भारत में सब भिन्न अति, ताहीं सों उत्पात विविध देस मतहू विविध, भाषा विविध लखात।...
हकीकत नहीं हम वादे और कसमें बेचते हैं, दुश्मनी नहीं हम प्यार की रसमें बेचते हैं, पत्थर को पिघला देने...
मन इस कदर बढ़ गई है उदासियां, इधर उधर , बड़ी से बड़ी खुशी अब, छोटी नजर आने लगी है...
आत्म निरीक्षण अकेलापन अकाट्य ,अभेद्य अंतरात्मा की गहराई से अनुभव किया उसने सब कुछ के बावजूद सब कुछ की समाप्ति...
मणिकर्णिका का रास महोत्सव जहाँ जलाया जा रहा था देहों को वही सजा कर अपनी देह वो नाचती रहीं… रातभर...
बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर /पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर/ खजूर और प्राकृतिक तेल...
कथाकार: डॉक्टर अमिता दुबे ‘माँ ! तुम मेरी बात कब सुनोगी सुनोगी या जिन्दगी भर कान में तेलडालकर बैठी रहोगी जैसे पचास प्रतिशत मायें बैठी रहती हैं, बेटियों कीचीखें तक उन्हें सुनायी नहीं देतीं। अनकही जाने वाली बातों के बारे में तो सोचना ही क्या ! माँ ! मैंने तुम्हें पहली आवाज तब दी थी जब मैं तुम्हारे गर्भ में थी और तुम दादी से मेरे बारे में बातें कर रही थीं। दादी कह रही थीं देखना बहू बेटा हीहोगा हमारे खानदान में अभी तक किसी के लड़की नहीं हुई। मैं उस समय तुम्हें आवाज दे रही थी- ‘माँ ! ओ माँ ! मैं तुम्हारी कोख में हूँ मैं तुम्हें बेटीकी माँ बनने का सौभाग्य देने वाली हूँयह तो बाद में पता चला कि बेटीकी माँ बनना कोई सौभाग्य नहीं होता बल्कि दुर्भाग्य दस्तक देता है । बाद में सबकुछ ठीक हो गया। दादी भी मुझे दुलराने लगीं और पापाकी तो मैं लाडली बन गयी। फिर मैंने तुम्हें बहुत दिनों तक आवाज़ नहीं दी। तुम अपनी दुनिया में मगन थीं क्योंकि तुम फिर माँ बनने वाली थीं। फिरतुम्हें ‘पुत्रवती भव’ के आशीर्वाद दिये जा रहे थे। दादी कह रही थीं- बहूअबकी बार वह मुआ टेस्ट-वेस्ट करवा लो। भई अबकी बार तो बेटा ही होना चाहिए। पहले मैं सब बातें तुम्हारे पेट के अन्दर से सुन रही थी अबकी बार मेरी आँखों के सामने तुम्हें उलाहने दिये जा रहे थे। तुम्हारी आँखों में डर के साये थे तब मैंने तुम्हें आवाज दी थी माँ! तुम डरो बिल्कुल नहीं मैंतुम्हारी पहली सन्तान हूँ तुम्हें मेरे रहते किसी से डरने की जरूरत नहीं।निश्चिन्त रहो मैं तुम्हारी नाक कभी नीची नहीं होने दूँगीं। शायद तुमने मेरी बात को कुछकुछ समझने की कोशिश की थी और...